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National Girl Child Day : पीरियड्स के दौरान रखें इन बातों का ध्यान तभी बालिकाओं को बना सकेंगे सशक्त

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Published : Jan 24, 2023, 12:11 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

national girl child day
राष्ट्रीय बालिका दिवस

हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है. इस दौरान बालिकाओं के उत्थान के तमाम दावे और वादे देखने और सुनने को मिलते हैं. लेकिन जीवन की इस नाजुक अवस्था को अक्सर हल्के में ले लिया जाता है. जो बालिकाओं के भविष्य के लिए काफी घातक साबित हो सकता है. हम बात कर रहे हैं बच्चियों के बचपने से टीनएजर में प्रवेश करने की अवस्था. इसी एज में लड़कियों को पीरियड्स शुरू होते हैं. लेकिन हैरानी की बात है कि उम्र के इस बड़े बदलाव के बारे में बच्चियों को पता ही नहीं रहता है और वे शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान होती रहती है. national girl child day 2023

मासिक धर्म शुरू होने पर ध्यान रखने वाली बातें

सरगुजा : 9 वर्ष से 17 साल की उम्र की लड़कियों को बालिका माना जाता है. इसी उम्र में शरीर में हार्मोनल बदलाव के साथ साथ समझ और सामाजिक दायरा भी विकसित होता है. इस नाजुक अवस्था में ही बालिकाओं के जीवन में एक बड़ी चुनौती सामने आती है 'माहवारी' के रूप में. माहवारी ना सिर्फ शरीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी बालिकाओं को काफी प्रभावित करती है. लड़कियों की उम्र की इस अवस्था में उन्हें सही मार्गदर्शन की जरूरत होती है. जो उन्हें नहीं मिल पाती है. इस मामले में बच्चियों के साथ ही पैरेंट्स को भी जागरूक करने की जरूरत है.

अभी भी भारत में लोग माहवारी पर बात करने से कतराते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों के सामने इसका जिक्र करना भी सामाजिक अपराध जैसे माना जाता है. इसलिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि बालिकाओं को उम्र की इस अवस्था मे किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिये. इसके लिए हमने स्त्री रोग विभाग की विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ अविनाशी कुजूर, पोषण विभाग की डाइटीशियन सुमन सिंह और माहवारी प्रबंधन पर काम करने वाले सरगुजा के पैडमैन अंचल ओझा से बातचीत की है.

हाइजीन का ध्यान रखने की जरूरत: स्त्री रोग विभाग की प्रमुख डॉक्टर अविनाशी कुजूर बताती हैं " बालिकाएं जैसे 9-10 की उम्र से बड़े बच्चों को 18 वर्ष तक बालिका कहते हैं, इस दौरान उनका खानपान उनका मेडिकेशन बहुत इम्पोर्टेन्ट होता है. क्योंकि ये स्वस्थ्य रहेंगी तो हमारा भविष्य भी अच्छा रहेगा. इस उम्र में उनको अपने खानपान, विटामिन्स और वैक्सीनेशन पर ध्यान देना होता है. ही वर्ष है जब उनका मासिक धर्म शुरू होता है. इस समय उन्हें अपने हाइजीन का खास ध्यान रखना चाहिए. "

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ढीले कपड़े पहने: डॉ. कुजूर आगे बताती है "सरकार की तरफ से सस्ते दर में पैड उपलब्ध कराए जाते हैं उनका उपयोग करना चाहिए. साफ सफाई का स्पेशल ध्यान रखना चाहिए. पीरियड्स के दौरान हल्के कपड़े पहनना चाहिए. ज्यादा टाइट कपड़े नहीं पहनना चाहिए. हल्का भोजन जैसे खिचड़ी है दलिया है ये खाना चाहिए, तली हुई चीजें नही खाना चाहिये, उस समय ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिय और तरल पदार्थ का सेवन अधिक करना चाहिए. "

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म्यूजिक, योग और ध्यान से मिलेगा आराम: "इस समय हमारे शरीर में पानी की कमी हो सकती है. तरल पदार्थ से इसकी पूर्ती होती है. उस दौरान होने वाले दर्द से भी छुटकारा मिलता है. इसके अलावा इस समय वो अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें. कभी कभी ये देखा जाता है कि लड़कियां चिड़चिड़ी हो जाती हैं जिससे तनाव हो सकता है तो इस समय वो हल्का म्यूजिक सुन सकती हैं और ध्यान या योग से भी मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर रख सकती हैं."

संतुलित भोजन जरूरी: आहार एवं पोषण विभाग से डाइटीशियन सुमन सिंह बताती हैं " जिन बलिकाओं को माहवारी से संबंधित परेशानी होती हैं. जैसे की पीरियड्स का समय पर ना आना या बहुत जल्दी आ जाना, या बहुत ज्यादा रक्त के स्त्राव होना. इस तरह की समस्या आ जाती है इन सबसे बच्चे को तो परेशानी होती ही है. इसलिये बालिकाओं को हमे शुरू से ही सपोर्ट देना चाहिये. उन्हें अच्छा संतुलित भोजन देना चाहिए. जिससे वो आगे माहवारी होने पर समस्याओँ का सामना न करना पड़े."

ये आहार देंगे लाभ: कैलिशयम के लिए रागी, ज्वार, बाजरा, फल, सूखे मेवे, का सेवन आहार में शामिल करना चाहिये. आयरन के लिये हमें अंकुरित चना, मूंग, गुड़, खजूर, अनार, चुकंदर, संतरा, मौसंबी, पपीता भी लेना चाहिये."

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स्कूल कॉलेज में हो माहवारी की चर्चा: माहवारी प्रबंधन पर जागरूकता फैलाने और ग्रामीण बालिकाओं को निःशुल्क पैड देने वाले सरगुजा के पैडमैन अंचल ओझा कहते हैं " जब बालिका की बात हो माहवारी स्वच्छता की बात हो तो मेरा यह मानना है कि माहवारी को लेकर न तो परिवार में बात की जाती है और न ही स्कूल कॉलेजों में बातचीत की जाती है. स्कूल कॉलेज में थोड़ी थोड़ी जागरूकता आ रही है लेकिन उस स्तर पर अब भी बात नहीं की जाती. जब लड़की को पहली बार माहवारी आ रही है तो प्राथमिक और मिडिल स्कूलों से ही इस पर बात हो. टीचर उन्हें बताएं कि जब माहवारी आये तो उन्हें किन बातों का ध्यान रखना है. "

घर में समाज में हो चर्चा: "दूसरी बात है कि घर में या हमारे समाज में भी माहवारी को लेकर बातचीत नहीं होती है. सबसे पहले मां को चाहिए कि वो बच्ची को इसके बारे में बताएं. घर के अन्य बड़े लोग चाहे पिता हो या भाई हो उनको भी इस पर बात करने की जरूरत हैं. क्योंकि जब पहली बार माहवारी होती है तो बच्चियों को यह लगता है कि ये क्या हो गया, कोई बीमारी हो गई है क्या. कई तरह की भ्रांतियां हैं इसलिए इस पर ज्यादा से ज्यादा चर्चा होना जरूरी है ताकि उन्हें पहले से पता हो. "


4 से 6 घंटे में बदलें पैड: "इसके बाद स्वच्छता के प्रति जागरूकता हो, कपड़ा या पैड का उपयोग कैसे करें. कपडा कॉटन का होना चाहिये. उसे गर्म पानी में धोना चाहिये और पूरी तरह सुखाना चाहिये. पैड या कपड़ा जो भी उपयोग करें उसे 4 से 6 घंटे में बदल देना चाहिए. बालिकाओं की स्वच्छता की दृष्टि से यह बेहद जरूरी है. क्योंकि कई ऐसी बीमारियां हैं जो माहवारी स्वच्छता में लापरवाही करने से होती हैं. इसलिए सरकार, समाज और जनप्रतिनिधियों से मेरी अपील है कि स्कूल कॉलेजों में इस पर चर्चा जरूरी है. जब तक चर्चा शुरू नहीं होगी तब तक प्रबंधन संभव नहीं है."

Last Updated :Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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