direction of face at time of worship : किस दिशा में हो पूजा के समय मुख

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Published : Jan 25, 2023, 2:25 PM IST

direction of face at time of worship

पूजन करते समय किस दिशा में होना चाहिए मुख

सनातन धर्म में पूजा पाठ और यज्ञ करना शुभ माना गया है. कोई भी सनातनी अपने देवों को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा करता है. लेकिन पूजा करने के नियम और अपने तरीके होते हैं.यदि आपने देवों को प्रसन्न करने के लिए गलत विधि से पूजा की तो इसके विपरित परिणाम भी हो सकते हैं.इसलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि पूजन के समय आपका और आपके आचार्य का मुख किस दिशा की ओर होना चाहिए.

रायपुर : सनातन धर्म में पूजा पाठ होना एक बहुत सुखद परंपरा मानी गई है. मनुष्य शुरू से ही ईश्वरवादी, आस्तिक और परमात्मा की शक्तियों पर भरोसा करने वाला रहा है. ऐसी मान्यता है कि ईश्वर की उपासना से मनोबल ऊंचा होता है. व्यक्ति की कामनाएं पूर्ण होती है और मनुष्य का विकास होता है. पूजा पाठ सत्यनारायण की कथा, रुद्राभिषेक मंत्र जाप, नवग्रह शांति, वास्तु शांति, ग्रहों की शांति एवं दोषों की शांति के लिए मनुष्य अनेक तरह के पूजा-पाठ कर्मकांड यज्ञ कर्म करता आ रहा है. इसलिए यह जानना आवश्यक है कि यजमान को और विद्वान आचार्य को किस दिशा में पूजा करने के लिए मुख करके बैठना चाहिए.



सही पूजन का पड़ने वाला प्रभाव : ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्री पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "वास्तु शास्त्र में इसका बड़ा महत्व है. इसकी महत्ता स्पष्ट दिखाई पड़ती है. पूजा-पाठ आराधना शांति का जीवन पर अनेक सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. व्यक्ति धनात्मक होता है. मनुष्य का उत्साह उमंग जोश विश्वास और ईश्वर पर आसक्ति पूजा पाठ के द्वारा बढ़ती आई है. यह सनातन परंपरा का अभिन्न अंग है पूजा करते समय यजमान का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए, और विद्वान आचार्य का मुख उत्तर दिशा की ओर होनी चाहिए. ''

कौन हैं पूर्व दिशा के स्वामी : पंडित विनीत शर्मा के मुताबिक '' यजमान का मुख पूर्व दिशा में रखकर जब पूजा की जाती है, तो समन्वय बहुत अच्छा बनता है. यजमान के पूर्व दिशा में बैठने पर सूर्य का प्रभाव मिलता है. पूर्व दिशा के स्वामी सूर्य माने गए हैं. विद्वान आचार्य जब उत्तर की ओर मुख करके बैठते हैं, तो इसके स्वामी बुध ग्रह माने गए हैं. सूर्य और बुध मित्र माने गए हैं. दोनों की युति से बुधादित्य जैसे शुभ योग का निर्माण होता है. संपूर्ण उत्तर संपूर्ण पूर्वी क्षेत्र वास्तु शास्त्र में बहुत शुभ माने गए हैं. उत्तर पूर्व का कोना ईशान कोण माना गया है. यह सबसे पवित्र स्थल माना गया है. जब हम पूजा करते हैं, तो हमारा मुख पूर्व की ओर होने से भगवान हमारे सामने सम्मुख दिखलाई पड़ते हैं."


ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्री पंडित विनीत शर्मा के मुताबिक "भगवान के मुख की दिशा पश्चिम मुखी होनी चाहिए. अनेक हनुमान जी का मंदिर दक्षिण दिशा की ओर बनाना शुभ माना गया है. दक्षिणवर्ती हनुमान जी अपने आप में सिद्ध माने गए हैं. अतः हनुमान जी की पूजा करते समय उत्तर की ओर मुख करके पूजन करना चाहिए. सामान्य रूप से सत्यनारायण कथा नवग्रह शांति पूजन करते समय यजमान को आवश्यक रूप से पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए.''

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''आचार्य विद्वान को उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठने से सकारात्मक चुंबकीय ऊर्जा मिलती है. जिसके माध्यम से क्षेत्र में पूजा के उद्देश्य प्राप्त हो पाते हैं. उत्तर और पूर्वी क्षेत्र पवित्र शुद्ध और वास्तु शास्त्र की दृष्टि से अत्यंत कल्याणकारी माने गए हैं. इस दिशा में बैठने से परस्पर आचार्य और यजमान का सीधा संबंध बनता है, जिससे कर्मकांड उचित रीति से संपन्न हो जाते हैं, और पूजा पाठ के परिणाम परमात्मा के द्वारा सफल होकर सामने आते हैं."

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