सरगुजा: हरेली के मौके पर छत्तीसगढ़ सरकार गौ मूत्र की खरीदी शुरू कर चुकी है. इसके पहले ही प्रदेश के वैज्ञानिकों ने इसके उपयोग का भी हल निकाल लिया है. जैविक खेती के लिए सबसे बेहतर विकल्प के रूप में वर्मी वाश का निर्माण किया गया है. प्रदेश में 8 वैज्ञानिकों ने मिलकर वर्मी वाश पर अपना पेटेंट भी करा लिया है. (barren land become fertile from cow urine)
भारत सरकार ने किया पेंटेट: खेतों में रासायनिक खाद के ज्यादा उपयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति कम होती जा रही है. उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए बाॅयो टेक्नॉलाजी की मदद से वैज्ञानिकों ने लिक्विड रूप में जैविक वर्मी वाश तैयार किया है. इस वर्मी वाश का भारत सरकार ने पेंटेट भी कर दिया है. डीएलएस स्नातकोत्तर महाविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग में यह प्रयोग किया गया, जिसमें अम्बिकापुर शहर के वैज्ञानिक भी शामिल रहे. जैविक वर्मी वाश के उपयोग से उर्वरा शक्ति बढ़ने के साथ बंजर भूमि भी उपजाऊ बनेगी.
न्यूनतम संसाधनों में प्रयोग: वर्तमान में रासायनिक खाद के प्रयोग से फसलों का उत्पादन तो बढ़ा है लेकिन इससे भूमि में पोषक तत्वों की कमी हो रही है. जिसमें प्रमुख रूप से आर्गेनिक कार्बन यानी जीवाश्म की कमी हो रही है. विभागाध्यक्ष डॉ. नेहा बेहार का कहना है कि "खेतों में ज्यादातर किसान वर्मी कंपोस्ट का उपयोग करते हैं. लिक्विड रूप वर्मी वाश का खेतों में उपयोग किया जा रहा है लेकिन हमारे वर्मी वाश काे भारत सरकार ने अब तक का कारगर प्रयोग माना है. इसे न्यूनतम संसाधनाें से तैयार किया गया है. किसान इसे अपने घर पर भी तैयार कर सकते हैं."
किसानों को मिलेगा लाभ: लिक्विड रूप में जैविक वर्मी वाश का पेंटेंट मिलने से छत्तीसगढ़ के अलावा दूसरे राज्य के किसानों को भी इसका लाभ मिलेगा. बायोटेक वैज्ञानिक डॉ. प्रशांत शर्मा का कहना है, "भारत सरकार ने कम लागत में अधिक लाभ होने से प्रयोग को पेंटेंट किया है. हमने एक पौधे में वर्मी कंपोस्ट और दूसरे में जैविक वर्मी वाश डाला, जिसमें कंपोस्ट पौधे में बढ़ोतरी कम हुई. वहीं, जैविक वर्मी वाश से महीने भर में पौधा बढ़ा. फूल और फल देने की स्थिति में पहुंच गया. वर्मी वाश के प्रयोग में अकार्बनिक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, कॉपर, फेरस, मैग्नीशियम, मैग्नीज, जिंक प्रचुर मात्रा पाया गया. यह पौधों को पोषण प्रदान करता है. वर्मी कंपोस्ट में इसकी मात्रा कम होती है."
रासायनिक खाद का विकल्प: जैविक वर्मी वाश तैयार करने में शामिल छात्र रवि साहू का कहना है, "खेतों में रासायनिक कंपोस्ट के विकल्प के रूप में इसे बनाया गया है. रासायनिक से न केवल खेतों की उर्वरा शक्ति प्रभावित हो रही है बल्कि फसलों में भी इसका असर देखने को मिलता है. इस प्रयोग के लिए किसी भी तरह की मशीन की जरूरत नहीं है. गोबर, केंचुए की मदद से मात्र 500 रुपए तक किसान अपने घरों में तैयार कर सकते हैं. मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने वाले सूक्ष्मजीव जैसे नाइट्रोसोमोनास भी मौजूद रहते हैं. यह कीटनाशी के रूप में भी प्रयोग होता है. वैज्ञानिक प्रयोगों के आधार पर यह पौधों और फसलों में वृद्धि, गुणवत्ता सुधार के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ है. वर्मी वाश में गोमूत्र मिलाने पर इसकी गुणवत्ता में वृद्धि दर्ज की गई है."
पोषक तत्वों की हानि: राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी, एनएएएस नई दिल्ली के अनुसार वर्तमान परिदृश्य में हमारे देश में वार्षिक मृदा हानि दर लगभग 15.35 टन प्रति हेक्टेयर दर्ज की गई है. जिसके परिणामस्वरूप 5.37 से 8.4 मिलियन टन पोषक तत्वों की हानि हुई है. भारत सरकार द्वारा वर्ष 2019-20 में किए गए मृदा स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, देश की मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और कार्बनिक कार्बन में क्रमशः 55, 42 और 44 प्रतिशत कमी दर्ज की गई है. कार्बनिक खाद और वर्मी वाश का समुचित उपयोग दोनों समस्याओं का समाधान है.
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इन्होंने की मेहनत: यह पेटेंट किसी संस्था या किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं बल्कि डॉ. नेहा बेहार, रवि साहू, सुमित दुबे, कृष्ण कुमार वर्मा, अपूर्व तिवारी, डॉ. प्रशान्त, दिनेश पांडेय सहित रंजना चतुर्वेदी ने समूहिक रूप से कराया है. छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जहां पर गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाया गया. अब छत्तीसगढ़ में ही गौ मूत्र सरकार खरीद रही है. गौ मूत्र का इस्तेमाल औषधि बनाने के साथ-साथ वर्मी वॉश निर्माण में भी किया जाता है. इस तरह छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जिलों में रहने वाले लोगों के सामूहिक प्रयास से छत्तीसगढ़ के नाम एक और उपलब्धि जुड़ गई है.