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आखिर गर्मी में ही क्यों नक्सली बड़े हिंसक वारदातों को देते हैं अंजाम, जानिये एक्सपर्ट की राय

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Published : Feb 7, 2022, 10:55 PM IST

ठंड के मौसम में विजिविलिटी और आवागमन की समस्या के कारण नक्सलियों की मूवमेंट घट जाती है. जबकि गर्मी का मौसम आते ही नक्सली एक बार फिर से सक्रिय हो जाते हैं. इसलिए नक्सली अपनी गतिविधियों को गर्मी के मौसम में ही ज्यादातर अंजाम देते हैं.

big Naxalite attack decreases in chhattisgarh due to visibility and traffic problem in winter
आखिर गर्मी में ही क्यों नक्सली बड़े हिंसक वारदातों को देते हैं अंजाम, जानिये एक्सपर्ट की राय

रायपुर : कुछ दिनों में ठंड समाप्त होने वाली है. गर्मी का मौसम शुरू होने वाला है. गर्मी का मौसम नक्सलियों के लिए पसंदीदा मौसम है. क्योंकि गर्मी के मौसम में ही नक्सली बड़ी हिंसक घटनाओं को अंजाम देते हैं. आंकड़ों पर नजर डालें तो अब तक जितनी बड़ी नक्सली हिंसक घटनाएं हुई हैं, वह गर्मी के मौसम में हुई हैं. तो आइये जानते हैं कि आखिर ठंड और बरसात के मौसम में सामान्य तौर पर करीब-करीब निष्क्रिय रहने वाले नक्सली गर्मी के मौसम में क्यों इतने एक्टिव हो जाते हैं. आइए पहले एक नजर डालते हैं उन बड़ी नक्सली घटनाओं पर जिसे नक्सलियों ने गर्मी के मौसम में अंजाम दिया.
23 मार्च 2021 : नारायणपुर में नक्सलियों ने आईईडी से जवानों की बस उड़ा दी, जिसमें 5 जवान शहीद हो गए जबकि 10 घायल हुए थे.
21 मार्च 2020 : सुकमा के मीनपा में हुए हमले में 17 जवान शहीद हो गये थे.
28 अप्रैल 2019 : बीजापुर में नक्सलियों ने पुलिस जवानों पर हमला किया था. इसमें दो पुलिस जवान शहीद हो गए तथा एक ग्रामीण गंभीर रूप से घायल हो गया.
9 अप्रैल 2019 : दंतेवाड़ा में लोकसभा चुनाव में मतदान से ठीक पहले नक्सलियों ने चुनाव प्रचार के लिए जा रहे भाजपा विधायक भीमा मंडावी की कार पर हमला किया था. हमले में भीमा मंडावी के अलावा उनके 4 सुरक्षाकर्मी भी शहीद हुए थे.
19 मार्च 2019 : दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले में उन्नाव के रहने वाले सीआरपीएफ जवान शशिकांत तिवारी शहीद हो गए. वहीं पांच अन्य लोग भी घायल हो गए थे.
24 अप्रैल 2017 : सुकमा में लंच करने बैठे जवानों पर घात लगाकर नक्सलियों ने हमला किया था. इसमें 25 से ज्यादा जवान शहीद हो गए थे.
1 मार्च 2017 : सुकमा में अवरुद्ध सड़कों को खाली कराने के काम में जुटे सीआरपीएफ जवानों पर घात लगाकर हमला किया गया था. इसमें 11 जवान शहीद जबकि 3 से ज्यादा घायल हो गए थे.
11 मार्च 2014 : झीरम घाटी के पास के एक इलाके में हुए नक्सली हमले में 15 जवान शहीद हो गए थे जबकि एक ग्रामीण की भी इसमें मौत हुई थी.
12 अप्रैल 2014 : बीजापुर और दरभा घाटी में आईईडी ब्लास्ट में 5 जवानों समेत 14 लोगों की मौत हो गई. इनमें 7 मतदान कर्मी भी थे. हमले में सीआरपीएफ के 5 जवानों समेत एंबुलेंस चालक और कंपाउंडर की भी मौत हो गई थी.
दिसंबर 2014 : सुकमा के चिंता गुफा इलाके में एंटी नक्सल ऑपरेशन चल रहा था. सीआरपीएफ जवानों पर नक्सलियों ने हमला कर दिया था. इस हमले में 14 जवान शहीद हो गए थे जबकि 12 लोग घायल हुए थे.
25 मई 2013 : (झीरम घाटी हमला) नक्सलियों ने कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला कर दिया था. इसमें कांग्रेस के 30 नेता और कार्यकर्ताओं की मौत हो गई थी. इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार, दिनेश पटेल और योगेंद्र शर्मा सहित कई अन्य कांग्रेसी नेता शामिल थे.
29 जून 2010 : नारायणपुर के थोड़ा में सीआरपीएफ जवानों पर नक्सली हमले में पुलिस के 27 जवान शहीद हो गए थे.
17 मई 2010 : दंतेवाड़ा से सुकमा जा रही एक यात्री बस में सवार जवानों पर नक्सलियों ने बारूदी सुरंग लगाकर हमला किया था. इसमें 12 विशेष पुलिस अधिकारी सहित 36 लोग मारे गए थे.
6 अप्रैल 2010 : दंतेवाड़ा के तालमेटाला में सुरक्षाकर्मियों पर हुआ हमला दंतेवाड़ा का सबसे बड़ा नक्सली हमला है. इसमें सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हो गए थे.
12 जुलाई 2009 : राजनांदगांव में घात लगाकर किए गए नक्सली हमले में पुलिस अधीक्षक वीके चौबे समेत 29 जवान शहीद हुए थे.
9 जुलाई 2007 : एर्राबोर उरपलमेटा में सीआरपीएफ और जिला पुलिस बल के जवान नक्सलियों की सर्चिंग कर बेस कैंप लौट रहे थे. इस दल पर नक्सलियों ने हमला कर दिया था, जिसमें 23 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे.
15 मार्च 2007 : छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने पहली बार 15 मार्च 2007 को बीजापुर के रानीबोदली कैंप पर हमला किया था. इस हमले में 55 जवान शहीद हो गए थे.

पिछले 3 सालों में हुई नक्सली घटनाएं और उसमें मारे गए नक्सली और शहीद जवानों के आंकड़े

सालनक्सली घटनाएंनक्सली मारे नक्सली का समर्पणनक्सली गिरफ्तारजवान शहीद
20193317931550122
20203334134443946
20212544755549946

2015 से 2018 तक की मुठभेड़, मारे गए आमजन, मारे गए नक्सली और शहीद जवानों के आंकड़े

सालमृत नागरिकशहीद जवानमृत नक्सली
20155245 46
20166040 135
201758 59077
20185953124

इन आंकड़ों से साफ है कि पिछले तीन सालों में नक्सली घटनाओं में काफी कमी आई है. वहीं आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की संख्या बढ़ी है. साथ ही काफी संख्या में नक्सलियों को गिरफ्तार भी किया गया है. हालांकि मरने वाले नक्सलियों और शहीद जवानों की संख्या करीब-करीब एक बराबर ही रही है. बावजूद इसके नक्सलियों पर नकेल कसने में गृह विभाग काफी हद तक कामयाब रहा है. नक्सल मामलों के जानकार भी मानते हैं कि नक्सलियों द्वारा गर्मी में बड़ी हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया जाता है. नक्सल एक्सपर्ट वर्णिका शर्मा की मानें तो गर्मी के मौसम में नक्सली घटनाएं बढ़ने के पीछे के तीन प्रमुख कारण हैं.

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पहला कारण है टेरेंट
नक्सल एक्सपर्ट वर्णिका शर्मा ने बताया कि आमतौर पर शीतकालीन मौसम में नक्सली हिंसक घटनाओं और हमलों की रणनीति तैयार करते हैं. इस रणनीति को गर्मी के मौसम में अंजाम देते हैं. उस दौरान लोगों को लगता है कि नक्सली निष्क्रिय हो गए हैं. लेकिन गर्मी के मौसम में यह नक्सली अचानक सक्रिय हो जाते हैं. इसके पीछे तीन मुख्य कारण होते हैं. कोई भी ऑपरेशन हो या फिर काउंटर ऑपरेशन, उसमें सबसे पहला फैक्टर होता है वहां का टेरेंट. टेरेंट का मतलब है वहां की ज्योग्राफिकल कंडीशन. ज्योग्राफिकल कंडीशन में बहुत सारी चीजें आ जाती हैं. वहां का उस समय मौसम कैसा है? वहां पर विजिबिलिटी क्या है? जो उस समय कोई भी ऑपरेशन एक्टिविटीज को प्रभावित करती हैं.

दूसरा कारण है मोबिलिटी
वर्णिका शर्मा ने बताया कि जब आप अन्य दिनों या अन्य किसी मौसम में होते हैं तो आपकी जो टुकड़ी रहती है, वह तेज गति से मूव नहीं कर पाती. जबकि गर्मी के दिनों में यह सारी चीजें आसानी से पारदर्शिता के साथ तेज गति से मूव कराई जा सकती हैं. इसके अलावा कई जगहों पर रुक-रुककर और पड़ाव डालकर भी टुकड़ियां आगे बढ़ सकती हैं.

तीसरा कारण लॉजिस्टिक
वर्णिका ने बताया कि इस समय लॉजिस्टिक की सप्लाई भी अन्य स्थानों से बहुत सुगमता से की जा सकती है. यह सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है. इसकी वजह से माओवादी गर्मी के मौसम को किसी भी प्रकार के ऑपरेशन और एक्टिविटी के लिए बहुत उत्तम मानते हैं. अब देखने वाली बात है कि आगामी दिनों में शुरू होने वाले गर्मी के मौसम में क्या नक्सली एक बार फिर अपनी हिंसक घटनाओं को अंजाम देने में कामयाब रहते हैं. या फिर उन घटनाओं को नाकाम करने में जवान सफल होते हैं.

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