Sonpur Mela : इसी स्थान पर मौजूद हैं भगवान विष्णु और शंकर, जानें हरिहर क्षेत्र मेले की कहानी

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Published : Nov 7, 2022, 1:56 PM IST

सोनपुर का हरिहर नाथ मंदिर

बिहार ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में सोनपुर मेले (Sonepur Mela) की पहचान है. बिहार के सारण जिले में मशहूर सोनपुर मेले की शुरुआत हो चुकी है. डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव (Deputy Cm Tejashwi Yadav) ने रविवार को सोनपुर मेले का उद्घाटन किया. दो साल बाद इस बार सोनपुर मेला लग रहा है. विदेशी मेहमानों के लिए हरिहर क्षेत्र मेला विशेष आकर्षण का केंद्र होता है और बड़ी संख्या में यहां आते रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर

सोनपुर: बिहार की राजधानी पटना से महज 20 किलोमीटर दूर सोनपुर में विश्व प्रसिद्ध पशु मेला लगता है. सोनपुर का यह मेला (Sonpur Mela 2022) सिर्फ बिहार का सबसे बड़ा मेला ही नहीं बल्कि एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला (sonepur mela largest animal fair of bihar) माना जाता है. एक समय था जब कहा जाता था कि इस मेले में सुई से लेकर हाथी तक बिकता है.

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सज-धज कर तैयार हुआ हरिहर क्षेत्र : मोक्षदायिनी गंगा और नारायणी (गंडक) नदी के संगम और बिहार के सारण और वैशाली जिले के सीमा पर ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक महत्व वाले सोनपुर क्षेत्र में लगने वाला सोनपुर मेला गौरवशाली सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक है. प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने से प्रारंभ होकर एक महीने तक चलने वाले इस प्रसिद्ध मेले का समापन 7 दिसंबर को होगा. प्राचीनकाल से लगनेवाले इस मेले का स्वरूप कलांतर में भले ही कुछ बदला हो, लेकिन इसकी महत्ता आज भी वही है. यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष लाखों देशी और विदेशी पर्यटक यहां पहुंचते हैं.

सोनपुर मेले का इतिहास : 'हरिहर क्षेत्र मेला' (Hariharnath Temple in Sonepur) और 'छत्तर मेला' के नाम से भी जाने जाना वाला सोनपुर मेले की शुरूआत कब से हुई इसकी कोई निश्चित जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, परंतु यह उत्तर वैदिक काल से माना जाता है. महापंडित राहुल सांकृत्यान ने इसे शुंगकाल का माना है. शुंगकालीन कई पत्थर एवं अन्य अवशेष सोनपुर के कई मठ मंदिरों में उपलब्ध रहे है.

गज-ग्राह युद्ध को भगवान विष्णु ने कराया था खत्म: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थल 'गजेंद्र मोक्ष स्थल' के रूप में भी चर्चित है. मान्यता है कि भगवान के दो भक्त हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए. कोनहारा घाट पर जब गज पानी पीने आया तो उसे ग्राह ने मुंह में जकड़ लिया और दोनों में युद्ध प्रारंभ हो गया. कई दिनों तक युद्ध चलता रहा. इस बीच गज जब कमजोर पड़ने लगा तो उसने भगवान विष्णु की प्रार्थना की. भगवान विष्णु ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुदर्शन चक्र चलाकर दोनों के युद्ध को समाप्त कराया. इसी स्थान पर दो जानवरों का युद्ध हुआ था इस कारण यहां पशु की खरीददारी को शुभ माना जाता है. इसी स्थान पर हरि (विष्णु) और हर (शिव) का हरिहर मंदिर भी है जहां प्रतिदिन सैकड़ों भक्त पहुंचते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान राम ने सीता स्वयंवर में जाते समय किया था.

किसने शुरू किया था सोनपुर मेला? : हरिहरनाथ मंदिर समिति के सदस्य और सेवानिवृत्त शिक्षक चंद्रभूषण तिवारी बताते हैं कि प्राचीन काल में हिंदू धर्म के दो संप्रदायों शैव एवं वैष्णवों में विवाद हुआ करता था, जिसे समाज में संघर्ष एवं तनाव की स्थिति बनी रहती थी. तब, उस समय के प्रबुद्ध जनों के प्रयास से इस स्थल पर एक सम्मेलन आयोजित कर दोनों संप्रदायों में समझौता कराया गया, जिसके परिणाम स्वरूप हरि (विष्णु) एवं हर (शंकर) की संयुक्त रूप से स्थापना कराई गई, जिसे हरिहर क्षेत्र कहा गया.

हाथियों की खरीद का बड़ा केन्द्र रहा : कभी यह मेला जंगी हाथियों का सबसे बड़ा केंद्र था. इतिहास की पुस्तकों में यह भी प्रमाण मिलता है कि मुगल सम्राट अकबर के प्रधान सेनापति महाराजा मान सिंह ने सोनपुर मेला में आकर शाही सेना के लिए हाथी एवं अस्त्र-शस्त्र की खरीदारी की थी. सन् 1803 में रॉबर्ट क्लाइव ने सोनपुर में घोड़े के बड़ा अस्तबल भी बनवाया था. कहा जाता है कि पहले यह मेला हाजीपुर में लगता था, सिर्फ हरिहर नाथ की पूजा सोनपुर में होती थी. बाद में मेला भी सोनपुर में ही लगने लगा.

सोनपुर मेला में क्या बिकता है? : वैसे इस मेले की ख्याति तो पशु मेले के रूप में है परंतु इस मेले में आमतौर पर सभी प्रकार के सामान मिलते हैं. मेले में जहां देश के विभिन्न क्षेत्रों के लोग पशु के क्रय-विक्रय के लिए पहुंचते हैं वहीं विदेशी सैलानी भी यहां खींचे चले आते हैं. पहले सोनपुर मेले का मुख्य आकर्षण यहां बिकने वाले बड़ी संख्या में हाथी और घोड़ों से थी. लेकिन सरकार द्वारा लगाये गये पशु संरक्षण कानून के कारण अब हाथी की बिक्री नहीं की जाती है. अभी भी इस मेले में खरीद बिक्री के लिए गाय, घोड़ा, कुत्ता, बिल्लियों को भी देखा जा सकता है. इसके अलावा, आस्था, लोक संस्कृति व आधुनिकता के रंग में सराबोर विश्व प्रसिद्ध पशु मेले में बदलते बिहार की झलक साफ दिखाई देती है.

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