...तो इस वजह से बिहार को नहीं दिया जा सकता विशेष राज्य का दर्जा

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Published : Jun 5, 2021, 6:24 PM IST

नीतीश कुमार

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लंबे समय से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग करते रहे हैं. एनडीए के शुरुआती दिनों से वह पटना से दिल्ली तक आंदोलन भी करते थे. महागठबंधन से अलग होने के बाद जब से नीतीश एनडीए में दोबारा आए हैं विशेष राज्य का दर्जा देने वाली मांग की चर्चा तक खत्म हो गई. लेकिन एक बार फिर जेडीयू नेता ने पीएम मोदी से यह मांग रखी है. पढ़ें रिपोर्ट

पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर पटना से लेकर दिल्ली तक आंदोलन करते थे. पहले यूपीए की सरकार केंद्र में थी तो कई तरह के आरोप लगाते थे, लेकिन पिछले कुछ समय से वह खामोश हैं. लेकिन नीतीश कुमार के सिपहसालार समय-समय पर विशेष राज्य के दर्जे की मांग उठाते रहे हैं.

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केंद्र और बिहार दोनों जगह एनडीए की सरकार है. डबल इंजन की सरकार होने के बाद भी नीतीश की मांग पूरी नहीं हुई. पिछले कुछ समय से नीतीश इस मुद्दे पर बात भी नहीं कर रहे. लेकिन जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) ने गुरुवार को ट्वीट कर विशेष राज्य के दर्जे की मांग की है.

दशन पुरानी... विशेष राज्य के दर्जे की मांग
बता दें कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग एक दशक से भी ज्यादा पुरानी है. समय और परिस्थिति के मुताबिक ये मुद्दा बिहार की राजनीति में सुर्खियां बटोरता रहा है. इस दौरान कई मौके ऐसे आए हैं, जब केंद्र सरकार की ओर से विशेष राज्य के दर्जे के सवाल को खारिज कर दिया गया है. अब आइये आपको बतातें कि आखिर क्यों बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए.

क्यों नहीं मिला विशेष राज्य का दर्जा?
14वें वित्त आयोग की सिफारिश की वजह से अब नॉर्थ ईस्ट और पहाड़ी राज्यों को 14वें वित्त आयोग की सिफारिश की वजह से अब नॉर्थ ईस्ट और पहाड़ी राज्यों को छोड़कर किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग काफी पहले से हो रही थी. इसके अलावा आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान और गोवा की सरकारें भी विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग करने लगीं.

इन राज्यों को मिला है विशेष राज्य का दर्जा
आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिए जाने के कारण एनडीए के महत्वपूर्ण सहयोगी चंद्रबाबू नायडू नाराज होकर अलग तक हो गए थे. अभी जिन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है उसमें असम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं. इनमें से कई राज्यों की स्थिति विशेष राज्य का दर्जा मिलने के बाद बेहतर हुई है. उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर निवेश हुआ.

विशेष राज्य का दर्जा भौगोलिक और सामाजिक स्थिति व आर्थिक संसाधनों के हिसाब से दिया जाता रहा है. नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल ने पहाड़, दुर्गम क्षेत्र, कम जनसंख्या, आदिवासी इलाका, अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर, प्रति व्यक्ति आय और कम राजस्व का आधार बनाया था. पांचवें वित्त आयोग ने सबसे पहले 3 राज्यों को 1969 में विशेष राज्य का दर्जा दिया था, जिसमें जम्मू-कश्मीर भी शामिल था. अभी देश के 28 राज्यों में से 10 को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है.

इन शर्तों पर मिलता है विशेष राज्य का दर्जा

⦁ ऐसे राज्य जहां प्रति व्यक्ति आय कम कम हो.

⦁ बुनियादी ढ़ांचे में पिछड़े हों और आर्थिक तंगी से जूझ रहा हो.

⦁ ऐसे राज्य जो अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़े हों.

⦁ ऐसे राज्य जहां पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र हों.

⦁ ऐसे राज्य जिनका जनसंख्या घनत्व कम हो या फिर वहां जनजाति आबादी की संख्या ज्यादा हो.

इस वजह से नहीं मिल सकता विशेष राज्य का दर्जा
अब बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग से जुड़ा सबसे अहम तथ्य यही है कि बिहार इनमें से कोई भी शर्त पूरी नहीं करता है. बिहार का कोई हिस्सा किसी अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटा हुआ नहीं है, और राज्य का कोई भी हिस्सा दुर्गम इलाका भी नहीं कहा जा सकता. इसके अलावा जनजातीय आबादी वाला झारखंड पहले ही अलग राज्य बन चुका है, सो, अब बिहार की आबादी में जनजातीय जनसंख्या की बहुलता भी नहीं है. राज्य में पर्याप्त आधारभूत ढांचा भी है, और बिहार के वासियों की प्रति व्यक्ति आय और राज्य का गैर-कर राजस्व भी कम नहीं है, सो, उसे यह दर्जा दिए जाने की राह में अड़चनें ही अड़चनें हैं.

राज्यों को मिलती है ये सुविधा:
विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को केंद्र से जो फंड मिलता है उसमें 90 फीसदी अनुदान और सिर्फ 10 फीसदी कर्ज होता है. इस पर ब्याज नहीं लगता है. दूसरी तरफ सामान्य राज्य को मिले फंड का 70 फीसदी अनुदान होता है और 30 फीसदी कर्ज, जिस पर ब्याज लगता है.

⦁ केंद्रीय बजट के योजित व्यय का 30 फीसदी इन राज्यों पर खर्च होता है.

⦁ उत्पाद शुल्क में दी जाती है रियायत.

⦁ टैक्स में राहत मिलती है.

बिहार को क्यों मिले विशेष राज्य का दर्जा?
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले इसके लिए विशेषज्ञों का तर्क रहा है कि बिहार से सबसे अधिक पलायन होता है. गरीबी सबसे ज्यादा है. बेरोजगारी भी सबसे अधिक है. बिहार आपदा ग्रस्त राज्य है. 38 जिले में से 15 जिले बाढ़ ग्रस्त इलाके में आते हैं. हर साल बाढ़ से करोड़ों की संपत्ति, जान-माल और आधारभूत संरचना के साथ फसलों को भी नुकसान होता है.

नीतीश कुमार का भी यह तर्क रहा है कि दूसरे विकसित राज्यों की श्रेणी में आने के लिए बिहार को बिना विशेष राज्य का दर्जा मिले तेजी से विकास संभव नहीं है. बिहार में सड़क, बिजली और कानून-व्यवस्था को लेकर काफी सुधार हुआ है. डबल डिजिट में लगातार ग्रोथ रहने के बावजूद निवेश नहीं हुआ है. झारखंड के अलग होने के बाद बिहार से खनिज संपदा चला गया. उद्योग धंधे भी झारखंड में ही रह गए.

क्या हैं रघुराम राजन समिति की रिपोर्ट?
रघुराम राजन समिति की रिपोर्ट को नीतीश कुमार ने बड़ी जीत बताया था. यह वह समय था जब नीतीश बीजेपी से अलग हो गए थे. रिपोर्ट में रघुराम राजन कमेटी ने विशेष राज्य के दर्जे की जगह विशेष मदद की बात कही थी और इसके लिए राज्यों की तीन श्रेणी बनाई गई थी. बिहार को सबसे कम विकसित राज्य की श्रेणी में रखा गया था. तब रघुराम राजन मुख्य आर्थिक सलाहकार थे बाद में आरबीआई के गवर्नर भी बने.

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