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गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: गर्भवती को खाट पर लेटाकर तय किया 3 किलोमीटर का सफर, फिर मिला एबुलेंस

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Published : Sep 30, 2020, 2:07 PM IST

gaurela pendra marwahi news
गर्भवती को खाट पर लेटाकर तय किया 3 किलोमीटर का सफर

जिले के मरवाही ब्लॉक के बैगा आदिवासी गांव भुकभुका में गर्भवती महिला को तेज प्रसव पीड़ा हुई, जिसे परिजनों ने खाट में लेटाकर 3 किलोमीटर तक का सफर तय किया और संजीवनी एक्सप्रेस तक पहुंचाया.

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: जिले के मरवाही ब्लॉक के बैगा आदिवासी गांव भुकभुका में आज भी सड़क सुविधा नहीं है. इस गांव में रहने वाली एक गर्भवती महिला को तेज प्रसव पीड़ा हुई, जिसे परिजनों ने उसे खाट में लेटाकर 3 किलोमीटर तक का सफर तय किया और संजीवनी एक्सप्रेस तक पहुंचाया.

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गर्भवती को खाट में लेटाकर संजीवनी एक्सप्रेस तक पहुंचाया गया

20 वर्ष की भानमती को जब प्रसव पीड़ा शुरू हुई, तो परिजनों ने तत्काल गांव की मितानिन से संपर्क किया. मितानिन भानमती के घर पहुंची और उसकी हालत को देखते हुए उसे तुरंत अस्पताल ले जाने की बात कही. इसके बाद संजीवनी एक्सप्रेस को 108 पर कॉल करके सूचना दी गई. कुछ देर बाद ही एंबूलेंस आ तो गई, लेकिन वह गर्भनवती के गांव से 3 किलोमीटर पहले ही रूक गई.

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गांव में नहीं है सड़क सुविधा

खाट में लेटाकर गर्भवती को एंबुलेंस तक पहुंचाया गया

संजीवनी एक्सप्रेस के स्टाफ रामकुमार और उनके सहयोगी ने वहीं रूककर परिजनों को रास्ता ना होने की समस्या से अवगत कराया, तो दूसरी ओर दर्द से कराहती भानमती की प्रसव पीड़ा देखते हुए परिजन भी चिंतित हो रहे थे. जिसके बाद परिजनों ने एक खाट को रस्सी से बांधकर उसका झूला बनाया और गर्भवती को उसमें लेटाकर संजीवनी एक्सप्रेस तक पहुंचाया. गर्भवती को एंबुलेंस की मदद से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया, जहां उसने एक सुरक्षित बच्चे को जन्म दिया है. जहां जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ्य हैं.

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गांव तक नहीं पहुंच पाती संजीवनी एक्सप्रेस

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यह गांव मरवाही विकासखंड के मगुरदा ग्राम पंचायत का हिस्सा है. इस गांव में 20 से 25 घर हैं, जो छत्तीसगढ़ के विशेष आदिवासी समुदाय (धनवार,बैगा और गोंड़) समाज के लोग हैं. घने जंगलों के बीच इन परिवारों का जीवन इस जंगल पर ही आश्रित है. न ही इनके लिए किसी सड़क की सुविधा है, न ही कोई स्वास्थ्य व्यवस्था है.

इस गांव तक पहुंचने के लिए आज भी यहां रहने वाले लोगों को खेतों की पगडंडियों का सहारा लेना पड़ता है. यहां रहने वाले ग्रामीणों को राशन लाने के लिए भी बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. गांव तक पहुंचने के लिए आवागमन करने के लिए सड़क नहीं होने से इन्हें सबसे ज्यादा परेशानियां होती है.

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