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Thakur Vs Brahmin Dispute : बिहार में 'ठाकुर' पर तनातनी.. आंकड़ों से जानें राजपूत-ब्राह्मण वोट बैंक किसके साथ

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Sep 29, 2023, 7:42 PM IST

Manoj Jha Thakur Remarks राजद सांसद के ठाकुर को लेकर दिए बयान पर बिहार में घमासान जारी है. लालू यादव ने इसको लेकर बहुत सावधानी बरतते हुए बयान दिया तो जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने आरजेडी सांसद का साथ दिया. वैसे भाजपा सहित सभी दल इसको अपने तरीके से भुनाने में लगे हैं क्योंकि सभी को 2024 चुनाव सामने दिख रहा है. आखिर बिहार में राजपूत और ब्राह्मण वोट बैंक की क्या स्थिति है. जानें

बिहार में ठाकुर पर तनातनी
बिहार में ठाकुर पर तनातनी

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पटना: बिहार में चुनाव में जातीय समीकरण बहुत मायने रखता है. सभी दल जातीय समीकरण और सामाजिक समीकरण के हिसाब से ही सीटों के चयन से लेकर उम्मीदवारों के चयन तक करते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है. इन दिनों राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा के ठाकुर वाले कविता को लेकर जाति पर सियासत शुरू है. कोशिश राजपूत वर्सेस ब्राह्मण करने की भी हो रही है.

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वोटों का गणित: बिहार में राजपूत और ब्राह्मणों की कुल वोट 10 से 11% के करीब है. ऐसे तो अपर कास्ट के अधिकांश वोट पर एनडीए अपना दावा करती रही है, लेकिन महागठबंधन को भी राजपूत और ब्राह्मण का वोट मिलता रहा है. ऐसे में राजद सांसद मनोज झा के बयान के बाद राजद के राजपूत विधायक (चेतन आनंद) की तरफ से ही आपत्ति जताई गई.

इन सीटों पर राजपूत-ब्राह्मण का दबदबा: ऐसे तो बिहार में पिछले दो दशक से अधिकांश सवर्ण वोट बैंक पर एनडीए का ही कब्जा रहा है. उसमें भी बीजेपी आगे रही है. राजपूत और ब्राह्मण की बात करें तो दोनों का वोट प्रतिशत 10 से 11% के बीच है. राजपूत जहां 5% है तो वहीं ब्राह्मण 6% के करीब है. बिहार में आरा, सारण, महाराजगंज, औरंगाबाद वैशाली जैसे जिलों में राजपूत का दबदबा है तो वही दरभंगा, मधुबनी, गोपालगंज, कैमूर, बक्सर में ब्राह्मणों का दबदबा माना जाता है. इन सीटों से राजपूत और ब्राह्मण उम्मीदवार ही जीतते रहे हैं.

30- 35 विधानसभा क्षेत्रों में राजपूत मतदाता निर्णायक : इसके अलावा 30 से 35 विधानसभा क्षेत्र में राजपूत मतदाता हार जीत तय करते हैं. कमोबेश यही स्थिति ब्राह्मण मतदाताओं की भी है. आनंद मोहन 1990 के दौर में राजपूत और ब्राह्मण युवकों के हीरो हुआ करते थे, लेकिन 1994 में आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या में उम्रकैद की सजा हो गई. इसके कारण वह प्रभाव जाता रहा. अब उनकी रिहाई हो गई है. फिर से राजनीति में सक्रिय हैं. 2024 के चुनाव में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहते हैं.

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बोले जदयू के मंत्री- 'ऐसे बयान से करें परहेज:' इसलिए राज्यसभा में आरजेडी सांसद मनोज झा के ठाकुर कविता पढ़े जाने के एक सप्ताह बाद इसे तूल देने की कोशिश की गई. आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद राजद के विधायक हैं. सबसे पहले उनकी तरफ से ही आपत्ति जताई गई. फिर पूरा परिवार इस मामले में कूद पड़ा. विभिन्न दल के राजपूत नेताओं ने भी अपने-अपने तरीके से बयान दिया. बीजेपी के नेता इस मामले में आगे दिख रहे हैं. महागठबंधन खेमा जहां मनोज झा के साथ दिख रहा है. वहीं जदयू की तरफ से एक दिन पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह द्वारा दिए गए बयान से थोड़ा हटकर मंत्री संजय झा ने कहा कि हमारे नेता सभी जाति धर्म को सम्मान आदर देते हैं. इसलिए सार्वजनिक तौर पर इस तरह के बयान से बचना चाहिए.

"हमारी पार्टी और हमारे नेता सभी जाति का सम्मान करते हैं. किसी को छोड़कर नहीं बल्कि सभी को साथ लेकर चलते हैं. मैं इतना ही कहूंगा कि जब सार्वजनिक तौर पर हम कोई भाषण देते हैं या कोई कविता बोलते हैं तो समाज को आहत करने से परहेज करना चाहिए."- संजय झा, जदयू कोटे से मंत्री

'बिहार को फिर से जातिवाद के दौर में झोंकने की कोशिश': बीजेपी के राजपूत विधायक और नेता आरजेडी सांसद मनोज झा के खिलाफ आपत्तिजनक बयान तक दे रहे हैं. वहीं पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने तेजस्वी यादव से इस मामले में माफी मांगने की बात कही, लेकिन नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा का कहना है कि बिहार को फिर से जातिवाद के दौर में झोंकना चाहते हैं. सभी जाति के लोग मिलकर उसका विरोध करें. एक तरह से बीजेपी का निशाना राजद ही है.

"जाति की बात करने वाले जहरीले नाग बिहार की प्रतिभा, विरासत, सम्मान और स्वाभिमान को बार-बार चोट पहुंचा रहे हैं. ऐसे लोगों के विरुद्ध सभी को मिलकर अभियान चलाना चाहिए."- विजय सिन्हा, नेता प्रतिपक्ष विधानसभा

राजनीतिक विशेषज्ञों की राय: वहीं राजनीतिक विशेषज्ञ प्रिय रंजन भारती का कहना है बिहार में राजनीति की सियासत कोई नई बात नहीं है. उम्मीदवार से लेकर सीटों तक में इसका ध्यान रखा जाता है.। ब्राह्मण और राजपूत का बिहार की राजनीति में शुरू से दबदबा रहा है. हालांकि 90 के दशक के बाद से यह दबदबा कमा जरूर है, लेकिन कुछ बयानों से राजपूत और ब्राह्मण एक दूसरे के खिलाफ हो जाएंगे, इसकी संभावना कम है. ऐसे राजपूत और ब्राह्मण वोट बैंक माना जाता है कि यह एनडीए के साथ बड़ा हिस्सा जाता है.

"इस तरह के बयानों से बचना चाहिए क्योंकि ठाकुर कविता जिस तरह से पढ़ा गया और जिस संदर्भ में लिखा गया है यह आज के लिए उपयुक्त नहीं है. इसलिए इस तरह की कविता पाठ से एक खास जाति असहज होता है. क्योंकि ठाकुर का अभिप्राय क्षत्रिय से ही लगाया जाता है. ऐसे तो लिखने के लिए मैथिली ब्राह्मण भी ठाकुर लिखते हैं और दूसरे लोग भी लेकिन लोग क्षत्रिय को ही इससे जोड़ते हैं."- प्रोफेसर अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ

बड़ा तबका है बीजेपी का वोट: 2000 विधानसभा चुनाव से लेकर 2020 विधानसभा चुनाव तक देखें तो राजपूत और ब्राह्मण वोटो का अधिकांश हिस्सा भाजपा और उसकी सहयोगी दलों को ही मिला है. विभिन्न सर्वे रिपोर्ट के आधार पर देखें तो 2000 विधानसभा चुनाव में राजपूत का 38% वोट बीजेपी को मिला था. हालांकि 2005 में यह घटकर 23% हो गया. 2010 में यह फिर बढ़कर 31% हो गया और वहीं 2014 में 63% वोट भाजपा को मिला. जदयू को 2010 में 8% राजपूत वोट मिला था जो 2005 में बढ़कर 45% हो गया और 2010 में 26 % था.

इस वोट बैंक पर सभी दलों की नजरें: वहीं राजद की बात करें 2000 में 17 फीसदी वोट राजपूत का मिला था 2005 में घटकर 6 फीसदी हो गया 2010 में यह बढ़कर 10 फ़ीसदी के करीब था लेकिन 2014 में यह घटकर तीन फ़ीसदी पर आ गया. ब्राह्मणों की वोट की बात करें तो 2000 में बीजेपी को 17 % ब्राह्मणों का वोट मिला था जो 2005 में बढ़कर 29 % हो गया. 2010 में यह 30% के करीब पहुंच गया. वहीं 2014 लोकसभा चुनाव में 54% से अधिक ब्राह्मण वोट बीजेपी को मिला. वहीं जदयू को 2000 में 24%, 2005 में 37%, 2010 में 25% और 2014 में पांच फ़ीसदी वोट मिला था.

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लोक नीति सीएसडीएस सर्वे : लोक नीति सीएसडीएस के सर्वे के अनुसार 2020 के विधानसभा चुनाव में 55 फ़ीसदी राजपूत वोट एनडीए को मिला था. वहीं ब्राह्मणों का 52 फ़ीसदी वोट मिला था. जबकि राजद को 2000 में ब्राह्मणों का तीन फ़ीसदी वोट मिला था. 2005 में यह चार फ़ीसदी पहुंचा तो ही 2010 में बढ़कर 7 फ़ीसदी हो गया 2014 में यह बढ़कर 10 फीसदी तक हो गया. लोक नीति सीएसडीएस के सर्वे के अनुसार 2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को 15 फ़ीसदी ब्राह्मणों का और 9 फ़ीसदी राजपूत का वोट मिला था.

बिहार विधानसभा में स्थिति: बिहार विधानसभा में इस बार हर चार विधायक में से एक सवर्ण है. राज्य की 243 विधानसभा सीटों में से करीब 64 विधायक अगड़ी जातियों से चुनकर आए हैं. बिहार में कुल 28 राजपूत विधायक जीतकर आए हैं, जबकि 2015 में 20 विधायक जीते थे. इस तरह से राजपूत विधायकों की संख्या में 8 का इजाफा हुआ है.2020 में बीजेपी ने 21 राजपूतों को टिकट दिया था, जिनमें से 15 जीते हैं. जेडीयू के 7 राजपूत प्रत्याशियों में से महज 2 ही जीत सके और दो वीआईपी के टिकट पर जीते थे . इस तरह से एनडीए के 29 टिकट में से 19 राजपूत विधानसभा पहुंचे हैं.

महागठबंधन की स्थिति: वहीं, तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने 18 राजपूतों को टिकट दिया था, जिनमें से महज 8 ही जीत सके हैं. आरजेडी ने इस बार 8 टिकट दिए थे, जिनमें से सात जीते हैं जबकि कांग्रेस के 10 में से एक को जीत मिली है. इसके अलावा एक निर्दलीय राजपूत विधायक ने जीत दर्ज की है. जो जदयू के साथ हैं पिछले चुनाव 2015 में बीजेपी से 9, आरजेडी से 2, जेडीयू से 6 और कांग्रेस से तीन राजपूत विधायक चुने गए थे.

वहीं 2020 में 12 ब्राह्मण विधायक चुनाव जीते हैं, जबकि 2015 में 11 विधायकों ने जीत हासिल की थी. बीजेपी के 12 ब्राह्मण कैंडिडेटों में से 5 को जीत मिली और जेडीयू के दोनों ब्राह्मण प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंचे . वहीं, कांग्रेस के 9 ब्राह्मणों में से 3 जीते हैं जबकि आरजेडी के 4 में से 2 को जीत मिली है. 2015 के चुनाव में 11 ब्राह्मण जीते थे, जिनमें 3 बीजेपी, 1 आरजेडी, 2 जेडीयू और 4 कांग्रेस से थे.

ब्राह्मण और राजपूत विधायकों की संख्या: 2020 विधानसभा चुनाव में प्रमुख दलों के ब्राह्मण और राजपूत विधायक की संख्या से भी पार्टियों के प्रभाव को समझा जा सकता है. बीजेपी के 5 ब्राह्मण विधायक रहे तो 15 राजपूत विधायक, जदयू के 2 ब्राह्मण और 2 राजपूत विधायक, राजद के ब्राह्मण 2 और राजपूत 8 वहीं कांग्रेस के 3 विधायक ब्राह्मण रहे तो 1 राजपूत.

किस ओर जा रही आनंद मोहन की राजनीति?: आनंद मोहन की रिहाई का फायदा महागठबंधन लेना चाहती थी लेकिन पिछले दिनों जो खबर चर्चा में है आनंद मोहन लालू यादव से मिलने राबड़ी आवास पहुंचे थे, लेकिन लालू यादव ने मुलाकात नहीं की. इससे कहीं ना कहीं आनंद मोहन नाराज हो गए हैं और राजद सांसद मनोज झा के राज्यसभा में ठाकुर कविता को लेकर इसे तूल देने में लगे हैं.आनंद मोहन जेल से रिहाई के बाद सभी जिलों का दौरा कर रहे हैं और नवंबर में गांधी मैदान में बड़ी रैली की घोषणा भी कर रखी है. लेकिन पहले वाला रॉबिन हुड जैसा प्रभाव अब उन्हें दिख नहीं रहा है और इसलिए इसे एक मुद्दा बनाने में लगे हैं.

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