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बिहार में RTI का हाल: एक्टिविस्ट बोले- सूचना मांगना अब जी का जंजाल, लगा दिए जाते हैं आरोप

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Published : Sep 10, 2019, 12:50 AM IST

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बिहार में आरटीआई कार्यकर्ता डरे-सहमे हुए हैं. कार्यकर्ताओं की माने तो अब आरटीआई दायर करने के बाद जवाब मिले तो ठीक, न मिले तो ठीक. ऐसा वो खुद बयां करते हुए कहते हैं कि ज्यादा दबाव बनाने पर उन्हें किसी न किसी आरोप में फंसा दिया जाता है.

पटना: बिहार में 2006 से आरटीआई कानून लागू है. इसके तहत पिछली सरकारों के कई घोटालों का पर्दाफाश किया गया. लेकिन पिछले कुछ सालों से बिहार सरकार के अधिकारी कई तरह की परेशानियां आरटीआई एक्टिविस्ट के लिये पैदा कर रहे हैं. इस कारण आरटीआई दायर करने वाले अब इस एक्ट से डर रहे हैं. उनका कहना है कि आरटीआई एक्ट तो अच्छा है. लेकिन अब इसके साथ खेल किया जा रहा है. अब आरटीआई दायर करने में डर लगता है.

गुड्डू बाबा, आरटीआई कार्यकर्ता
गुड्डू बाबा, आरटीआई कार्यकर्ता

एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में अब तक 15 आरटीआई एक्टिविस्टों की हत्या हो चुकी है. यही नहीं कई के ऊपर आरोप लगा उन्हें जेल तक भेजा जा चुका है. बात करें, मुजफ्फरपुर के चर्चित आरटीआई एक्टिविस्ट हेंमत की तो वो एससी एसटी एक्ट में सजायाफ्ता हैं. दूसरी तरफ सूबे के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीए से भी एक बड़ा मामला सामने आया है. यहां लाशों के बेचे जाने को लेकर आरटीआई एक्टविस्ट गुड्डू बाबा पर आरोप लगाया गया है. इस बाबत गुड्डू काफी डरे हुए हैं. वो कहते हैं कि आरटीआई पर से विश्वास उठ गया है.

श्री प्रकाश, आरटीआई कार्यकर्ता
श्री प्रकाश, आरटीआई कार्यकर्ता

अधिकारियों का खेला...
एक और आरटीआई एक्टिविस्ट श्री प्रकाश का मानना है कि एक्ट तो बहुत अच्छा है लेकिन इसमें अधिकारी दबाव बनाने से नहीं चूक रहे हैं. उन्होंने सरकार और प्रशासन पर भ्रष्टचारियों को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए कहा कि भ्रष्टाचारियों के पास पैसा है. उनसे डर लगता है, वो पीछे पड़े रहते हैं.

कुल मिलाकर बिहार में आरटीआई के तहत सूचना मांगने वालों की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं. सूचना मांगने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट में से 600 के खिलाफ केस भी दर्ज है. बिहार में काम करने वाले एक्टिविस्ट की माने तो शुरुआत में बहुत अच्छा सपोर्ट सरकार के अधिकारियों से मिला था क्योंकि पिछली सरकारों के घोटाले को उजागर करना था. लेकिन अब जब खुद नीतीश सरकार के घोटाले उजागर होने लगे, तो सूचना देने में कई तरह की दिक्कतें शुरू हो गईं.

बिहार में RTI का हाल

एक नजर, इस बड़े हत्याकांड पर

  • आरटीआई के तहत सूचना मांगने वालों के खिलाफ पिछले कुछ सालों से सरकारी अधिकारियों की ओर से फंसाने की कोशिश भी होती रही है.
  • बिहार में आरटीआई कार्यकर्ता की हत्या की पहली घटना 2010 में हुई थी.
  • बेगूसराय के फुलवरिया गांव निवासी शशिधर मिश्रा को उनके घर के पास ही गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
  • शशिधर ने 2 साल में लगभग 1000 आरटीआई देकर कई घोटालों को उजागर किया था.
  • उसके बाद यह सिलसिला चल पड़ा और कई आरटीआई एक्टिविस्ट को मौत की नींद सुला दिया गया.
  • 2018 की बात करें तो 5 आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या की गई.
  • इसमें सबसे चर्चित राजेंद्र सिंह का नाम था. इस पर सरकार घिरती भी नजर आयी.
Intro:पटना-- बिहार में 2006 से आरटीआई कानून लागू है और इसके तहत पिछली सरकारों के कई घोटाले का पर्दाफाश किया गया लेकिन पिछले कुछ सालों से बिहार सरकार के अधिकारी कई तरह की परेशानियां आरटीआई एक्टिविस्ट के लिये पैदा कर रहे हैं। जिसके कारण एक्टिविस्ट को काम करना काफी मुश्किल हो रहा है बिहार में अब तक 15 आरटीआई एक्टिविस्टों की हत्या भी की जा चुकी है। कई को साजिश के तहत फंसाया गया है जेल भी भेजा गया है अब बिहार में काम करने वाले आरटीआई कार्यकर्ताओं को सूचना मांगने में भी डर लगने लगा है।
पेश है खास रिपोर्ट---



Body:बिहार में आरटीआई के तहत सूचना मांगने वालों की मुश्किलें बढ़ी हुई है सूचना मांगने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट में से 600 के खिलाफ केस भी हो चुका है और 15 को मौत की नींद भी सुला दिया गया है बिहार में काम करने वाले एक्टिविस्ट की माने तो शुरुआत में बहुत अच्छा सपोर्ट सरकार के अधिकारियों से मिला था क्योंकि पिछली सरकारों के घोटाले को उजागर करना था तो नीतीश सरकार ने भरपूर सहयोग दिया लेकिन अब जब खुद नीतीश सरकार के घोटाले उजागर होने लगे तो सूचना देने में कई तरह की दिक्कतें शुरू हो गई।
बाईट-- शिव प्रकाश आरटीआई एक्टिविस्ट
आरटीआई के माध्यम से पीएमसीएस सहित स्वास्थ्य और कई तरह की जन सेवाओं में सुधार लाने वाले गुड्डू बाबा की माने तो शुरू में जरूर आरटीआई के माध्यम से कई घोटाले उजागर हुए लेकिन अब सूचना देने में हर तरह की आनाकानी की जा रही है आयोग तीन तीन साल तक मामले को लटकाए हुए है।
बाईट--गुडडू बाबा, आरटीआई एक्टिविस्ट
आरटीआई कार्यकर्ता शिव प्रकाश का यह भी कहना है कि अब काम करने में बहुत डर लगता है हमेशा भ्रष्टाचारियों और अपराध प्रवृति के लोगों से डर बना रहता है। क्योंकि उनके पास हथियार भी है और धन भी।
बाईट--शिव प्रकाश, आरटीआई एक्टिविस्ट।




Conclusion: आरटीआई के तहत सूचना मांगने वालों के खिलाफ पिछले कुछ सालों से सरकारी अधिकारियों की ओर से फंसाने की कोशिश भी होती रही है। बिहार में आरटीआई कार्यकर्ता की हत्या की पहली घटना 2010 में हुई थी बेगूसराय के फुलवरिया गांव निवासी शशिधर मिश्रा को उनके घर के पास ही गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। शशिधर ने 2 साल में लगभग 1000 आरटीआई देकर कई घोटालों का उजागर किया था। उसके बाद यह सिलसिला चल पड़ा और कई आरटीआई एक्टिविस्ट को मौत की नींद सुला दी गई 2018 की बात करें इस साल 5 आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या की गई जिसमें सबसे चर्चित राजेंद्र सिंह का नाम था। इस पर सरकार घिरती भी नजर आयी।
अविनाश, पटना।
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