ETV Bharat / state

पटना के दो छात्रों का कमाल: नींबू की रस से थर्माकोल को गलाकर बनाया स्लैब, छत से लेकर सड़क तक में हो सकता है यूज

author img

By

Published : Dec 18, 2021, 8:20 PM IST

Updated : Dec 19, 2021, 10:21 AM IST

Students Of Patna Made Tiles From Thermocol
Students Of Patna Made Tiles From Thermocol

बिहार के पटना के दो नन्हे वैज्ञानिकों ने वो कमाल कर दिखाया है जिसकी आज सभी प्रशंसा करते नहीं थक रहे. मनेर ब्लॉक के बलुआ गांव के सागर (Sagar Of Patna) और अभिरुख (Abhirukh Of Patna) ने थर्माकोल और प्लास्टिक से टाइल्स बना डाला है. वातावरण को प्रदूषणमुक्त करने के लिए उठाया गया ये कदम आज इन दोनों को पहचान दे रहा है. पढ़ें पूरी खबर..

पटना: राजधानी के तारामंडल सभागार में तीन दिवसीय 29 वें राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस (National Children Science Congress Organized In Patna) का आयोजन किया गया है. इसका विषय रखा गया है सतत जीवन हेतु विज्ञान. इस आयोजन में बच्चे एक से बढ़कर एक तकनीक इजाद कर उसका प्रेजेंटेशन वर्कशॉप में दे रहे हैं. इन्हीं बच्चों में दो बच्चों ने कुछ ऐसी तकनीक इजाद (Students Of Patna Made Tiles From Thermocol) की है, जिसकी सभी प्रशंसा कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें- बिहार की बेटी का कमाल, बना दी कोरोना मरीज की जांच से लेकर देखभाल तक करने वाला रोबोट

नन्हें वैज्ञानिक: पटना के मनेर ब्लॉक के बलुआ गांव (Scientist Of Balua Village Patna) के सागर और अभिरुख नाम के 2 बच्चों ने थर्माकोल और प्लास्टिक को रियूज कर उससे फ्लोर टाइल्स और घर के छत बनाकर सबको चौंका दिया है. सागर कक्षा नौवीं के छात्र हैं और अभिरुख आठवीं कक्षा में पढ़ते हैं. बिहार में थर्माकोल का पॉल्यूशन एक गंभीर विषय है और थर्माकोल के बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए हाल ही में बिहार सरकार ने थर्माकोल के प्लेट, कप और कटोरी पर बैन (Thermocol Ban In Bihar) लगाया है. थर्माकोल प्रदूषण से दोनों छात्र भी काफी चिंतित थे.

थर्माकोल और प्लास्टिक से टाइल्स
थर्माकोल और प्लास्टिक से टाइल्स

कैसे मिली प्रेरणा: शादी विवाह और अन्य पार्टी फंक्शन में यूज हुए थर्माकोल की प्लेट से सॉइल पॉल्यूशन के साथ-साथ एयर पॉल्यूशन भी होता था. इसके कारण वातावरण को काफी नुकसान पहुंच रहा था. सागर और अभिरुख इस बात से काफी चिंतित थे. इनके गांव में थर्माकोल का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा था. लेकिन उससे पर्यावरण को जो नुकसान हो रहा था उस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा था. ऐसे में दोनों छात्रों ने इस नई तकनीक को इजाद किया. नई तकनीक से थर्माकोल के प्रदूषण को न सिर्फ नियंत्रित किया जा सकेगा, बल्कि इससे लोगों को कम कीमत पर टायल्स और घर के छत भी मिल सकेंगे.

यह भी पढ़ें- सरकारी स्कूल की इस छात्रा को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने चुना, जानें 9वीं की प्रतीक्षा ने ऐसा क्या किया?

वहीं सागर के सहयोगी छात्र अभिरुख कुमार ने बताया कि, उन्हें इसका आइडिया तब आया जब एक बार गांव में मोहल्ले में एक शादी समारोह हुआ. शादी के बाद काफी मात्रा में थर्माकोल खेतों में जमा हो गया. लोग आग लगा रहे थे तो धुआं परेशान कर रही थी. इसी दौरान उनकी मां ने नींबू को काटकर एक थर्मोकोल की प्लेट में रख दिया. अभिरूख ने देखा कि जहां नींबू रखा गया है, वहां थर्मोकोल डिग्रेड हो रहा है.

इसके बाद अभिरुख ने अपने शिक्षक से यह सवाल पूछा कि, नींबू के रस से थर्माकोल क्यों डिग्रेड होता है. इस सवाल का जवाब शिक्षक ने बहुत ही अच्छे से देते हुए उन्हें विस्तृत रूप से समझाया. इसी के बाद अभिरुख और सागर को थर्माकोल को रियूज कर स्लैब बनाने का आइडिया आया.

यह भी पढ़ें- बिहार की बेटी का कमाल, बना दी कोरोना मरीज की जांच से लेकर देखभाल तक करने वाला रोबोट

थर्माकोल से टाइल्स बनाने की विधि: छात्र सागर कुमार ने बताया कि, अपनी प्रेजेंटेशन में दिखाया है कि किस प्रकार थर्मोकोल को रियूज किया जा सकता है. सागर ने बताया कि इसके लिए वह नींबू और नारंगी के रस और उसके छिलके के रस को निकाल कर डिस्टलेशन मेथड से तेल तैयार करते हैं. फिर इसमें थर्मोकोल को डालकर डिग्रेड किया. इसके बाद पूरा कंपोजीशन ग्लू के फॉर्म में तैयार हो गया. इसके बाद प्लास्टिक पर ग्लू को रखकर बालू, कैलशियम ऑक्साइड पाउडर मिक्स कर 72 घंटे के लिए उसे सूखने के लिए रख दिया और बाद में एक स्लैब तैयार हो गया.

"थर्माकोल से तैयार इस स्लैब पर 100 न्यूटन का वजन आसानी से दिया जा सकता है और स्लैब को कोई क्षति नहीं होगी. इसके साथ ही 60 डिग्री सेल्सियस का टेंपरेचर यह आसानी से मेंटेन कर सकता है और इसके बाद टेंपरेचर यदि हाई होता है तब, इसके स्ट्रक्चर में थोडा बहुत बदलाव शुरू होगा."- सागर, नौवीं के छात्र

Students Of Patna Made Tiles From Thermocol
दो नन्हे वैज्ञानिकों का कमाल

यह भी पढ़ें- गया: सरकारी स्कूल के बच्चे बनाएंगे रोबोट, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी दे रहा प्रशिक्षण

"इसका एक बड़ा स्लैब 15-20 रुपये में बन जाता है. ऐसे में इसे सड़क किनारे फ्लोर टाइल्स के तौर पर यूज किया जा सकता है. इसके अलावा घर के छत पर एस्बेस्टस की जगह इसे रिप्लेस किया जा सकता है. इसकी खासियत यह है कि, इसमें पानी ऑब्जर्व नहीं होता है. ऐसे में छत से पानी के सीलन होने की समस्या नहीं रहेगी और पानी आसानी से नीचे गिर जाएगा. बाल विज्ञान कांग्रेस में जो भी निरीक्षक हैं, उन्होंने इसे देखा है और सराहा भी है. इसे और बड़े पैमाने पर तैयार करने का निर्देश भी दिया गया है."- अभिरुख, आठवीं के छात्र

सागर और अभिरुख के मेंटर सह शिक्षक पंकज कुमार ने बताया कि, बच्चे जब विज्ञान कांग्रेस में शामिल होने के लिए यह आइडिया लेकर उनके पास पहुंचे तो उन्हें काफी प्रसन्नता हुई. बच्चों ने इस पर काफी बेहतरीन काम किया है.

"इसके लिए जो कुछ भी तकनीक इजाद की गई है, वह पूरी तरह से घरेलू निर्मित तरीके से बने हैं. इसके लिए कोई भी सामान बाहर से नहीं खरीदना पड़ा है. थर्माकोल गला कर उससे ग्लू बनाना हो या फिर उस ग्लू को बालू और कैल्शियम ऑक्साइड पाउडर मिक्स कर एक सॉलिड रूप देना हो, सभी काम बच्चों ने किया है."- पंकज कुमार,शिक्षक

थर्माकोल और प्लास्टिक से छात्रों ने बनाया टाइल्स

छात्रों ने बताया कि, ग्लू को सॉलिड रूप देने के लिए उसे 72 घंटे सुखाना पड़ता है. यदि किसी के घर का आंधी तूफान में एस्बेस्टस उड़ जाता है तो, इस तकनीक के माध्यम से 72 घंटे में वह अपने घर पर एक मजबूत छत तैयार कर सकता है. विज्ञान कांग्रेस में बैठे विशेषज्ञों ने बलुआ गांव के सागर और अभिरुख को इस तकनीक के लिए खूब सराहा है.

ऐसी ही विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ETV BHARAT APP

Last Updated :Dec 19, 2021, 10:21 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.