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देश मना रहा आजादी का 'अमृत महोत्सव', 75 साल बाद भी 'गुलाम' हैं ये 125 परिवार

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Published : Oct 9, 2021, 10:02 PM IST

उत्तराखंड से खास रिपोर्ट
उत्तराखंड से खास रिपोर्ट

देश आजादी के 75 सालों के जश्न को अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है. उत्तराखंड में 21 अक्टूबर से शहीद सम्मान यात्रा निकालने की तैयारी है. इस बीच हरिद्वार जिला मुख्यालय से सटे हजारा टोंग्या के 125 परिवार आज भी मुख्यधारा से कटे हुए हैं. इन परिवारों को ना तो किसी सरकारी योजना का लाभ मिल रहा है और ना ही इस गांव में कोई शौचालय है. एक बार फिर ग्रामीणों का दर्द छलका है. उनका कहना है कि पीएम मोदी के मन की बात तो सब सुनते हैं, लेकिन उनके मन की बात कोई भी सुनने वाला नहीं है. खास रिपोर्ट.

रुड़की: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 के लिए कुछ ही वक्त बचा है. सभी पार्टियां प्रदेश में अलग-अलग अंदाज में अपना प्रचार करने में जुटी हैं. कोई बिजली-पानी फ्री देने का वादा कर रहा है, तो कोई शिक्षा-चिकित्सा और रोजगार की गारंटी ले रहा है. चाहे सत्ताधारी बीजेपी हो या फिर विपक्षी दल, दावों और वादों में कोई भी किसी से पीछे नहीं है. कुल मिलाकर उम्मीदों का मेला सज चुका है.

उत्तराखंड में बारी-बारी से सत्ता की कमान अलग-अलग पार्टियों में बदलती रही. अगर कुछ नहीं बदला तो वो है अंतिम छोर पर बैठे आदमी की जिंदगी. उत्तराखंड में पहाड़ के दुर्गम इलाकों का हाल तो छोड़ दीजिए, मैदानी जनपद हरिद्वार के इस गांव के हालात आपको यह सोचने पर मजबूर कर देंगे कि क्या ऐसा भी हो सकता है कि कोई इलाका शहर या गांव का हिस्सा ही ना हो.

उत्तराखंड से खास रिपोर्ट
उत्तराखंड से खास रिपोर्ट

हरिद्वार जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर हजारा टोंग्या गांव में आजादी के 75 साल बाद भी यहां के लोग सिर्फ लोकसभा और विधानसभा के वोटर हैं. उन्हें न तो अपना मुखिया चुनने का अधिकार और न पंचायत या निकाय चुनाव में वोट डालने का. हैरत की बात है कि लगभग 600 जनसंख्या वाले इस क्षेत्र में न बिजली की कोई व्यवस्था है न सड़क व शौचालय की.

विडंबना देखिए, पूरे देश में घर-घर शौचालय बन रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद लोगों को शौचालय बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. लेकिन इस गांव में शौचालय नहीं हैं. इससे साफ है कि अधिकारियों के काम में झोल है और हरिद्वार जिला अभी पूरी तरह खुले में शौच मुक्त नहीं हो सका है.

यहां लगभग 125 परिवार हैं, पर उनके लिए अपना मुखिया चुनने की मनाही है. कुल मिलाकर, वो उस व्यवस्था से बाहर हैं जो पंचायत राज के नाम से पूरे देश में जानी जाती है. टोंग्या गांव के निवासी किरणपाल सवाल उठाते हैं कि उनके पास सरकार से करने के लिए बहुत सारे सवाल हैं. वो किसी एक राजनीतिक दल की सरकार से खफा नहीं हैं, उनके लिए तो किसी ने भी कुछ नहीं किया चाहे वो भाजपा हो या फिर कांग्रेस.

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अंग्रेजों ने 1932 में बसाए थे पूर्वज: हजारा टोंगिया को वन क्षेत्र से बाहर लाने के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे श्यामलाल ने बताया कि साल 1932 में ब्रिटिश शासनकाल में हिमालयी क्षेत्रों में प्लांटेशन के लिए अलग-अलग क्षेत्रों से श्रमिकों को लाया गया था. इन श्रमिकों में उनके पूर्वज भी थे, जिनको इस क्षेत्र में पौधे लगाने और पेड़ बनने तक परवरिश की जिम्मेदारी दी गई थी. जंगल बनाने के लिए प्लांटेशन की व्यवस्था को टोंगिया नाम से पहचान मिली. इस जगह को हजारा टोंगिया के नाम से जाना गया. यहां से कुछ दूरी पर हरिपुर टोंगिया भी है.

श्यामलाल बताते हैं अंग्रेजों ने उनके पूर्वजों को यहीं बसा दिया था. उनको प्रति परिवार लगभग 12-12 बीघा भूमि दी गई थी, जिस पर खेती करते आ रहे हैं. साल 1980 तक उन लोगों ने प्लांटेशन किया. बाद में यह वन क्षेत्र राजाजी राष्ट्रीय पार्क क्षेत्र के अधीन आ गया.

33 साल पहले शुरू हुआ था पुनर्वास: हजारा टोंगिया क्षेत्र टाइगर रिजर्व का हिस्सा है. यहां मानवीय गतिविधियों की मनाही है. फिर भी इन परिवारों का पुनर्वास नहीं किया जा रहा है. श्यामलाल ने बताया कि साल 1988 में यहां रहने वाले सभी परिवारों के पुनर्वास की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. उन्हें आधा-आधा बीघा भूमि बुग्गावाला के पास ही खानपुर रेंज के सिकरौढा ब्लाक में आवंटित कर दी गई. उनका कहना है कि आवास बनाने के लिए धनराशि देने को कहा गया था. पर बाद में ऐसा नहीं हो सका. तब से सभी परिवारों का पुनर्वास अधर में है. जबकि 125 परिवारों की लिस्ट तैयार है. इस लिस्ट में परिवारों के बच्चों तक के नाम अंकित किए गए थे. यह लिस्ट घर-घर जाकर तैयार की गई थी. अधिकारियों ने इसका सत्यापन भी किया था.

दूसरे गांव पढ़ने जाते हैं बच्चे: डब्ल्यूडब्ल्यूएफएन (World Wide Fund for Nature) के सहयोग से कक्षा पांचवीं तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक सेंटर बना है. छठी से 12वीं तक की पढ़ाई दूसरे गांवों में जाकर होती है. यहां सेंटर यानी स्कूल का पक्का निर्माण नहीं किया जा सकता. इसलिए 5वीं तक के लिए टिन का स्ट्रक्चर बनाया गया है.

यहां के निवासी विनोद राजनीतिक दलों के साथ-साथ मीडिया से भी बहुत नाराज हैं. कहते हैं, कोई भी आ जाए, यहां के हालात नहीं सुधरने वाले. हमारी जिंदगी तो तभी सुधरेगी, जब हमें यहां से बाहर निकालकर बसाया जाएगा. कोई कुछ भी बन जाए, हमारे लिए कोई मतलब नहीं रह गया.

घर की मरम्मत पर भी प्रतिबंध: यकीन नहीं आता कि आजाद भारत में ऐसा भी हो सकता है. ग्रामीण प्रतिबंधों के चलते घर की मरम्मत नहीं करा सकते. उन्हें नहीं लगता, कुछ माह बाद तक उनका घर रहने लायक रहेगा भी या नहीं.

30 साल से कुंआ बंद, खुद लगाया हैंडपंप: करीब 30 साल पहले की बात होगी, बहुत पानी आया. यहां का एक मात्र कुआं भी बाढ़ में डूब गया. पानी कुएं से ऊपर से बह रहा था. उस समय यहां जिलाधिकारी ने दौरा किया था और गांव के लिए तीन हैंडपंप लगाने के निर्देश दिए थे पर कोई लगाने नहीं आया. उस बाढ़ के बाद से कुएं से आज तक पानी नहीं मिला.

कुआं आज भी है लेकिन किसी लायक नहीं क्योंकि उसमें पानी की जगह रेत भरी है. ग्रामीणों ने लोगों ने मिलकर करीब 50 फीट गड्ढा खोदकर पानी निकाला, जिसके बाद हैंडपंप लगाया गया. यहां सभी परिवार हैंडपंप का पानी पीते हैं. पशुओं को भी हैंडपंप का पानी पिलाते हैं. सवा सौ परिवारों के लिए छह-सात हैंडपंप हैं, जिनमें से कुछ में गंदा पानी भी आता है. बिजली के लिए सोलर पैनल लगे हैं. बिजली के नाम पर, सौर ऊर्जा के पैनल व बैटरियां हैं. नदियों से घिरे इस क्षेत्र में गर्मी भी बहुत पड़ती है. इनको हैंडपंप, सोलर पैनल भी कुछ संस्थाओं से मिले हैं.

स्कूल नहीं जा पाते बच्चे: क्षेत्रवासी बताते हैं कि यहां आने के लिए कोई सड़क नहीं है. नदी पार करके पहुंचना होता है. बरसात में नदियां उफान पर होती हैं, तो आवागमन बाधित हो जाता है. अस्वस्थ व्यक्ति को ऐसी स्थिति में बुग्गावाला स्थित स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं ले जा सकते. बच्चे भी स्कूल नहीं जा पाते.

रेंज से बनते हैं जन्म व मृत्यु प्रमाण पत्र: यहां रहने वालों के जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र रेंज दफ्तर से बनते हैं. परिवार रजिस्टर भी उन्हीं के पास है. आय, निवास के प्रमाण पत्र नहीं बन पाते. सरकार की अटल आवास योजना यहां लागू नहीं हो सकती, हालांकि पेंशन योजना का लाभ मिलता है.

कोई नहीं सुनता इनके मन की बात: हजारा निवासी मोहब्बत सिंह रेडियो पर प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम को बहुत ध्यान से सुनते हैं. रविवार को भी उन्होंने यह कार्यक्रम सुना था. वो बताते हैं, प्रधानमंत्री जी ने नदियों की रक्षा करने की बात कही थी. वो कहते हैं प्रधानमंत्री मोदी के मन की बात तो सब सुनते हैं लेकिन उनके मन की बात कौन सुनेगा ?

खेती पर निर्भर है आजीविका: यहां के अधिकतर परिवार खेती करते हैं पर जंगली जानवर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. मक्का, गेहूं, तिल, मूंगफली की खेती होती है. सब्जियां भी उगाई जाती हैं. ग्रामीणों ने फसल को जानवरों से बचाने के लिए खुद ही कुछ उपाय किए हैं.

अफसर-नेता चाहें तो हो सकता है कल्याण: श्यामलाल कहते हैं कि बड़े अधिकारी, जनप्रतिनिधि चाहें तो उनके क्षेत्र के पुनर्वास की फाइल तेजी से घूमने लगेगी. हम यहां के प्रतिबंधों से बाहर आकर बिजली, पानी, सड़क, शौचालय की सुविधा पा सकेंगे. खेतीबाड़ी और अन्य कार्यों से आजीविका चला सकेंगे पर हमारी सुनवाई कहीं नहीं हो रही.

इस चुनाव में बहिष्कार की तैयारी: यहां के रहने वाले अधिकतर परिवारों ने इस चुनाव का बहिष्कार करने की बात कही है. उनका कहना है कि उनके लिए भाजपा व कांग्रेस दोनों दल एक जैसे ही हैं. उनकी बात किसी ने नहीं सुनी. उनको बिजली, पानी, आवास, शौचालय और रोजगार, स्वरोजगार चाहिए पर अब उम्मीद की डोर लगभग टूटती नजर जा रही है.

2022 चुनाव बहिष्कार की चेतावनी: ग्रामीणों का कहना है कि साल 2022 के चुनाव में देहरादून, हरिद्वार से कोई भी उनके पास वोट मांगने पहुंचता है, तो वो उनको वापस लौटने को कहेंगे. उनका दो टूक जवाब होगा, सुविधाएं नहीं तो वोट नहीं. पहले विस्थापन करो, फिर वोट मांगो.

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