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मुखाग्नि के लिए पिता के शव को हत्या की सजा काट रहे बेटे का इंतजार, कोरबा में पैरोल के लिए भटक रहा परिवार

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Published : Dec 24, 2021, 3:39 PM IST

Updated : Dec 24, 2021, 4:25 PM IST

कोरबा में एक पिता की असामयिक मौत (Untimely death of a father in Korba) हो गई. आरा मशीन बस्ती निवासी पिता की मौत के बाद शव को पोस्टमार्टम हाउस में रखा गया. अब मृतक के परिजन पिता को मुखाग्नि देने की दिशा में पिछले तीन दिनों से कोरबा कलेक्टर का चक्कर काट रहे हैं लेकिन बिलासपुर में सजा काट रहे हत्या का दोषी पुत्र (son convicted of murder) को मात्र एक घंटे के लिए पैरोल पर जेल से बाहर नहीं आने दिया जा रहा है.

Son waits for father's fire in Korba
कोरबा में पिता की मुखाग्नि के लिए बेटे का इंतजार

कोरबाः कोरबा में एक पिता की असामयिक मौत (Untimely death of father in Korba) के बाद शव को मुखाग्नि देने के लिए हत्या का दोषी पुत्र (son convicted of murder) को पैरोल पर रिहा नहीं किया जा रहा है. जिसके बाद परिजन पिछले तीन दिनों से कलेक्टर के यहां गुहार लगा रहे हैं. बताया जा रहा है कि पिता की अंतिम इच्छा (father last wish) थी कि उनकी चिता को मुखाग्नि उनका इकलौता इकलौता बेटा ही दे.

कोरबा में पिता की मुखाग्नि के लिए बेटे का इंतजार

कोरबा शहर के आरा मशीन बस्ती निवासी राहत दास की 21 दिसंबर को असामयिक मौत हो गई थी. उन्हें पहले उल्टियां शुरू हुईं और फिर अस्पताल ले जाते समय बीच रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया. उन्होंने मौत से पहले इच्छा (wish before death) व्यक्त की थी कि उनके चिता को मुखाग्नि उनका पुत्र दे. उनका पुत्र रतन दास इन दिनों हत्या के एक मामले में बिलासपुर जेल में 7 साल की सजा काट रहा है. मृतक का शव पोस्टमार्टम हाउस में रखा गया है.

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डीएम के दहलीज का चक्कर काट रही बहन

अब परिजन चाह रहे हैं कि रतन को एक घंटे के लिए पैरोल (parole for one hour) पर छोड़ा जाय ताकि वह अपने पिता की इच्छानुसार मुखाग्नि दे सके. रतन की बहन अपने भाई को जेल से चंद लम्हों के लिए बाहर किए जाने की फरियाद लेकर तीन दिनों से डीएम की दहलीज पर चक्कर काट रही है. इस मामले में जिला एवं सत्र न्यायालय के अधिवक्ता नूतन सिंह ठाकुर ने बताया कि मानवीय पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इस तरह के प्रकरण में अर्जेंट पैरोल का प्रावधान है.

परिजन सीधे जिला दंडाधिकारी के समक्ष आवेदन पेश कर सकते हैं. जिला दंडाधिकारी परिवार की जरूरत के मद्देनजर पैरोल की अवधि को निर्धारित करते हुए जेलर को आदेश जारी करते हैं. जिसके बाद इस तरह के मामलों में अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पुत्र को कुछ समय के लिए जेल से बाहर आने की अनुमति मिलती है. सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए जेलर को यह निर्णय लेना होता है. हालांकि पिछला तीन दिन बीत जाने के बाद भी रतन दास को पैरोल पर छोड़ने की प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकी है.

Last Updated :Dec 24, 2021, 4:25 PM IST
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