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बड़ा सवाल: जब भी होती है बड़ी घटनाएं, CM नीतीश क्यों बना लेते हैं दूरी?

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Published : Apr 8, 2021, 7:58 PM IST

Updated : Apr 8, 2021, 10:27 PM IST

कभी बिहार में जातीय हिंसा चरम पर थी. बावजूद इसके नीतीश के पहले तत्कालीन सभी मुख्यमंत्रियों ने घटना स्थल पर पहुंचकर पीड़ितों का दुख-दर्द बांटा. यहां तक इंदिरा गांधी ने भी ऐसे मामलों की संवेदनशीलता को समझा और पीड़ितों से मुलाकात करने पहुंचीं थीं. लेकिन सियासी गलियारों में ये चर्चा है कि सीएम नीतीश अपने शासन काल में जनता से दूर होते जा रहे हैं. आरोप लगते रहे हैं कि बड़ी घटनाओं के बाद सीएम नीतीश खुद मौके पर नहीं पहुंचते...

सीएम नीतीश
सीएम नीतीश

पटना: सीएम नीतीश को लेकर सियासी गलियारे में एक चर्चा आम है. चर्चा ये है कि सीएम किसी भी घटना या वारदात को सीधे फेस करने से बचते हैं. ऐसा एक दो बार नहीं बल्कि जब से उन्होंने बिहार की कुर्सी संभाली है तब से होता आ रहा है.

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जब भी बिहार में कोई बड़ी घटना घटती है तो लोग आशा करते हैं कि राज्य का मुखिया अपनी उपस्तिथि दर्ज कराये. लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ठीक इसके विपरीत हैं. सूबे में जब भी कोई हादसा होता है नीतीश कुमार हमेशा नदारद रहते हैं.

गंडामन मिड-डे-मील मामला

जानकारों का कहना है कि सीएम नीतीश भद्द पिटने के बाद वही काम अंत में करते हैं, जो उन्हें पहले करना चाहिए. शायद ही ऐसा कभी देखने को मिला हो कि मुख्यमंत्री हादसे वाली जगह पर जाकर लोगों का दुख-दर्द जानने की कोशिश की हो. फिर चाहे वो बगहा और फारबिसगंज का पुलिस फायरिंग का मामला हो या फिर छपरा के गंडामन का, जहां पर मिड डे मील खाकर 23 बच्चों की मौत हो गयी थी.

छपरा
गंडामन की जहरीली मिड-डे-मील कांड

गंडामन वाले मसले पर उस समय के नेता विरोधी दल नन्द किशोर यादव ने नीतीश कुमार के ऊपर कटाक्ष किया था. नंद किशोर यादव ने कहा था कि- 'मुख्यमंत्री अपने पाँव की चोट की वजह से PMCH नहीं गए थे लेकिन वही चोट लेकर असेंबली सेशन अटेंड करने विधानसभा पहुंच गए'.

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गांधी मैदान की भगदड़

2014 में पटना के गांधी मैदान की भगदड़ में 33 लोगों की मौत के बाद भी नीतीश कुमार वहां नहीं गए.

गांधी मैदान में भगदड़ से मौत
गांधी मैदान में भगदड़ से मौत

नवादा जहरीली शराबकांड
हाल के दिनों में नवादा में 'हूच ट्रेजेडी' जिसमें करीब 17 लोगों की जहरीली शराब पीने से मौत हो गई या फिर मधुबनी की घटना, जहां पांच लोगों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया. सीएम नीतीश ने वहां भी जाने से दूरी बना ली. पार्टी के अंदरखाने जब नेताओं ने आवाज उठाई तब सीएम ने जेडीयू के दफ्तर में एक बैठक की. बैठक के बाद बाहर आकर उन्होंने इस मामले चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि वो खुद मधुबनी कांड की मॉनिटरिंग कर रहे हैं.

नवादा
जहरीली शराब से मौत का मामला

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बिहार के चर्चित लेखक जिन्होंने नलिन वर्मा कहते हैं कि ''ये बड़ी दुर्भाग्य की बात है. राज्य का मुखिया हादसों से दूरी बनाकर कर रखते हैं. इस तरह का वर्ताव साफ दर्शाता है कि सीएम नीतीश अपनी जिम्मेवारियों से पीछा छुड़ाना चाहते हैं.

मधुबनी नरसंहार
मधुबनी नरसंहार

“मुझे याद है कि बिहार में नीतीश के पहले जो भी मुख्यमंत्री रहे हैं, वो घटना वाली जगह पर जरूर जाते थे. जहानाबाद के नोनही-नगवां में नरसंहार हुआ था. उस समय भगवत झा आजाद मुख्यमंत्री हुआ करते थे. उस गांव में दबंगों ने करीब 16 दलित बच्चों की निर्मम हत्या कर दी थी. जब उस गांव में तत्कालीन सीएम पहुंचे तो उनके मुंह पर गांव के लोगों ने कालिख पोत दी थी. इसके बाद भी वो लोगों से मिले और उनसे बात की.''- नलिन वर्मा, लेखक

लेखक नलिन वर्मा ने अन्य मुख्यमंत्रियों को याद करते हुए कहा कि- “यहाँ तक की कर्पूरी ठाकुर जब तक जीवित थे कोई भी बड़ी घटना होती तो वो भी जरूर जाते थे. मुख्यमंत्री रहते हुए भी और नेता विरोधी दल रहते हुए भी. लालू प्रसाद कर्पूरी ठाकुर के ट्रेडिशन को आगे लेकर गए. लालू प्रसाद के ज़माने में काफी सारे नरसंहार हुए और शायद ही कोई ऐसा नरसंहार होगा जहां लालू प्रसाद खुद न गए हों. ये हमेशा से देखा गया है कि मुख्यमंत्री घटना वाली जगह पर जाते थे. मुझे याद ही बिन्देश्वरी दुबे जब बिहार के मुखिया थे तब एक ट्रेन दुर्घटना हुई थी जहां पर वो बोट के रस्ते घटनास्थल पर पहुंचे थे.”

कर्पूरी ठाकुर
कर्पूरी ठाकुर, भूतपुर्व मुख्यमंत्री, बिहार

नलिन वर्मा जो फिलहाल उत्तर प्रदेश के बरेली स्थित यूनिवर्सिटी में मास कॉम के प्रोफेसर हैं वो मानते हैं कि किसी भी पॉलिटिकल हेड की पहली जिम्मेदारी होती है लोगों की रक्षा और सुरक्षा. इस मामले में नीतीश विफल साबित हुए हैं.

जब बाथे नरसंहार पीड़ितों से मिलने पहुंचे थे वाजपेयी
बिहार ने सत्तर के दशक से कई नरसंहार देखे. चाहे वो सेनारी कांड या फिर लक्ष्मणपुर-बाथे का शंकरबीघा गाँव, जहाँ 58 लोगों को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया था. लेकिन जब भी बिहार में ऐसे जघन्य मामले सामने आए, तब-तब प्रदेश के मुखिया वहां जाकर लोगों से मिले. बाथे नरसंहार में तो लोकसभा के तत्कालीन नेता विपक्ष अटल बिहार वाजपयी भी गांव में गए थे. जानकार बताते हैं कि खुफिया विभाग ने वाजपेयी जी को बाथे जाने से माना किया था उसके बावजूद भी वो वहां गए थे.

लक्ष्मणपुर-बाथे नरसंहार
लक्ष्मणपुर-बाथे नरसंहार

पटना के जाने माने पॉलिटिकल एक्सपर्ट संजय कुमार कहते हैं कि बहुत कम लोगों में ये ताकत होती है की विपरीत परिस्तिथि में फ्रंटलाइन में खड़े होकर स्थिति को फेस कर सकें.

“मुख्यमंत्री को अगर अपनी उपलब्धियों की वाह-वाही सुनना अच्छा लगता है तो जो गलती हो, या फिर जो चीजें छूट जाएं, उसको भी उसी तरीके से फेस करना चाहिए. नीतीश कुमार की जो मानसिकता है वो फेलियर को दूसरे के ऊपर थोप देते हैं. वो DGP को बोल देंगे. जांच टीम भेज देंगे. लोकल अधिकारी को बोल देंगे, लेकिन खुद कभी फ्रंट पर नहीं जाते हैं. ये नीतीश कुमार के स्वभाव में ही है कि वो केवल अपने आप को उपलब्धियों में ही सीमित रखते हैं"- संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

लालू
लालू यादव, पूर्व मुख्यमंत्री, बिहार

राजनीतिक जानकारों का ये भी मानना है है कहीं न कहीं नीतीश कुमार आलोचना को फेस करना नहीं चाहते. इतिहास गवाह रहा है कि ऐसी ही घटनाओं को मुद्दा बनाकर कई सरकारें बिगड़ीं हैं और बनी हैं. ये 1977 का दौर था जब इंदिरा गांधी सत्ता से बेदखल हो गईं थी. मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री थे. पटना से सटे बेलछी गांव में नरसंहार हुआ था और इंदिरा गांधी हाथी पर सवार होकर उस गाँव में पहुंचीं थीं. आगे जाकर ये बहुत बाद मुद्दा बना. देशभर में इस घटना के बाद कांग्रेस ने 1980 में शानदार तरीके से सत्ता में वापसी की थी.

बछेली नरसंहार
हाथी पर बैठकर पहुंची इंदिरा गांधी

ये पहली बार नहीं है कि नीतीश अपनों से गैरों जैसा व्यवहार करते हैं. कोरोना के समय जब लॉकडाउन हुआ तब ये देश के पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने फंसे हुए लोगों से बात तक नहीं की और न ही मीडिया से उनकी सुध ली थी.

चमकी बुखार से हुई थी सैकड़ों बच्चों की मौत
हर साल चमकी बुखार से सैकड़ों बच्चों की मौत होती है, बावजूद इसके नीतीश कुमार उनके परिवार से मिलने मुज़फ्फरपुर नहीं जाते. पिछले साल जब आंकड़ा सौ के पार हुआ तब जाकर नीतीश कुमार की नींद खुली और वहां के अस्पताल का दौरा किया था.

मुजफ्फरपुर
चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों का मामला

जातीय गोलबंदी से बाहर नहीं निकला बिहार!
एक्सपर्ट ये भी मानते हैं कि आजादी के 70 साल बाद भी बिहार को लोग जातीय गोलबंदी से आजाद नहीं हो पाए हैं. यही वजह है कि जातीय गोलबंदी के इर्दगिर्द बिहार की राजनीति घूमती रहती है. चुनाव में ये सारे मुद्दे किनारे हो जाते हैं जिसका फायदा नीतीश जैसे नेता बखूबी से उठाना जानते हैं. नीतीश कुमार को भी लगता है की ये घटनाएं उनके वोट बैंक पर कोई असर नहीं डालतीं है और यही कारण है की वो इनसे हमेशा दूरी बनाकर रखते है.

आरजेडी के निशाने पर नीतीश
राजद विधायक सुधाकर सिंह आरोप लगते हुए कहते हैं की नीतीश कुमार लोकतान्त्रिक मिजाज़ के आदमी नहीं हैं. उन्हें नौकरशाह पसंद हैं. जनता के बीच जाने से हमेशा ये डरे रहते हैं और ये एक एक्सीडेंटल मुख्यमंत्री हैं.

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“नीतीश कुमार की अपनी कोई लोकप्रियता नहीं है, ये जब भी सीएम बने हैं किसी के रहमो करम पर ही बने हैं. अपने पूरे कार्यकाल में जनता से दूरी बनाकर रखते हैं. पिछले पांच साल से तो जनता दरबार भी बंद है. नीतीश कुमार केवल नौकरशाह की तरह फैसला सुनाने में विश्वास रखते हैं. बिहार में जब भी बाढ़ आती है तो हेलिकॉप्टर से हवा-हवाई दौरा करते हैं. लोगों से दूरी बनाकर रखते हैं. उन्हें पता है कि लोगों का आक्रोश सहना पड़ेगा"- सुधाकर, विधायक, राजद

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बिहार प्रदेश कांग्रेस समिति के प्रवक्ता कुंतल कृष्णा का कहना है कि नीतीश कुमार सत्ता के नशे में धृतराष्ट्र हो गए हैं. सत्ता के अलावा उन्हें कुछ नहीं दिखता है. कांग्रेस प्रवक्ता आगे कहते है कि बिहार को पूर्ण रूप से अधिकारियों के हाथ में सौंप दिया गया है. अब उनमें कोई संवेदना नहीं बची है . कृष्णा ने आगे कहा कि नीतीश कुमार के बारे में ये कहना गलत नहीं होगा कि रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था.

Last Updated :Apr 8, 2021, 10:27 PM IST
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