टेंशन में क्यों हैं छत्तीसगढ़ के राजनीतिक घराने ?

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Published : May 17, 2022, 8:06 PM IST

Concerns of Congress and BJP leaders increased

छत्तीसगढ़ के राजनीतिक घराने इन दिनों खासे चिंतित हैं. छत्तीसगढ़ में बीजेपी और कांग्रेस के हाईप्रोफाइल राजनीतिक घरानों की चिंता किस वजह से बढ़ी है. दोनों पार्टी में किस मुद्दे पर एक राय बनी है जिसने इन दोनों ही पार्टियों के नेताओं की नींदे हराम कर दी है. जानिए इस रिपोर्ट में

रायपुर: 15 मार्च 2022 को दिल्ली में हुई भाजपा की संसदीय समिति की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीति में वंशवाद के खिलाफ अपनी राय जाहिर की थी . मोदी ने साफ तौर पर कहा था कि "उनकी पार्टी में पारिवारिक राजनीति की इजाजत नहीं दी जा सकती". कांग्रेस पार्टी के नेताओं में भी राजस्थान के उदयपुर में हुए कांग्रेस ने नव संकल्प चिंतन शिविर में इस मुद्दे पर सहमति बन गई, कि पार्टी में एक व्यक्ति एक पोस्ट और एक परिवार, एक टिकट के नियम को अब अपनाया जाएगा. राजनीति में परिवारवाद पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राय और इसी मामले में कांग्रेसी नेताओं में बनी सहमति के बाद, भाजपा और कांग्रेस के उन नेताओं की चिंताएं बढ़ गई हैं जो अपनी अगली पीढ़ी को राजनीति के मैदान में उतारना चाहते हैं.

बीजेपी के बड़े नेता वंशवाद के खिलाफ : देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीति में परिवारवाद को लेकर अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है . मोदी परिवारवाद को लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा मानते हैं प्रधानमंत्री ने यह राय दिल्ली में हुई पार्टी की संसदीय समिति की बैठक में दो माह पहले जाहिर की थी. मोदी की मंशा के अनुरूप ही छत्तीसगढ़ बीजेपी की प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने भी अपने प्रदेश प्रवास के दौरान स्पष्ट संकेत दे दिया है कि राजनीति में वंशवाद को रोका जाएगा. प्रदेश के अलग अलग शहरों में बीजेपी की प्रदेश प्रभारी, डी पुरंदेश्वरी ने कार्यकर्ताओं की बैठक की. इन्हीं बैठकों में उन्होंने आम कार्यकर्ताओं और पार्टी नेताओं को भरोसा दिलाया कि बीजेपी में परिवारवाद को हतोत्साहित करते हुए सक्रिय कार्यकर्ताओं और नेताओं को आगामी चुनाव में मौका दिया जाएगा .

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बीजेपी के इन नेताओं के परिवार पर पड़ेगा असर : छत्तीसगढ़ में भी भाजपा के करीब आधा दर्जन से ज्यादा ऐसे नेता हैं जो अपनी अगली पीढ़ी को राजनीति में लाने की तैयारी में हैं . प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह भी राजनीति में सक्रिय रहे हैं. अभिषेक पूर्व सांसद भी हैं. बस्तर के पूर्व मंत्री केदार कश्यप और उनके भाई दिनेश कश्यप भी राजनीति में सक्रिय हैं . भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री प्रेम प्रकाश पांडेय के पुत्र भी सक्रिय राजनीति में हैं . बीजेपी के पूर्व सांसद ताराचंद साहू के पुत्र दीपक साहू और उनकी बहन भी राजनीति में सक्रिय हैं .

पार्टी के निर्देशों का करेंगे पालन : बीजेपी के पूर्व सांसद ताराचंद साहू के बेटे दीपक साहू का कहना है कि इस विषय में पार्टी के दिशानिर्देशों का पालन किया जाएगा . हस्तशिल्प बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष रहे दीपक साहू का मानना है कि "पार्टी के वरिष्ठ नेता सभी विषयों में काफी सोच विचारकर फैसला लेते हैं . हालांकि साहू ने यह भी कहा कि आगे भी वे सक्रिय राजनीति करते हुए जनता की सेवा करते रहेंगे".


कांग्रेस के कई नेताओं की बढ़ेगी चिंता : राजस्थान के उदयपुर में हुए कांग्रेस की चिंतन शिविर में एक परिवार के एक ही सदस्य को चुनाव में टिकट देने के प्रस्ताव पर लगभग सहमति बन गई है इसके बाद राजनीति में परिवारवाद की खिलाफत का मामला अब,सिर्फ बीजेपी तक ही सीमित नहीं रहा. चिंतन शिविर में कांग्रेस नेताओं के बीच बनी सहमति का पालन किया गया तब छत्तीसगढ़ की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस से जुड़े कई राजनीतिक परिवारों पर भी इसका असर पड़ेगा. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी के अंदर इस विषय को लेकर चर्चा होने लगी है. प्रदेश कांग्रेस में करीब दर्जन भर नेता ऐसे हैं जिनकी दूसरी पीढ़ी भी राजनीति में आने को तैयार है.



इन कांग्रेसी परिवारों पड़ सकता है असर : प्रदेश के पूर्व मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी विधायक सत्यनारायण शर्मा और उनके बेटे पंकज शर्मा दोनों प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हैं. प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा और उनके बेटे हरीश लखमा जिला पंचायत सुकमा के अध्यक्ष हैं. बस्तर शेर के नाम से पहचाने जाने वाले कांग्रेसी नेता स्वर्गीय महेंद्र कर्मा की पत्नी विधायक देवती कर्मा और उनके बेटे सक्रिय राजनीति से जुड़े हैं. कांग्रेस में ऐसे नेताओं की सूची काफी लंबी है जिनके परिवार के दो या इससे ज्यादा सदस्य राजनीति से जुड़े हुए हैं.

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कांग्रेसी नेताओं की भी राय बीजेपी से मिलती जुलती : प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संचार विभाग के प्रमुख प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि "पार्टी के हर फैसले का स्वागत किया जाएगा". शुक्ला का कहना है कि "चिंतन शिविर में एक परिवार एक टिकट का प्रताव रखा गया. इस प्रस्ताव पर चिंतन , मनन किया गया . अगर पार्टी ऐसा कोई फॉर्मूला लागू करती है तो उसका भी स्वागत किया जाएगा".

कांग्रेस में विभाजन की संभावना बढ़ जाएगी : राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल शर्मा का कहना है कि "राजनीति में वंशवाद किसी एक दल तक सीमित नहीं है लेकिन कांग्रेस में पुराने समय से यह वाद चल रहा है" . बाबूलाल शर्मा का मानना है कि "परिवारवाद को लेकर चिंतन शिविर में हुई चर्चा के बाद कांग्रेसी नेताओं में एक परिवार एक टिकट के फॉर्मूले पर सहमति लगभग बन चुकी है. बाबूलाल शर्मा के अनुसार कांग्रेस पार्टी में नवयुवकों का समय आने वाला है. शर्मा के मुताबिक इस फैसले से पार्टी के द्वितीय और तृतीय पंक्ति के नेताओं की उम्मीदें बढ़ेंगी और वे सक्रियता से काम करेंगे".

वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल शर्मा यह भी मानते हैं कि "कांग्रेस ने इस तरह के निर्णय पहले भी लिए लेकिन चुनाव के समय उसका कड़ाई से पालन नहीं किया गया . बाबूलाल शर्मा का यह भी मानना है कि कांग्रेस पार्टी इस फार्मूले को लागू करने में अडिग रही तो पार्टी का विभाजन, होने की संभावना प्रबल हो जाएगी . शर्मा के मुताबिक पार्टी के इस फॉर्मूले से जी- 23 सहित देश के कई वरिष्ठ नेता खुश नहीं हैं".

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