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50 वीं पुण्यतिथि पर याद किये जा रहे हैं भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर

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Published : Jul 10, 2021, 10:45 AM IST

death anniversary
भिखारी ठाकुर की 50 वीं पुण्यतिथि

भोजपुरी (Bhojpuri) के अमर कलाकार भिखारी ठाकुर भोजपुरी के समर्थ लोक कलाकार, रंगकर्मी, लोक जागरण के संदेश वाहक, लोकगीत और भजन कीर्तन के अनन्य साधक थे. वे बहुआयामी प्रतिभा के व्यक्ति थे. आज कलाकार भिखारी ठाकुर की 50 वीं पुण्य तिथि हैं. इन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर भी कहा जाता है.

सारण (छपरा): भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर (Bhikhari Thakur) की आज 50 वीं पुण्यतिथि (Death Anniversary) है. वे महान नाटककार, कवि, गीतकार, समाज सुधारक, महान चिंतक व विद्वान थे. उन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर कहा जाता है. उन्होंने विभिन्न विधाओं के माध्यम से समाज में फैली विकृतियों के खिलाफ जंग छेड़ा था. उसकी प्रासंगिकता आज भी बरकरार है. बंगाल के नवजागरण से प्रभावित होकर भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी क्षेत्र में प्रचलित बेमेल विवाह, नशापान, स्त्रियों की दुर्दशा, सामंती जोर-जुल्म के खिलाफ अपने नाटकों के माध्यम से जागरुकता फैलाई. उससे भोजपुरी क्षेत्र का कायाकल्प हो गया.

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भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर 1887 को सारण जिले के छपरा सदर प्रखंड के कुतुबपुर दियारे में एक साधारण नाई परिवार में पैदा हुए थे. उनके पिताजी का नाम दल सिंगार ठाकुर और माताजी का नाम शिवकली देवी था. गांव में पलने बढ़ने के बाद वे जीविकोपार्जन के लिए गांव छोड़कर खड़गपुर (पश्चिम बंगाल) चले गए. वहां उन्होंने काफी पैसा कमाया लेकिन वे अपने काम से संतुष्ट नहीं थे. रामलीला में उनका मन बस गया था. इसके बाद वे जगन्नाथ पुरी चले गए. वहां भी मन ना लगा तो अपने गांव वापस आ गए.

भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का पहला दलित विमर्श का चिंतक माना जाता है. उनके नाटकों के पात्र एवं नाटय दल के कलाकार प्रायः दलित एवं पिछड़े समुदाय के लोग ही होते थे. सवर्ण समुदाय के लोग उपेक्षा से उन्हें नचनिया कहा करते थे. किसी जमाने में उन्होंने भोजपुरी क्षेत्र में लौंडा नाच यानि, लड़कों के नाच पार्टी के रूप में वैकल्पिक मनोरंजन पेश करने का प्रयास किया था.

भिखारी ठाकुर कई कामों में व्यस्त रहने के बावजूद भोजपुरी साहित्य की रचना में भी लगे रहे. उन्होंने तकरीबन 29 पुस्तकें लिखीं, जिस वजह से आगे चलकर वह भोजपुरी साहित्य और संस्कृति के संवाहक बने.

उन्होंने अपने गीतों और नाटकों के द्वारा जो जागरूकता फैलाई, उसकी सुखद परिणति आज देखने को मिल रही हैं. जिसका गीत भिखारी ठाकुर गाते रहे और अपने नाटकों के माध्यम से आज के परिवर्तन का संकेत भी देते रहे. यही कारण है कि उस निरक्षर कलाकार को देखने एवं सुनने के लिए हजारों-लाखों की भीड़ बिना किसी प्रचार-प्रसार के उमड़ पड़ती थी.

उस जमाने में कलकत्ता में लोग दो आने का टिकट कटा कर ठाकुर को देखने आते थे. उनके फैंस समाज के दबे कुचले पिछड़े खास कर कलकत्ता के चटकल मजदूर हुआ करते थे. शायद ही आज किसी राजनेता को उतनी लोकप्रियता प्राप्त हो जितनी ठाकुर को प्राप्त थी. आज तो नेताओं के लिए प्रायोजित भीड़ जुटाई जाती है. महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें भोजपुरी का अनगढ़ हीरा तथा शेक्सपियर तक कहा था.

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भिखारी ठाकुर लगभग 84 वर्ष तक जीवित रहे. 10 जुलाई 1971 को इस महान कलाकार का देहावसान हुआ. छपरा शहर के प्रवेश द्वार तेलपा में समाजियों के साथ प्रस्तुति देते हुए उनकी प्रतिमा लगाई गई हैं. आज देश भर में उनके सम्मान में सैकड़ों की संख्या में आयोजन हो रहे हैं. उनके नाटकों एवं साहित्य पर शोध कार्य हो रहा है.

हाल ही में भारत सरकार के संगीत नाटक अकादमी ने उनके नाटय मंडली के जीवित कलाकार रामचंद्र मांझी को भोजपुरी नाट्क के क्षेत्र में संगीत नाट्क अकादमी पुरस्कार देने की घोषणा की है. आरा शहर, कुतुबपुर आदि स्थानों पर उनकी मूर्तियां लग चुकी हैं. भिखारी ठाकुर अब सारण के सांस्कृतिक चेहरा एवं आदर्श बन चुके हैं.

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