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UP के साथ गांवों की अदला-बदली पर भड़के ग्रामीण, कहा- हम बिहारी हैं और बिहारी ही रहना चाहते हैं

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Published : Nov 29, 2021, 11:32 AM IST

अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो बिहार और उत्तर प्रदेश की सरकारें जल्दी ही एक दूसरे के साथ 7 गांवों की अदला-बदली कर सकती हैं. इसके लिए तैयारी भी शुरू हो गई है. सरकार के इस कदम से ग्रामीण भड़क गये हैं. वे बिहार में ही रहना चाहते हैं.

गांवों की अदला-बदली
गांवों की अदला-बदली

बेतिया: यदि सब कुछ योजना के मुताबिक रहा तो उत्तर प्रदेश के 7 गांव जल्द ही बिहार के हो जाएंगे और बिहार के सात गांव यूपी (7 villages of up and bihar will be shifted) के हवाले हो जायेगा. दोनों राज्य सरकारों में सहमति के बाद इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार के पास भेजा जा रहा है. केंद्र की इजाजत के बाद दोनों ओर के गांवों की अदला-बदली होगी.

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इस सीमांकन के तहत पश्चिमी चंपारण के सात गांव यूपी को (UP will get seven villages of West Champaran) मिलेंगे. वहीं, कुशीनगर के 7 गांव पश्चिमी चंपारण को मिलेंगे (West Champaran will get 7 villages of Kushinagar). सात गावों की अदला-बदली के प्रस्ताव को दोनों राज्यों से मंजूरी मिल चुकी है. इधर, सरकार के इस फैसले से ग्रामीण नाराज हो गये हैं. वे बिहार में रहना चाहते हैं.

सरकार के इस प्रस्ताव का कुछ ग्रामीणों ने समर्थन किया है लेकिन कुछ ऐसे भी गांव वाले हैं जिन्हें सरकार का यह फैसला गले से नहीं उतर रहा. गांव वालों का कहना है कि वो बिहार में ही रहना चाहते हैं. वो बिहारी हैं और आजीवन बिहारी ही रहना चाहते हैं. बंटवारा न होने के समर्थन में बिहार के मंझरिया गांव के ग्रामीणों की दलील है कि मंझरिया से बगहा की दूरी 28 किलोमीटर है. जबकि कुशीनगर की दूरी 40 किलोमीटर है. फिर हम यूपी में क्यों जाएं? पहले जब सड़कों का अस्तित्व भी नहीं था, तब इस गांव का स्थानांतरण नहीं हुआ. अब तो हालात भी बदल चुके हैं.

गावों की अदला-बदली के प्रस्ताव से नाराज ग्रामीण

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि हम बिहारी हैं और बिहारी ही रहना चाहते हैं. हमें बिहार और यूपी में गांवों की अदला बदली (Swapping of villages in Bihar and UP) मंजूर नहीं है. बिना स्थानीय लोगों की सहमति से सरकार ने इतना बड़ा फैसला कैसे ले लिया है. हमें यह मान्य नहीं है. अब तो गांव में जरूरी सुविधाएं भी पहुंच गई हैं. यह 10 साल पहले करना चाहिए था जब उनको कोई बुनियादी सुविधा नहीं मिल रहीं थी. अब तो जो लोग पलायन कर यूपी चले गए थे, वे भी वापस अपने गांव की ओर लौट रहे हैं.

गांव वालों ने ईटीवी भारत को बताया कि (Bihar villages on up border) ऐसी स्थिति गंडक पार कई ऐसे गांवों कि है जिनका जिला व अनुमंडल की दूरी मंझरिया व सेमरा, लबेदहा से उनके अपेक्षा काफी कम है. उदाहरण के तौर पर, गंडक पार का ठकरहा प्रखंड एक दिशा से गंडक नदी से घिरा है तो वहींं तीन दिशा से यूपी से घिरा हुआ है. इसकी अनुमंडल की दूरी 100 किमी व जिला की दूरी 160 किमी है. बावजूद इसके इन क्षेत्रों में सरकार अदला-बदली नहीं कर रही है. जहां सभी सुविधा उपलब्ध हैं वहां अदला-बदली करने का प्रस्ताव उन्हें मान्य नहीं है.

राज्यसभा सांसद सतीश चंद्र दुबे का कहना है कि गांव वाले अदला-बदली का विरोध कर रहे हैं. हम ग्रामीणों की मांग के साथ हैं. हम इसके लिए राज्य व केंद्र सरकार से पत्राचार करेंगे. विधायक धीरेन्द्र प्रताप सिंह उर्फ रिंकू सिंह ने कहा कि आज चिन्हित गांव में हर सुविधा सरकार ने उपलब्ध करा दिया है. इसलिए अदला-बदली नहीं हो, इसके लिए वे सभी आवश्यक पहल कर रहे हैं.

गौरतलब है कि बगहा के पीपरासी प्रखंड के सात गांव- बैरी स्थान, मंझरिया, मझरिंया खास, श्रीपतनगर, नैनहा एवं भैसही और कतकी हैं. यहां पहुंचने के लिए यूपी के रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है. यूपी के रास्ते से होकर ही इन गांवों में पहुंचा जा सकता है. ऊपर से आने जाने में दिक्कत अलग होती है. बाढ़ या आपदा के वक्त प्रशासनिक कामकाज में भी परेशानी होती है. जिसकी वजह से बिहार के इन अंतिम गावों तक सरकारी मदद भी देर से पहुंचती है. ऐसी ही परेशानी दूसरी ओर यूपी के कुशीनगर जिले के 7 गांव के ग्रामीणों को भी हो रही है. कुशीनगर के मरछहवा, नरसिंहपुर, शिवपुर, बालगोविन्द, हरिहरपुर, वसंतपुर गांवों को स्थानांतरित करने की संस्तुति केंद्र को भेजी गई है.

बिहार के ग्रामीणों ने यूपी और बिहार की राज्य सरकार पर बिना स्थानीय लोगों की सहमति के फैसला लेने का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि यह उनके हित में नहीं है. ग्रामीण दिनेश पांडेय, कैलाश कुशवाहा, सुनील सहनी, परमहंस गोंड, शंभु कुशवाहा, अखिलेश्वर कुशवाहा, मंटू कुशवाहा, मदन कुशवाहा, जवाहर चौधरी, जितेंद्र चौहान आदि ने बताया कि गांव की अदलाबदली के लिए जो कारण बताए गए हैं, वे निराधार हैं. ग्रामीणों ने सरकारों पर सीधा आरोप लगाते हुए बताया कि जब गंगा, गंडक के किनारे डाकुओं का आतंक था, तब सरकार ने ऐसा नहीं किया. उस वक्त इसके डर से अधिकांश लोग यूपी में पलायन कर चुके थे. अब सुविधाएं होने पर पलायन कर चुके लोग लौटने लगे हैं. अगर उस समय नहीं हुआ तो अब क्यों हो रहा है?'

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