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बिहार पॉलिटिक्स में परिवर्तनों का साल रहा 2022.. लेकिन नीतीश को कुर्सी से नहीं हिला सका कोई

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Published : Dec 26, 2022, 6:00 AM IST

Change In Politics Of Bihar
Change In Politics Of Bihar

2022 बिहार की राजनीति में बड़े बदलाव का साल रहा. बड़े बड़े नेताओं को पार्टी ने तरीके से साइड लाइन किया तो मंत्रियों की कुर्सी चली गई. पुराने दुश्मन दोस्त बने तो वहीं दोस्ती दुश्मनी में बदल गई लेकिन इन सबमें सीएम नीतीश कुमार को उनकी कुर्सी से कोई हिला तक नहीं सका.(Year Ender 2022)

पटना: वर्ष 2022 में तमाम राजनीतिक दल चुनौतियों से जूझते रहे. दलों के सामने पार्टी को एकजुट बनाए रखने की चुनौती कायम रही तो कई दल टूट गए और दलबदल का खेल भी देखने को मिला. साल 2022 में एक ओर जहां बिहार की सत्ता ने अंगड़ाई ली तो वहीं दूसरी तरफ ज्यादातर राजनीतिक दल अंतर्कलह से जूझते रहे. राजनीतिक दलों में जहां एक और टूट हुई, वहीं कई नेता अर्श से फर्श पर आ गए. (Change In Politics Of Bihar) (Bihar Politics 2022 )

पढ़ें - बिहार विधानसभा में नीतीश को आया गुस्सा, नेता प्रतिपक्ष को कहा- 'चुप हो जाओ...'

राजनीतिक अस्थिरता का साल: बीते वर्ष को बिहार की राजनीति में अस्थिरता के लिए जाना जाएगा. नीतीश कुमार ने एक बार फिर अपने फैसले से राजनीतिक पंडितों को चौंकाया और एक बार फिर पलटी मारी. कुछ ही घंटे में बिहार की सरकार बदल गई लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बदले. राजद की सत्ता में वापसी हुई और तेजस्वी यादव एक बार फिर से बिहार उपमुख्यमंत्री बने.

AIMIM के विधायकों ने बदला पाला: सत्ता की बाजी पलटने की कवायद बिहार में तभी शुरू हो गई थी जब एआईएमआईएम के 4 विधायकों ने पाला बदल लिया था. चारों विधायकों के पाला बदलने के बाद राजद नंबर 1 की पार्टी हो गई थी. जानकार बताते हैं कि नीतीश कुमार की मदद से चारों विधायक राजद में शामिल हुए थे. ऐसा इसलिए किया गया था कि गेंद जब गवर्नर के पाले में जाए तो सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर राजद दिखाई दे.

नंबर 1 पार्टी बनने की मची रही होड़: साल 2022 में राजनीतिक दलों के बीच नंबर वन बनने की होड़ लगी रही. विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद राष्ट्रीय जनता दल 74 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन गई लेकिन 1 साल बीतते बीतते राजद से नंबर 1 का तमगा छिन गया. भाजपा ने वीआईपी पार्टी के चार विधायक तोड़ लिए और 78 विधायक के साथ भाजपा नंबर एक की पार्टी बन गई. कुछ ही महीनों के बाद बाजी पलट गई और राष्ट्रीय जनता दल को नंबर 1 का तमगा मिल गया राजद के कुल 79 विधायक हो गए.

नीतीश कुमार और विजय सिन्हा आमने-सामने: बिहार विधानसभा की कार्यवाही के दौरान ऐतिहासिक घटना हुई. उस वक्त विधानसभा अध्यक्ष रहे विजय सिन्हा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच विवाद हो गया. दोनों नेताओं ने सदन के अंदर तल्ख तेवर दिखाए. दरअसल बिहार विधानसभा के बजट सत्र (Bihar Legislature Budget Session) के दौरान नीतीश कुमार का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. लखीसराय में विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा (Misbehavior with Speaker Vijay Sinha in Lakhisarai) के साथ हुए दुर्व्यवहार मामले को लेकर विपक्षी दलों और बीजेपी के विधायक लगातार सदन में हंगामा कर रहे थे. ऐसे में सीएम ने कहा बार-बार इस तरह से इस मुद्दे को सदन में उठाना सही नहीं है. हम न किसी को फंसाते हैं और न किसी को बचाते हैं. विशेषाधिकार समिति जो रिपोर्ट पेश करेगी, हम उस पर जरूर विचार करेंगे और देखेंगे की कौन सा पक्ष सही है. इस दौरान सीएम और विधानसभा अध्यक्ष (Debate Between CM Nitish Kumar and Speaker Vijay Sinha ) के बीच तीखी बहस हुई. वहीं संजय सरावगी ने सवाल उठाते हुए पूछा था कि लखीसराय जिले में 2022 के शुरुआती 50 दिनों में ही अपराधियों द्वारा 9 लोगों की हत्या कर दी गई. 9 मामलों में अब तक अपराधियों की गिरफ्तारी नहीं हुई. इन तमाम बातों को सुनकर सीएम नीतीश भड़क गए थे. हालांकि काफी मुश्किल से बीच का रास्ता निकल पाया था और सीएम नीतीश और तत्कालीन स्पीकर के बीच सबकुछ सामान्य हो पाया था.

इन नेताओं के लिए अच्छा नहीं रहा 2022: बीते वर्ष में कई नेता अर्श से फर्श पर आ गए. जदयू के कद्दावर नेता और नीतीश कुमार के करीबी आरसीपी सिंह बड़े ही बेआबरू होकर जदयू के कूचे से लौटे. पहले तो नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को राज्यसभा टिकट नहीं दिया और फिर बाद में मंत्रिमंडल से भी गए. भाजपा के कद्दावर नेता रविशंकर प्रसाद को भी मंत्री पद छोड़ना पड़ा. तार किशोर प्रसाद और रेणु देवी को भी पद गंवानी पड़ी और इनके हाथों से डिप्टी सीएम की कुर्सी फिसल गई.

इनको मिली अहम जिम्मेदारी: उठापटक के दौर में कई नेताओं का पद और कद भी बढ़ा. पशुपति पारस नीतीश कुमार के सहयोग से केंद्र में मंत्री बने. भाजपा नेता विजय सिन्हा को पार्टी ने बड़ी जिम्मेदारी दी और वह विधानमंडल दल के नेता बने. सम्राट चौधरी को भी विधान परिषद में विधायक दल का नेता बनाया गया.

इन पार्टियों की हिल गई नींव: बिहार के कई राजनीतिक दल अस्तित्व की लड़ाई लड़ते दिखे. वीआईपी पार्टी के 4 विधायकों ने जहां पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया. भाई मुकेश सहनी को मंत्री पद गंवानी पड़ी. एआईएमआईएम को भी बड़ा झटका लगा और पार्टी के चार विधायक राजद में शामिल हो गए. लोक जनशक्ति पार्टी भी दो फाड़ हो गई. पार्टी के 5 सांसदों ने चिराग पासवान का साथ छोड़ दिया और पशुपति पारस ने अलग पार्टी बना ली.

नीतीश की कुर्सी रही सुरक्षित: पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को लेकर भी बीते साल उहापोह की स्थिति बनी रही. राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह 2 महीने तक प्रदेश कार्यालय नहीं आए लेकिन आश्वासन के बाद उनकी नाराजगी दूर हुई और वह वापस लौटे. कांग्रेस पार्टी को भी अखिलेश सिंह के रूप में नया प्रदेश अध्यक्ष मिल गया तो भाजपा को नए अध्यक्ष का इंतजार है. कुल मिलाकर बिहार की राजनीति नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द घूमती रही. नीतीश कुमार 45 विधायकों के बावजूद कुर्सी बचाने में कामयाब रहे और कुर्सी पर बने रहने के एवज में जदयू की राजनीति में हिस्सेदारी बढ़ती गई. इसी ताकत के बदौलत चुनावों में राजद हो या भाजपा दोनों के साथ जदयू ने बराबरी का समझौता किया .

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