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127वां संविधान संशोधन बिल में क्या है, जिस पर नाराज विपक्ष भी सरकार से सुर मिलाने लगा

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Published : Aug 9, 2021, 9:18 PM IST

संसद में जारी गतिरोध के बीच 127वां संविधान संशोधन बिल लोकसभा में पेश किया गया. इस बिल के सपोर्ट में क्या पक्ष, क्या विपक्ष, सभी साथ आ गए. जानिए 127वां संविधान संशोधन बिल के बारे में...

127वां संविधान
127वां संविधान

हैदराबाद : 19 जुलाई को संसद का मॉनसून सत्र शुरू हुआ था. इसके बाद के 21 दिनों तक पेगासस पर हंगामा होता रहा. विपक्ष पूरी तरह एक साथ लामबंद रहा. हंगामे और गतिरोध के बीच बिना बहस के 5 बिल पास हुए. सरकार ने लोकसभा में सोमवार को 127वां संविधान संशोधन बिल पेश किया. राज्यों को ओबीसी की सूची बनाने की शक्ति देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 342-ए और 366(26) सी में संशोधन होना है. इस बिल के पेश होने से पहले विरोध की मुद्रा में बैठे 15 विपक्षी दलों ने मॉनसून सेशन में पहली बार चर्चा करने की हामी भरी. विपक्षी नेताओं के बयान भी आ गए कि वे संशोधन बिल पर सरकार के साथ हैं.

पहले यह जान लें कि सत्र के तीसरे सप्ताह तक कितने बिल बिना बहस के पास हो गए. इन सभी पांच बिलों को पास करवाने में मात्र 44 मिनट का समय लगा. सोमवार को भी तीन बिल 21 मिनट में बिना चर्चा के पास हो गए. संसद में हंगामे के कारण इस बिलों पर एक मिनट चर्चा नहीं हुई.

26 जुलाई : राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान, उद्यमिता और प्रबंधन विधेयक

26 जुलाई : फैक्टरिंग रेगुलेशन (संशोधन) विधेयक, 2020

26 जुलाई : भारतीय विमानपत्तन आर्थिक नियामक प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2021

28 जुलाई : दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) विधेयक 2021

3 अगस्त : आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक ध्वनिमत से पास कर दिया गया.

9 अगस्त : लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (संशोधन) विधेयक, 2021

डीआईसीजीसी बिल यानी- डिपॉजिट इंस्योरेंस क्रेडिट गारंटी कोऑपरेशन (संशोधन) बिल, 2021

अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) की अनुसूचित जनजातियों (ST) की सूची को रूपांतरित करने के लिए संशोधन विधेयक भी पारित हुआ

लोक सभा.
लोक सभा.

फिर 127वां संशोधन बिल पर चर्चा पर क्यों राजी है विपक्ष?

अब आप जानना चाहेंगे 127वां संविधान संशोधन बिल में ऐसा क्या जादू है, जिसने हंगामे के मूड में रहने वाले विपक्ष के कान खड़े कर दिए. बता दें कि इस संशोधन के लोकसभा और राज्यसभा में पास होने के बाद राज्यों को OBC की लिस्ट में अपनी मर्जी से जातियों को शामिल करने का अधिकार मिल जाएगा. जब सारे दल इस बिल के सपोर्ट में हैं तो इसकी संसद से मंजूरी मिलना तय है. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के बाद यह कानून बन जाएगा.

जिन राज्यों में जो पार्टी सत्ता में है, वह उठा सकती है फायदा

इस बिल का फायदा उन राज्यों को मिलेगा, जो अपनी ओर से चिह्नित जातियों को ओबीसी की लिस्ट में शामिल करना चाहते थे. अभी तक ओबीसी की लिस्ट में किसी जाति को शामिल करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास ही था. कई राज्यों में कई जातियां ओबीसी की दर्जा देने की मांग कर रही है. संसद में 127वां संविधान संशोधन बिल पास होने के बाद कर्नाटक में लिंगायत, राजस्थान में गुर्जर, गुजरात में पटेल, हरियाणा में जाट और महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का रास्ता साफ हो जाएगा. संसद का मॉनसून सेशन 13 अगस्त तक चलेगा. इससे पहले बिल के संसद से पास होने की उम्मीद है.

राज्य सभा.
राज्य सभा.

केंद्र ने आखिर लिस्ट बनाने का हक क्यों छोड़ा

महाराष्ट्र में आंदोलन के बाद मराठा समुदाय के लिए ओबीसी कैटिगरी में आरक्षण का प्रावधान किया गया. तब वहां भाजपा के देवेंद्र फड़नवीस की सरकार थी. मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया. 5 मई को सुप्रीम कोर्ट ने में मराठा समुदाय को दिए आरक्षण को रद्द कर दिया. कोर्ट ने कहा कि कहा था कि किसी भी जाति को ओबीसी में शामिल करने का अधिकार केंद्र के पास है, राज्यों के पास नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से दायर की गई पुनर्विचार की अपील को भी ठुकरा दिया. इसके बाद से मराठा आंदोलन की सुगबुगाहट एक बार फिर होने लगी. इस हालात को संभालने के लिए केंद्र सरकार ने ओबीसी जातियों की पहचान के साथ आरक्षण का मसला भी राज्यों के पाले भी डाल दिया.

ओबीसी की आबादी और जाति की संख्या में मतभेद

भारत में ओबीसी आबादी कितनी है, इसका कोई ठोस आंकड़ा नहीं है. मंडल कमीशन ने 1931 की जनगणना के आधार पर भारत में ओबीसी की आबादी 52 प्रतिशत आंकी थी. नैशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (NSSO) ने 2004-05 में सर्वे किया था. सर्वे के अनुसार, भारत में ओबीसी आबादी कुल जनसंख्या का 40.94 प्रतिशत है. 1979 -80 में स्थापित मंडल आयोग की प्रारंभिक सूची में पिछड़ी जातियों और समुदायों की संख्या 3, 743 थी. पिछड़ा वर्ग के राष्ट्रीय आयोग के अनुसार 2006 में ओबीसी की पिछड़ी जातियों की संख्या अब 5,013 बढ़ी है. हालांकि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने 2008 में लिस्ट जारी की थी, इसके मुताबिक 2479 जाति ओबीसी की केंद्रीय सूची में दर्ज है.

कहां हैं केंद्रीय सूची और राज्यों में मतभेद

उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि यूपी में 234 पिछड़ी जातियां हैं, मगर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की सूची में 176 जाति ही ओबीसी है. ऐसे ही उड़ीसा में 200 से ज्यादा ओबीसी जाति होने का दावा किया जा रहा है मगर केंद्रीय मंत्रालय के आंकड़े में इसकी संख्या 197 है. महाराष्ट्र में ओबीसी कैटिगरी में 256 जातियां शामिल हैं. बिहार में 132, कर्नाटक में 199, आंध्रप्रदेश में 104, छत्तीसगढ़ में 67 और हरियाणा में 73 जातियां ओबीसी में शामिल हैं. इसी तरह राजस्थान में 69 जातियां की केंद्र की लिस्ट में शामिल है. ओबीसी लिस्ट में एक फैक्ट यह भी है कि एक ही जाति कई राज्यों में अलग-अलग कैटिगरी में है. इस कारण अक्सर राज्य और केंद्र में मतभेद होते हैं.

ओबीसी के लिए बने आयोग

  • जनवरी, 1953 में काका कालेलकर की अध्यक्षता में प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग गठित हुआ. आयोग ने सामाजिक और शैक्षिक आधार पर पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए चार मानक बनाए थे.
  • मंडल आयोग 1 जनवरी 1979 को दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग गठित करने का निर्णय लिया गया. 1980 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.
  • केंद्र सरकार ने मार्च 2017 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की घोषणा की. इसके लिए 123वां संविधान संशोधन किया गया. संविधान में एक नया अनुच्छेद 338 बी जोड़ने का निर्णय लिया गया.

एससी की लिस्ट पर भी भिड़ चुका है उत्तर प्रदेश और केंद्र

उत्तरप्रदेश सरकार और केंद्र के बीच अनुसूचित जाति की लिस्ट पर भी टकराव हो चुका है. 24 जून 2017 को योगी आदित्यनाथ की सरकार ने 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कर दिया और प्रमाण पत्र जारी करने के आदेश दे दिए. इन जातियों में कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी व मछुआ शामिल हैं. जो केद्रीय सूची में ओबीसी हैं. केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने राज्यसभा में यूपी सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक करार दिया था.

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