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Bihar Politics: झोपड़ी को बनाया बंगला पर उजाले वाला चिराग बुझ गया- अब क्या है विकल्प?

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Published : Jun 14, 2021, 9:46 PM IST

Chirag paswan in bihar politics
Chirag paswan in bihar politics

लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) का कुनबा बिखर चुका है. राजनीतिक चिराग बुझ गया है. बंगला, बागियों की बगावत (Bihar Politics) में ढह चुका है. आगे पढ़िये एलजेपी के अर्श से लेकर फर्श तक की पूरी कहानी...

पटना: बिहार में जाति सियासत के जो सूरमा रहे उनके लिए अपनी राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी खोजना आसान रहा. इसका कारण था कि उन्हें राजनीति में बड़ा काम करने वाला नहीं चाहिए था. बल्कि परिवार में जो पढ़ा हो उसे जिम्मेदारी देने की सोच थी. एलजेपी भी इसी सोच के साथ आगे बढ़ी. चिराग को जिम्मा मिला लेकिन चिराग अपने पिता की विरासत को ज्यादा दिनों तक संभाल नहीं पाए.

यह भी पढ़ें- पटना के LJP कार्यालय का बदला बोर्ड, चिराग के चाचा पशुपति पारस को दिखाया गया पार्टी अध्यक्ष

चिराग के कंधों पर पार्टी की जिम्मेदारी
बिहार की सियासत में कभी राजनीति की चाबी लेकर टहलने वाले रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत को संभालने का जिम्मा चिराग पासवान के कंधे पर देने की चर्चा शुरू हुई तो सियासत में यह बात शुरू हो गई क्या रामविलास को उनके सियासत का उत्तराधिकारी मिल गया है.

Chirag paswan in bihar politics
नवंबर 2019 में चिराग को बनाया गया था एलजेपी अध्यक्ष

लोजपा के सियासी इतिहास को अगर खंगाला जाए तो लालू और नीतीश जैसे लोग रामविलास पासवान को मौसम वैज्ञानिक कहते थे. लेकिन राजनीति का विज्ञान जब बदला तो रामविलास पासवान की पूरी सियासत ही हाशिए पर चली गई.

2004 से 2014 तक की सियासत
देश की राजनीति में रामविलास पासवान ने सरकारों में अहम भूमिका निभाई. अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में मंत्री रहे. तो उसके बाद बनी कांग्रेस में भी 2004 के लोकसभा चुनाव में 4 सीटों पर लोजपा ने बिहार में जीत दर्ज की.

2009 की राजनीतिक लड़ाई में मुलायम सिंह यादव, लालू यादव और रामविलास पासवान ने अलग मोर्चा बनाकर बिहार और उत्तर प्रदेश में 128 सीटों पर चुनाव लड़ा. समझौते में बिहार में लोजपा के हिस्से में कुल 12 सीटें आईं. लेकिन लोजपा का खाता ही नहीं खुला. इसके बाद रामविलास पासवान के राजनीतिक नीतियों और निर्णयों को नई दिशा मिली जब चिराग पासवान ने पार्टी में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.

लोजपा की नई रणनीति
3 मार्च 2014, लोजपा की रणनीति और बिहार की राजनीति में रामविलास पासवान के राजनीतिक उदय का दिन माना गया. जब देश में नरेंद्र मोदी के नाम की लहर चल रही रही थी. मुजफ्फरपुर के जयप्रकाश नारायण की उसी मैदान में 3 मार्च 2014 को नरेंद्र मोदी की रैली थी, जहां से जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ छात्र आंदोलन का बिगुल फूंका था, जिसे जेपी आंदोलन का नाम दिया गया था.

Chirag paswan in bihar politics
पीएम नरेंद्र मोदी के साथ राम विलास पासवान और चिराग पासवान

इसी मैदान में रामविलास पासवान, नरेंद्र मोदी वाले बीजेपी का हिस्सा बने. सियासत में जो सबसे ज्यादा चर्चा का विषय रहा वह यही था कि रामविलास को इस मंच पर लाने का पूरा श्रेय चिराग पासवान को जाता है. और जिसका चुनावी परिणाम भी चिराग पासवान ने पार्टी के खाते में डाला.

2014 और 2019 के रणनीतिकार
2014 में भाजपा से समझौते के बाद हुए चुनाव में लोजपा की खाते में 7 सीटें आई थी. मजबूत चुनाव की रणनीति ने लोजपा के खाते में 6 सीटें डाली. नालंदा की एक सीट, लोजपा हार गई थी. वहीं बात 2019 की करें तो जदयू के साथ आ जाने के बाद लोजपा ने चुनाव के दौरान तेवर बदल दिए.

चिराग पासवान को मनाने के लिए जेपी नड्डा, भूपद्र यादव के साथ ही बीजेपी के सभी कद्दावर नेता मैदान में आ गए. ताकि किसी तरीके से चिराग को मना लिया जाए. लोजपा को 6 सीट लोकसभा की मिली, जबकि पिता रामविलास पासवान को राज्यसभा की सीट दिलवाकर चिराग ने अपनी राजनीतिक रणनीति का लोहा मनवाया था.

Chirag paswan in bihar politics
चिराग पासवान, सांसद, लोजपा

हालांकि पार्टी में जिद की सियासत दूसरे राजनीतिक दलों को खटकने लगी थी. क्योंकि जमीन पर मजबूती चिराग की थी ना की पिता की. सियासत का हर मजमून गठबंधन धर्म की मजबूरी बनती जा रही थी.

2020 की राजनीतिक अतिवाद की भूल
सियासत में छोटी सी सफलता भी जमीनी हकीकत से अलग हटा देती है. और शायद यही चिराग पासवान के साथ भी हुआ. रील लाइफ में फेल होने के बाद रियल लाइफ में भी जमीन पर चिराग पकड़ नहीं बना पाए. लोकसभा चुनाव में मोदी के भरोसे तो सीट ठीक मिली लेकिन विधानसभा चुनाव में लोजपा कहीं टीकी ही नहीं.

Chirag paswan in bihar politics
पशुपति पारस, सांसद, लोजपा

2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश, बीजेपी से अलग थे तो लोजपा ने विधानसभा चुनाव के लिए जो सीटें मांगी थी उनमें से बीजेपी ने उसे 42 सीट दी थी. लेकिन सिर्फ 2 सीटों पर लोजपा जीत दर्ज कर पाई. हालांकि नीतीश और राजद का गठबंधन टूट गया. 2017 में फिर से सरकार बनी. 2 सीट होने के बाद भी लोजपा को नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल में जगह दी और पशुपति कुमार पारस को बिहार में पशुपालन एवं मत्स्य विभाग का मंत्री बनाया.

2020 के सियासी समर में चिराग पासवान नीतीश और बीजेपी दोनों की नीतियों से अलग चले गए और 136 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर अपने नए राजनीतिक कद को बिहार के सामने रख दिया. हालांक बिहार की जनता ने लोजपा और चिराग की नीतियों को धूल चटा दिया. 136 में से सिर्फ 1 सीटों पर लोजपा को जीत मिली वह भी 2021 में जदयू को चली गई.

2020 में भाजपा और जदयू से बैर
2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने जिस तरीके से तेवर अख्तियार किया था. उसमें चिराग ने जदयू और भाजपा दोनों से बैर मोल ले लिया. चुनाव परिणाम के बाद ही यह बात सामने आई कि चिराग पासवान ने 2 दर्जन से ज्यादा सीटों पर जदयू को सीधे नुकसान किया है. हालांकि इसकी भरपाई बीजेपी को करनी पड़ी क्योंकि परिणामों के बाद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे. क्योंकि उन्हें बीजेपी के चिराग वाली राजनीति से नाराजगी भी थी.

लेकिन नरेंद्र मोदी के अनुरोध पर वे सीएम बने. कयास वहीं से लगाए जाने शुरू हो गए थे कि चिराग पासवान की सियासत के लिए आने वाले दिन अच्छे नहीं है. और हुआ भी यही चिराग की अपनी अतिवाद की राजनीति ने 14 जून 2021 को चाचा के साथ ही पार्टी के बाकी सांसदों को उनकी नीतियों से बगावत करने पर मजबूर कर दिया.

परिणाम यह हुआ कि लोजपा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष से चिराग पासवान हट गए. साथ ही चिराग के अलावे बचे सांसदों ने उनके चाचा पशु पतिनाथ पारस को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया. रामविलास पासवान ने झोपड़ी से बंगला बनाकर उसकी रोशनी के लिए चिराग को लाया तो जरूरत लेकिन बंगला बनने के बाद लोजपा में चिराग वाली जो नीति रही उसने बंगले के चिराग को ही बुझा दिया.

Chirag paswan in bihar politics
लोकसभा अध्यक्ष ने पशुपति पारस को दी LJP संसदीय दल के नेता की मान्यता

चिराग के पास विकल्प
पार्टी में टूट के बाद अब एक बात तो साफ है, चिराग पासवान को नई रणनीति के साथ काम करना पड़ेगा. साथ ही अब चिराग लोजपा में बहुत कुछ कर पाएंगे इसके आसार नहीं रहे.

चिराग के पास जो विकल्प बच रहे हैं

1. लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला का दरवाजा खटखटा सकते हैं जिसमें सांसदों द्वारा किए गए कार्य को असंवैधानिक करार देने की बात कही जा सकती है. लेकिन इससे उन्हें कोई राहत नहीं मिलेगी.

2. चिराग पासवान निर्वाचन आयोग का दरवाजा भी खटखटा सकते हैं लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यहां उनको बहुत राहत नहीं मिलेगी.

3. राजनीतिक स्थिरता के लिए चिराग पासवान दूसरे राजनीतिक दलों के साथ समझौता कर सकते हैं.

4 . यह भी विकल्प उनके पास खुला हुआ है कि बिहार में तेजस्वी यादव और चिराग पासवान के बीच समझौता हो जाय. यह विकल्प चिराग पासवान के लिए सबसे बेहतर और मजबूत इसलिए भी है कि राष्ट्रीय जनता दल के साथ जाकर चिराग पासवान अपने चाचा और नीतीश कुमार पर बुलंद आवाज में विरोध के स्वर मुखर कर सकते हैं.

घर, पार्टी और अपनों को नहीं सहेज पाए चिराग
चिराग पासवान पिता की विरासत को संभालने के लिए सियासत में आए तो चर्चा शुरू हुई कि रामविलास पासवान जितने सहज और सुलझे हुए नेता रहे और जिस राजनीतिक जमीन से उठकर उन्होंने क्षितिज पर अपने राजनीति को चमकाया, चिराग पासवान उसे आगे ले जाएंगे. लेकिन चिराग पासवान, रामविलास की नीतियों पर खरे नहीं उतर पाए.

रामविलास पासवान के सबसे बड़े दामाद साधु पासवान ने चिराग पासवान पर सबसे पहले आरोप लगाया था कि उन्होंने टिकट देने के लिए उनसे भी पैसा मांगा. रामविलास पासवान की पहली पत्नी को लेकर विवाद भी सार्वजनिक तौर पर सामने आ ही गया था. पार्टी के लिए बनने वाली रणनीति में रामविलास पासवान के दोनों छोटे भाइयों की कुछ नहीं चलती थी.

अगर उनकी तरफ से कोई मसौदा दिया भी जाता था तो चिराग पासवान उसे सुनते भी नहीं थे. लोकतांत्रिक व्यवस्था और सार्वजनिक जीवन में सुचिता की जिन मूल्यों को रखकर आगे बढ़ना होता है, चिराग पासवान उसे सहेज ही नहीं पाए और उसका परिणाम है की पूरी पार्टी और परिवार का प्यार दोनों बिखर गया.

बिहार में चिराग पासवान के हाथ से लोजपा निकलने के बाद पशुपति नाथ पारस के हाथ में है. यह माना जा रहा है कि लोजपा अभी भी रामविलास पासवान के अपनों के ही हाथ में है. अब देखना दिलचस्प होगा कि अपनों के बीच जिस तरीके का विरोध है. उसे दूर करने के लिए चिराग कौन सी राजनीति करते हैं और इन तमाम चीजों को खत्म करने के लिए सियासत की कौन सी नई लौ जलाकर पिता के आधार वाली पार्टी को नया सियासी मुकाम देते हैं. सब कुछ भविष्य के गर्त में है. लेकिन फिलहाल चिराग के लिए बंगले में कोई भी कमरा रोशनी से जगमगाता हुआ नहीं दिख रहा है.

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