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सालों बाद बन रहा है 'वट सावित्री व्रत' के दिन ऐसा संयोग, जानें पूजा करने का शुभ मुहूर्त और विधि

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Published : May 27, 2022, 6:05 AM IST

vat savitri vrat 2022 shubh muhurt puja vidhi
vat savitri vrat 2022 shubh muhurt puja vidhi

30 मई 2022 का दिन सुहागिन महिलाओं के लिए काफी खास है. इस दिन अद्भुत संयोग बन रहा है. सोमवती अमावस्या , शनि जयंती और वट सावित्री पूजा ( Vat Savitri Vrat 2022) के एक ही दिन होने से इसका फल भी कई गुना बढ़ जाएगा. जानें पूजा का शुभ समय और विधि.. इन बातों का रखें विशेष ख्याल..

पटना: इस महीने की 30 तारीख कई मायनों में खास है. इस दिन वट सावित्री के साथ शनि जयंती (Shani Jayanti 2022) व सोमवती अमावस्या (Somvati Amavasya 2022) भी है. ज्योतिषाचार्य मनोज मिश्रा (Astrologer On Vat Savitri Vrat ) के अनुसार हिंदू धर्म में वट सावित्री की पूजा एवं उपवास का बहुत महत्व है. वट सावित्री के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं. इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है. इस वर्ष 30 मई को महिलाएं वट सावित्री (Vat Savitri Vrat 2022 Date) का उपवास रखेंगी. ज्येष्ठ मास की अमावस्या (सोमवती अमावस्या) के कारण वट सावित्री व्रत के दिन विशेष और शुभ संयोग बन रहे हैं.

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वट सावित्री पूजा का शुभ मुहूर्त: ज्योतिषाचार्य मनोज मिश्रा ने बताया कि अमावस्या तिथि 29 मई को दिन में दोपहर 2:54 बजे से प्रारम्भ हो कर 30 मई को सांयकाल 4:59 बजे तक है. वट सावित्री व्रत के दिन काफी अच्छा संयोग बन रहा है. इस दिन शनि जयंती होने के साथ खास योग भी बन रहा है. इस दिन सुबह 7:12 से सर्वार्थ सिद्धि योग ( vat savitri vrat 2022 shubh muhurt ) शुरू होकर 31 मई सुबह 5:08 बजे तक रहेगा.

30 मई को पूजा करने का योग: हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि की शुरुआत 29 मई, दिन रविवार को दोपहर 02 बजकर 54 मिनट से हो रही है. इस तिथि का समापन 30 मई, सोमवार को शाम 04 बजकर 59 मिनट पर होगा. वट सावित्री व्रत के लिए अमावस्या की उदयातिथि देखी जाती है. सूर्योदय के समय अमावस्या तिथि 30 मई को पड़ रही है. इस तिथि का समापन 30 मई को शाम 04 बजकर 59 मिनट पर हो रहा है. ऐसे में वट सावित्री व्रत 30 मई 2022 को रखा जाएगा.

इस बार की पूजा से कई गुना फल की प्राप्ति: अमावस्या को सोमवार का दिन पड़ रहा है, इसलिए यह सोमवती अमावस्या के नाम से जानी जाता है. सोमवती अमावस्या को शास्त्रों में बहुत ही पुण्यदायक बताया गया है. सोमवार को अमावस्या का योग भगवान शिव और अपने पितरों के लिए बहुत लाभदायक है. इस खास योग में पूजा करने से कई गुना फल अधिक बढ़ जाएगा. ज्योतिषचार्य मनोज मिश्रा ने कहा कि वट सावित्री व्रत हर साल कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को रखा जाता है. इस साल यह तिथि काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि कई साल बाद 30 मई को सोमवती अमावस्या का शुभ संयोग बन रहा है.

ऐसे करें वट सावित्री पूजा: सुहागिन महिलाओं को सुबह उठकर नित्य क्रिया से निपटकर स्नान करना चाहिए. उसके बाद सोलह सिंगार कर सूर्य देवता को जलाभिषेक कर वट वृक्ष की पूजा अर्चना करें. वट वृक्ष के नीचे जाकर ब्रह्ना तथा सावित्री के पूजन के बाद सत्यवान और सावित्री की पूजा करके बरगद की जड़ में जल दें, मौली, रोली, कच्चा सूत, भींगा चना, फूल तथा धूप से पूजन करें. वट वृक्ष पूजन में तने पर कच्चा सूत ( Vat Savitri Vrat Pujan Samagri List ) लपेट कर 108 बार परिक्रमा का विधान है, किन्तु न्यूनतम सात बार, या तीन परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए.

इन मंत्रों का करें जाप: वट सावित्री के दिन मंगल ग्रह पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करेंगे. इस दिन भगवान शंकर का जलाभिषेक, रुद्राभिषेक, दुग्धाभिषेक करना शुभ माना गया है. वट सावित्री के दिन शिव चालीसा का पाठ करना, महामृत्युंजय मंत्र का पाठ के अलावा शिव पंचाक्षरी मंत्र (ॐ नम: शिवाय) का जाप करना विशिष्ट माना जाता है. सोम प्रदोष के दिन से वट वृक्ष की परिक्रमा शुरू कर दी जाती है. वट वृक्ष की परिक्रमा करने और पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा करने से लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य का फल प्राप्त होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लाई थी.तभी से महिलाएं इस दिन पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं. जितना श्रृंगार कर सकती हैं महिलाओं को उतना श्रृंगार करना चाहिए. पूजा करने के बाद सासु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए. सासु मां नहीं है तो बुजुर्ग महिलाओं से आशीष लें.- मनोज मिश्रा,ज्योतिषविद

हिन्दू कथा अनुसार: राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी. संतान पाने की ख्वाहिश में राजा ने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की. इस तपस्या से प्रसन्न होकर माता सावित्री ने राजा को एक तेजस्वी पुत्री का वरदान दिया. चूंकि इस कन्या का जन्म माता सावित्री की अनुकंपा से हुआ था, इसलिए इसका नाम सावित्री ही रखा गया. राजकुमारी सावित्री जब बड़ी हुईं तो उनके लिए योग्य वर की तलाश करना बड़ा मुश्किल हो रहा था. अंतत: राजा ने एक मंत्री के साथ सावित्रि को वर की तलाश में तपोवन भेज दिया.

सावित्री-सत्यवान की कहानी: सावित्री ने राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को वर के रूप में चुना. राजा द्युमत्सेन का राज-पाठ छिन चुका था और वह वन में रहने लगे थे. सावित्री जब सत्यवान को चुनकर वापस महल पहुंची तो नारद की भविष्यवाणी ने सभी को हैरान कर दिया. उन्होंने कहा कि सत्यवान शादी के 12 वर्ष बाद ही मर जाएगा. ये सुनकर राजा ने सावित्री से कोई दूसरा वर चुनने को कहा, लेकिन सावित्री ने इनकार कर दिया.आखिरकार सावित्री का सत्यवान से विवाह हो गया और वह अपने पति और सास-ससुर के साथ रहने वन चली गईं. नारद की भविष्यवाणी को ध्यान में रखते हुए जब सत्यवान की मृत्यु का समय करीब आया तो सावित्री ने उपवास रखना शुरू कर दिया. एक दिन सत्यवान जब जंगल में लकड़ी काट रहा था, तभी उसकी मृत्यु हो गई और यमराज उसके प्राण लेकर जाने लगे.

सावित्री ने यमराज से मांगे 3 वरदान: यमराज जब सत्यवान के प्राण लेकर जा रहे थे, तब सावित्री भी उनके पीछे आ गई. यमराज के लाख समझाने पर भी सावित्री मुड़कर वापस नहीं गईं. उनकी ये निष्ठा देखकर यमराज प्रसन्न हो गए और उन्होंने सावित्री से तीन वरदान मांगने को कहा. तब सावित्री ने सास-ससुर के लिए आंखें, खोया हुआ राज-पाठ और सौ पुत्रों का वरदान मांगा. यमराज ने सभी मांगें मानकर सावित्री को वरदान दे दिया. तीनों वरदान देकर जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर चलने लगे तो सावित्री फिर उनके पीछे आने लगे. इस बार यमराज नाराज हो गए. तब सावित्री ने यमराज से कहा, 'आपने मुझे 100 पुत्रों का वरदान दिया है और मेरे पति के प्राण आप लेकर जा रहे हैं. बिना पति के यह वरदान भला कैसे सफल होगा.' सावित्री की इस चतुराई से यमराज प्रसन्न हो उठे. उन्होंने तुरंत सत्यवान के प्राण मुक्त कर दिए. इसके बाद सावित्री सत्यवान को लेकर वट के नीचे चली गई और सत्यवान जीवित हो उठे. सावित्री जब पति को लेकर वापस लौटीं तो उन्होंने देखा कि उनके सास-ससुर की आंखें भी वापस आ चुकी हैं और उनका खोया हुआ राज-पाठ भी वापस मिल गया.



व्रत में वट वृक्ष का है काफी महत्व: इस व्रत में वट वृक्ष को काफी महत्व दिया गया है. वट वृक्ष के मूल में ब्रम्हा, मध्य में विष्णु और अग्र भाग में शिव का वास माना गया है. देवी सावित्री भी इस वृक्ष में निवास करती हैं. इसलिए वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएं वट वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करती हैं और कच्चा सूत लपेटती हैं. इसके बाद सभी बैठकर सावित्री की कथा सुनती हैं. कथा सुनने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और पति के संकट दूर होते हैं.

एक दिन में तीन मुख्य पर्वों का संयोग: वट सावित्री पूजन ज्येष्ठ अमावस्या को ही होता है जिसे वट अमावस्या भी कहते हैं. ज्येष्ठ अमावस्या को सूर्यपुत्र शनिदेव का भी जन्म दिवस है. कहा जाता है कि शनिदेव का प्रादुर्भाव ज्येष्ठ मास की अमावस्या को हुआ था, इसलिए भक्तजन इस दिन शनि का भी विशेष पूजन कर सकते हैं. शनि को सबसे प्रिय गरीबों, उपेक्षित, श्रमिकों को भोजन कराना उनकी सहायता करना है. इस दिन अपने अधीनस्थ कर्मचारी, सेवकों को भोजन एवं वस्त्र दान करना चाहिए. इससे शनि प्रसन्न होते हैं. शनि चालीसा एवं शनि स्तोत्र के द्वारा शनिदेव की स्तुति करनी चाहिए. इसी दिन विशेष बात यह है कि ज्येष्ठ अमावस्या अर्थात सोमवती अमावस्या, वट अमावस्या और शनि जयंती का पर्व स्थिर और प्रवर्धन योग में मनाया जाएगा जो एक दुर्लभ योग है और सबसे बड़ी बात अमावस्या को चंद्रमा अपनी उच्च राशि में होंगे. यद्यपि अमावस्या को चंद्रमा सूर्य के साथ अस्त रहते हैं. फिर भी विशेष फलदायक माने गए हैं. वृषभ राशि मे उच्च राशि का चंद्रमा स्थिर मानसिक स्थिति को प्रदर्शित करता है.

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