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India Independence Day 2023: छत्तीसगढ़ के आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी की कहानी, जिन्होंने महात्मा गांधी के लिए हाथों से बनाए थे कपड़े

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Published : Aug 14, 2023, 6:54 PM IST

Updated : Aug 15, 2023, 8:20 AM IST

Tribal freedom fighter of Chhattisgarh
महात्मा गांधी के लिए हाथों से बनाए थे कपड़े

India Independence Day 2023 स्वतंत्रता की लड़ाई में छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है.आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान सरगुजा के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों का पता चला.इन्हीं में से तीन जनजातीय सेनानी भी थे.जिनमें से एक ने महात्मा गांधी से चरखा चलाना सीखा.इसके बाद बापू को अपने हाथों से कपड़ा बनाकर भेंट किया.

छत्तीसगढ़ का आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी

सरगुजा : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का छत्तीसगढ़ से नाता रहा है.आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी छत्तीसगढ़ आए थे. इस दौरान मातृभूमि को अंग्रेजों से मुक्त करवाने के लिए आदिवासी इलाके से कई लोग उनके साथ जुड़े. सरगुजा क्षेत्र के 39 स्वतंत्रता संग्रामी सेनानियों की खोज हाल ही में हुई है.इनमें से कुछ स्वतंत्रता सेनानियों को महात्मा गांधी ने आजादी के बाद आजीविका चलाने के लिए मदद की. जिसमें सेनानियों ने बापू से चरखा चलाना सीखा.यही नहीं चरखा से धागा निकालकर इन्होंने उसके कपड़े भी बनाए और गांधी जी को भेंट किया. ऐसे ही तीन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महली भगत, मांझीराम गोंड, राजनाथ भगत हैं. जिनके बारे में ETV भारत आपको बता रहा है.

महली भगत का जीवन परिचय: सबसे पहले बात करते हैं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महली भगत का. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महली भगत का जन्म 1 जनवरी 1914 में बिहार के रांची जिला अन्तर्गत घाघरा थाना के गुनिया ग्राम के एक गरीब किसान परिवार में हुआ था. पिता लोहरा उरांव और माता किसी बाई थी. ये चार बेटों में सबसे छोटे थे. इनकी प्राथमिक शिक्षा ग्राम गुनिया में और माध्यमिक शिक्षा सन 1930 में मिशन इंग्लिश मीडियम स्कूल लोहरदगा से पूरी हुई. बचपन में ही पिता की मौत और परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख सके. घर पर ही खेती कार्य में जुड़ गए. एक समय आया जब इन्होंने 16 साल की उम्र में घर छोड़ दिया और आजादी की लड़ाई में शामिल होकर देश को आजाद करने में जुट गए.

महात्मा गांधी को हाथों से कपड़ा बनाकर दिया: 22 सितम्बर 1925 में अखिल भारतीय चरखा संघ की स्थापना हुई. इसके बाद चारों तरफ चरखा प्रशिक्षण केन्द्र खुलने लगे. चरखे से लोग जुड़कर आत्मनिर्भर और स्वतन्त्रता संग्राम के लिए प्रेरित होने लगे. ऐसे ही जनजातीय समुदाय के एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महली भगत थे. वे महात्मा गांधी के राष्ट्रीय आन्दोलन और जतरा उरांव के ताना भगत आंदोलन से काफी प्रभावित थे. वे महात्मा गांधी के सहयोग से चरखा प्रशिक्षण केंद्र गये और आजादी की लड़ाई में शामिल होकर देश को आजाद कराने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई.

मांझीराम गोंड, जो गांधी जी को मानते थे अपना गुरु: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मांझीराम गोंड का जन्म सन 1928 में फुन्दुरडिहरी पटेल पारा, अंबिकापुर में हुआ था. पिताजयराम गोंड एक किसान थे. घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण पढ़ाई नहीं कर सके थे. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मांझीराम गोंड बचपन से ही देश प्रेमी, संघर्षशील, मृदुभाषी, सहयोगी व्यवहार के थे. वे जब 10 से 12 साल के थे, उस समय देश में आजादी की लड़ाई अपने चरम पर थी. इस दौरान मांझीराम महात्मा गांधी के आंदोलन से काफी प्रभावित हुए. अपने पिता से देशभक्ति की प्रेरणा लेकर देश सेवा के लिए बचपन से ही कूद गए. तिरंग लेकर वे गांव गांव घूमने लगे और लोगों को आजादी को लेकर जागरूक करने लगे. अंग्रेजों को उनका ये काम पसंद नहीं आया. देश भक्ति का प्रचार प्रसार और लोगों को जागरूक करने के जुर्म में मांझीराम गोंड को जेल की सजा काटनी पड़ी. वे अंबिकापुर जेल में ही रहे. 1940 में 3 दिन और 1942 में 21 दिन अंबिकापुर जेल में रखा गया.

राजनाथ भगत: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजनाथ भगत, ताना भगत आन्दोलन से प्रेरित होकर संग्राम में शामिल हुए थे. ताना भगत आंदोलन बीसवीं शताब्दी में उरांव आदिवासियों द्वारा एक आंदोलन की शुरुआत 1914 में की गई. जिसे ताना भगत आंदोलन का नाम दिया गया. इस आंदोलन का उद्देश्य समाज में फैली सामाजिक बुराइयों को दूर करते हुए उन्हें शोषण से बचाना था. जिस तरह राष्ट्रीय स्तर पर महात्मा गांधी जी अपने अहिंसक नीतियों से भारतीय जनता को स्वतंत्रता दिलाने के लिए लड़ाई लड़ रहे थे. ठीक उसी तरह छोटे स्तर पर ताना भगत आंदोलन था. इस आंदोलन का नेतृत्व जतरा उरांव कर रहे थे. इस आन्दोलन का प्रभाव झारखण्ड के विशुनपुर, घाघरा, गुमला, रायडी चौनपुर, पालकोट, सिसई, लापुंग और मंडर आदि क्षेत्रों में फैला था. 1920 में महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन शुरू हआ तो ताना भगत के सभी आंदोलनकारी इसी राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बन गए. ताना भगत के अनुयाई तिरंगा को देवता और महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानते हैं. इसी आन्दोलन का गहरा प्रभाव राजनाथ भगत पर पड़ा और उन्होंने देश सेवा की चुनौती को आत्मसात किया. आजादी के बाद भी ये कांग्रेस से जुड़े रहे. 1950 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महली भगत से मुलाकात कर रांची से कांग्रेस की प्रारंभिक सदस्यता ग्रहण की और देश सेवा में लगे रहे.


दूर दराज के गांवों का किया दौरा : आजादी के बाद जिन स्वतंत्रता सेनानियों को भुला दिया गया, उनकी मौत के बाद परिवार भी गुमनामी की जिंदगी जीने के लिए मजबूर हो गया. लिहाजा सरगुजा के शोधकर्ता अजय चतुर्वेदी दूरस्थ इलाकों में बसे गांवों में जाकर स्वतंत्रता सेनानियों से मिल रहे हैं और परिजनों से बातकर जानकारी जुटा रहे हैं.

"शोध में सरगुजा में 39 स्वतंत्रता सेनानी मिले. जिनमें से 3 सेनानी जनजातीय समाज के थे. मैं इनके गांव घर तक गया. परिवार के सदस्यों से बातचीत की. उनके घर में मौजूद दस्तावेज, ताम्रपत्र जैसी निशानियां मिली. परिवार से बातचीत करने पर कई कहानियों का पता चला. तीन सेनानियों में से एक मांझी राम गोंड़ का जन्म सरगुजा में ही हुआ था. बाकि के दो महली भगत और राजनाथ भगत का जन्म पड़ोसी राज्य अब के झारखंड में हुआ था. लेकिन इन्होंने अपना जीवन सरगुजा में बिताया.महली भगत ने अपने हाथों से चरखा चलाकर गांधी जी के लिए वस्त्र बनाए थे. " - अजय चतुर्वेदी शोधकर्ता

स्वतंत्रता सेनानी का बेटा जगा रहा आजादी की अलख
गांव का गांधी कहलाने वाले स्वतंत्रता सेनानी की कहानी
आजादी के खातिर ट्रेन में कलेक्टर को मारी थी सेनानी ने गोली

आजादी के जनजातीय नायक : सेंट्रल यूनिवर्सिटी बिलासपुर छत्तीसगढ़ के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल,कुलसचिव प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार, इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रवीण कुमार मिश्रा ने मिलकर एक पुस्तक लिखी है. इतिहास की इस पुस्तक में 39 लेखकों के आलेख को शामिल किया गया है. जिसमें लेखक अजय कुमार चतुर्वेदी का आलेख “स्वतंत्रता संग्राम में सरगुजा अंचल के जनजातियों का योगदान“ भी शामिल है. इसमें बलरामपुर जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महली भगत, राजनाथ भगत और सरगुजा जिले के माझीराम गोड़ की जीवन कथा भी शमिल है. सरगुजा के तीन जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जीवन गाथा को राष्ट्रीय स्तर की पुस्तक में स्थान मिला है. इनकी पुस्तक “सरगुजा अंचल के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी“ को जनजातीय कार्य मंत्रालय भारत सरकार ने अगस्त 2022 में प्रकाशित किया था.

Last Updated :Aug 15, 2023, 8:20 AM IST
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