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बिहार में हर साल क्यों तबाही मचाता है बाढ़, जानें वजह और उपाय

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Published : Jun 23, 2021, 11:41 AM IST

Updated : Jun 23, 2021, 11:51 AM IST

बिहार में हर साल क्यों तबाही मचाता है बाढ़
बिहार में हर साल क्यों तबाही मचाता है बाढ़

हर साल की तरह इस साल भी बिहार में बाढ़ ( Bihar Flood ) ने दस्तक दे दी है. उत्तर बिहार की लाखों की आबादी सालों से बाढ़ का कहर झेल रही है. उत्तर बिहार को बाढ़ से मुक्ति दिलाने के लिए केंद्र और बिहार की सरकारों ने काफी प्रयास किये लेकिन ठोस नतीजा नहीं निकल पाया है. पढ़ें पूरी खबर..

पटना: बिहार में हर साल बाढ़ ( Flood in Bihar ) से भारी तबाही होती है. जिससे लाखों लोग प्रभावित होते हैं. कई लोगों के घर बाढ़ में बह जाते हैं तो कई को जान से हाथ धोना पड़ता है. वहीं बाढ़ से बचाव के लिए जो तमाम उपाय केंद्र और बिहार सरकार ( Bihar Government ) की ओर से किए गए हैं, लेकिन मर्ज बढ़ता गया. अब स्थिति यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर बिहार में बाढ़ प्रभावित इलाके भले ही कम हो लेकिन बाढ़ से होने वाली तबाही सबसे ज्यादा है.

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42 साल से समस्या जस की तस
राज्य में 3800 किलोमीटर से अधिक लंबाई में तटबंध का निर्माण कराया गया, लेकिन इससे बाढ़ की समस्या खत्म नहीं हुई. पिछले 42 साल से बिहार की बड़ी आबादी के लिए कहर बना है. इसमें एक बड़ा योगदान नेपाल से आने वाल पानी का है. जिसकी वजह से कोसी, कमला, बागमती, गंडक, महानंदा और गंगा मानसून के समय बेहद खतरनाक रूप ले लेती हैं. इस दौरान बिहार के आधे से ज्यादा जिले बुरी तरह प्रभावित होते हैं. इसमें ना सिर्फ लोगों के जानमाल बल्कि खेती का भी बड़ा नुकसान होता है.

ईटीवी इंफो ग्राफिक्स
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मिथिलांचल-सीमांचल सबसे ज्यादा प्रभावित
विशेष रूप से अगर कोसी नदी की बात करें तो लंबे समय से कोसी अपना रास्ता बदल रही है. अब तक कम से कम 20 बार अपना रास्ता बदल चुकी है. जिसकी वजह से पूरा मिथिलांचल और सीमांचल कोसी का कहर झेलने को मजबूर होता है. हर साल हजारों लोग बाढ़ की वजह से बेघर हो जाते हैं और उनके पास सरकारी मदद मिलने तक कोई और उपाय नहीं होता.

हर साल क्यों आती है बाढ़?
बिहार में बाढ़ की तबाही मुख्य तौर से नेपाल से आने वाली नदियों के कारण ही आती है. कोसी, नारायणी, कर्णाली, राप्ती, महाकाली जैसी नदियां नेपाल के बाद भारत में बहती हैं. नेपाल में जब भी भारी बारिश होती है तो इन नदियों के जलस्तर में वृद्धि हो जाती है. नेपाल में जब भी पानी का स्तर बढ़ता है वह अपने बांधों के दरवाजे खोल देता है, इसकी वजह से नेपाल से सटे बिहार के जिलों में बाढ़ आ जाती है. बाढ़ से बचाव के लिए तटबंध बनाए गए लेकिन ये तटबंध अक्सर टूट जाते हैं. बाढ़ से 2008 में जब कुसहा तटबंध टूटा था तो करीब 35 लाख की आबादी इससे प्रभावित हुई थी और करीब चार लाख मकान तबाह हो गए थे.

ईटीवी इंफो ग्राफिक्स
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कैसे रुक सकती है बर्बादी
बाढ़ नियंत्रण रिपोर्ट के मुताबिक, इस बर्बादी को रोका जा सकता है. एक और रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में बाढ़ की बर्बादी रोकी जा सकती है. अगर पानी को जल्द समुद्र में ले जाया सके, लेकिन यह तभी संभव है जब पानी के रास्ते में आने वाली रुकावट की सभी चीजों को हटा दिया जाए. विशेष रूप से बांध पानी के बहाव को रोकने की बड़ी वजह है. यही वजह है कि बांध बिहार में बर्बादी का एक बड़ा सबब है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ
गंगा आंदोलन से जुड़े और बाढ़ की विस्तृत जानकारी रखने वाले रंजीव ने बताया कि कि अगर पिछली सरकारों ने नदियों को बांधने की वजह उन्हें बहने की पूरी छूट देना चाहिए थी. बाढ़ से बचाव के लिए केंद्र और बिहार सरकार ने अंग्रेजों के जमाने के उपाय ही सिर्फ अपनाये, सिर्फ तटबंध बनाने से समस्या का समाधान नहीं निकलेगा.

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'मनुष्य के विकास की अवधारणा ही बाढ़ की समस्या की मूल वजह है. विकास कार्यों के तहत नदियों के रास्ते रोके गए, बांध बनाए गए. सड़कें बनाई गई और पुल पुलिया बनाए गए जिसकी वजह से नदियों के प्रवाह में रुकावट आई और यही वजह है कि बाढ़ से तबाही लगातार बढ़ती गई.' :- महेंद्र यादव, नदी विशेषज्ञ

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जल निकासी की व्यवस्था हो
नदी विशेषज्ञ दिनेश मिश्र ने बताया कि बाढ़ को रोकना संभव नहीं है लेकिन यह समझना जरूरी है कि जो बाढ़ पहले कभी कभी आती थी और एक-दो दिन में निकल जाती थी वह क्यों अब हर साल आती है. महीनों तक लोगों के लिए परेशानी खड़ी करती है. पानी को रोकने के नाम पर आज तक हम लोगों ने सिर्फ बांध बनाए लेकिन जल निकासी की व्यवस्था नहीं कर पाए. लेकिन एक सार्थक प्रयास हम लोगों का होना चाहिए.

बिहार में बाढ़ से हर साल तबाही
बिहार में बाढ़ से हर साल तबाही

'सिर्फ रिलीफ बांटने से नहीं होगा कि बाढ़ आ गया कोई दुर्घटना हो गई तो हमने आपका पैसा बांट दिये और किसी चीज का मुआवजा दे दिया इन सब चीजों से कुल अलग करना होगा. स्थानीय लोगों से बात करके बाढ़ की समस्या का हल नहीं निकालेंगे तब तक परेशानी कम नहीं होने वाली है. विशेष तौर पर वर्षों से बाढ़ प्रभावित इलाके में रह रहे किसानों और स्थानीय लोगों से ही समस्या का हल पूछना होगा और उनके साथ मिलकर बाढ़ की समस्या का हल निकालना होगा.' :- दिनेश कुमार मिश्र, नदी विशेषज्ञ

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इन उपायों से भी कम की जा सकती है क्षति
जब बांग्लादेश में भीषण बाढ़ आई तब अमेरिकी विशेषज्ञ कमेटी के मुखिया हर्वर्ड्स रोजर रेवली ने मापा की करोड़ों क्यूसेक पानी को जमीन के अंदर संरक्षित किया जा सकता है. जब हम कंबोडिया में मिकांग नदी को देखते हैं तो पाते हैं कि पानी का विपरीत बहाव टोनले सेप झील में वर्षा के दिनों में होता है. इससे भी बिहार में मानव निर्मित आपदा से निजात पाया जा सकता है.

बिहार में बाढ़ से हर साल तबाही
बिहार में बाढ़ से हर साल तबाही

चीन ने इस तरह बाढ़ से पाया निजात
इसी तरह चीन ने हुबई प्रोविंस में 1998 में तीन जोरजे पानी संरक्षण परियोजना बनाई. ये परियोजना पानी संरक्षण के साथ-साथ बिजली उत्पादन और पर्यटन के लिए बनाई गई. इस परियोजना से जहां एक ओर बाढ़ को नियंत्रित करने में सफलता मिली वहीं दूसरी तरफ अन्य व्यावसायिक योजनाओं को लाभान्वित किया.

इन अनुभवों को अगर बिहार अमल करे तो इस त्रासदी से निजात मिल सकती है. इसके साथ-साथ पानी का भी व्यवसायिक तौर पर सदुपयोग किया जा सकता है.

Last Updated :Jun 23, 2021, 11:51 AM IST
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