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बिहार में आरक्षण पर सियासत, पिछड़ा और अति पिछड़ा को साधने की कोशिश

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Published : Nov 10, 2022, 1:50 PM IST

बिहार में महागठबंधन की सरकार बने हुए 3 महीने से ज्यादा का समय हो गया है, लेकिन अब तक जातीय जनगणना शुरू नहीं हुई है. मामला ठंडे बस्ते में चला गया है. इस बीच अब सीएम नीतीश कुमार ने आरक्षण (Politics On Reservation In Bihar) की 50% की सीमा को बढ़ाने की मांग कर दी है, जिस पर राजनीतिक बयानबाजी तेज होने लगी है.

बिहार में आरक्षण की सियासत
बिहार में आरक्षण की सियासत

पटनाः बिहार में जातीय जनगणना कराने का सरकार ने फैसला लिया है. 5 महीने पहले जातीय जनगणना (caste census In Bihar) कराने का फैसला एनडीए सरकार में हुआ था, लेकिन अब तक जातीय जनगणना शुरू नहीं हुई है. सरकार ने फरवरी तक डेड लाइन रखी है लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) ने इस बीच आरक्षण की 50% की सीमा को बढ़ाने की मांग कर दी है. साथ ही यह भी कहा है कि पिछड़ा और अति पिछड़ा को उनकी आबादी के अनुसार आरक्षण नहीं मिल रहा है. जिसके बाद बिहार में इस पर सियासत भी शुरू हो गई है.

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आरक्षण का वर्तमान कोटा बढ़ाना संभव नहींः जातीय जनगणना के बाद पिछड़ा और अति पिछड़ा आरक्षण को लेकर मुख्यमंत्री ने अपनी मंशा भी एक तरह से बताने की कोशिश की है. आरजेडी का कहना है कि जब तक जातीय जनगणना नहीं हो जाता है, तब तक आरक्षण का वर्तमान कोटा बढ़ाना संभव नहीं होगा. वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि आरक्षण का कोटा बढ़ाने के लिए कुछ तो आधार होना चाहिए और जातीय जनगणना हो रही है, उसी के बाद कुछ संभव है. जातीय जनगणना के बाद ही जातियों की आबादी और उनकी शैक्षणिक राजनीतिक और आर्थिक स्थिति का पता चलेगा लेकिन उससे पहले ही मुख्यमंत्री ने कहा है पिछड़ा और अति पिछड़ा को आबादी के अनुसार आरक्षण नहीं मिल रहा है. इसलिए 10% सामान्य वर्ग को जो आरक्षण दिया गया है और सुप्रीम कोर्ट ने भी बहाल रखा है तो अच्छी बात है, लेकिन पिछड़ा और अति पिछड़ा को उनकी आबादी के अनुसार आरक्षण मिले इसके लिए जरूरी है कि पहले से 50% के बेरिया को हटाना चाहिए.

आरक्षण में बदलाव की जरूरतः मुख्यमंत्री के इस बयान को जदयू सही बता रही है, जदयू के प्रवक्ता परिमल राज का कहना है कि पिछड़ा और अति पिछड़ा कोटा बढ़ाने की मांग सियासत नहीं है. सामान्य वर्ग के लिए 10% आरक्षण का फैसला नरसिम्हा राव की सरकार के समय ही हुआ था लेकिन मामला कोर्ट में गया था और कोर्ट ने अब जाकर उसे बरकरार रखने का फैसला लिया है और आज की स्थिति में पहले से 50% आरक्षण का कोटा है उसे बढ़ाना जरूरी है. जब लागू किया गया था उस समय के लिए वह ठीक था लेकिन अब स्थितियां बदली है इसलिए इसमें भी बदलाव की जरूरत है.

"सामान्य वर्ग के लिए 10% आरक्षण का फैसला नरसिम्हा राव की सरकार के समय ही हुआ था. मामला कोर्ट में गया था और कोर्ट ने अब उसे बरकरार रखने का फैसला लिया है और आज की स्थिति में पहले से 50% आरक्षण का कोटा है उसे बढ़ाना जरूरी है. जब लागू किया गया था उस समय के लिए वह ठीक था लेकिन अब स्थितियां बदली है इसलिए इसमें भी बदलाव की जरूरत है"- परिमल राज, प्रवक्ता जदयू


जातीय जनगणना होना पहले जरूरीः हालांकि सहयोगी आरजेडी का कहना है कि जातीय जनगणना के बाद ही किसे कितना आरक्षण मिल सकता है इस पर फैसला हो सकता है. आरजेडी प्रवक्ता चितरंजन गगन का कहना है कि अगर जरूरत होगी तो कोटा बढ़ाया जा सकता है लेकिन इसका वैज्ञानिक आधार जातीय जनगणना ही हो सकता है. वहीं, बीजेपी का कहना है कि नीतीश कुमार पिछड़ा अति पिछड़ा को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. आरक्षण से विकास संभव नहीं है क्योंकि ये तो सीमित संख्या में ही लोगों को मिलता है.

बिहार में इस प्रकार से अभी आरक्षण लागू हैं.
पिछड़ा-12% , अति पिछड़ा- 18% , पिछड़ा महिला- 3%, अनुसूचित जाति- 16% , अनुसूचित जनजाति- 1%

सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 10% आरक्षण ः नीतीश सरकार ने सरकारी नौकरियों में सभी वर्गों में महिलाओं के लिए 35% आरक्षण तय कर दिया है. सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 10% आरक्षण लागू होने के बाद यह सीमा 50% से अधिक हो जाती है. पटना हाई कोर्ट के सीनियर एडवोकेट आलोक कुमार सिन्हा का कहना है कि आरक्षण का जो 50% का कोटा है वह पहले ही समाप्त हो चुका है और इससे अधिक आरक्षण दिया जा रहा है, लेकिन रिस्ट्रिक्शन इसलिए है कि आरक्षण आप किस आधार पर देंगे उसके लिए जातीय जनगणना जरूरी है. नौकरी में तो अधिक आरक्षण देना संभव है लेकिन चुनाव में आरक्षण देना फिलहाल संभव नहीं है. नगर निकाय चुनाव में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी आधार पर डिसीजन दिया है.

सूची में 30 जातियां बच गई हैः बिहार में सरकार ने पिछड़े कई जातियों को अति पिछड़े वर्ग में डाल दिया है तो वही अति पिछड़े वर्ग की जातियों को एससी एसटी में डाल दिया है. 2002 में लागू आरक्षण सूची में 36 जातियों का स्थान बदल गया है अति पिछड़ा में 113 और पिछड़ा वर्ग की सूची में शामिल 31 जातियां हैं. राज्य की अति पिछड़ा वर्ग की में शामिल 127 जातियों में से 14 जातियों को विलोपित कर उन्हें अनुसूचित जाति जनजाति में शामिल किया गया है पिछड़ा वर्ग सूची एक में दर्ज जातियों की संख्या अभी 113 है वही पिछड़े वर्ग अनुसूची 2 में शामिल 45 जातियों में से 16 को विलोपित किया गया है और अब इस सूची में 30 जातियां बच गई है.

मुख्यमंत्री ने आरक्षण को लेकर दिया था बड़ा बयानः इस तरह देखें तो 2002 के बाद राज्य के आरक्षण सूची में शामिल 22 जातियों को पिछड़े वर्ग से हटाकर अति पिछड़ा में डाला गया है और अति पिछड़ा से 14 जातियों को निकालकर एससी एसटी की सूची में डाला गया है. लेकिन इस वर्ग के आरक्षण में कोई बदलाव नहीं किया गया है इसको लेकर भी कई बार मांग होती रही है कि इसकी भी समीक्षा होनी चाहिए जीतन राम मांझी से लेकर जदयू राजद और अन्य दलों के भी अति पिछड़ा और एससी-एसटी वर्ग के नेता यह मांग करते रहे हैं. अब मुख्यमंत्री ने आरक्षण कोटा बढ़ाने को लेकर बड़ा बयान दिया है तो इस पर सियासत भी हो रही है.

बीजेपी पर आरक्षण समाप्त करने का आरोपः आपको बता दें कि बिहार में 2015 में भी आरक्षण को लेकर महागठबंधन ने चुनाव में बड़ी जीत हासिल की थी. मोहन भागवत के बयान के बाद बीजेपी पर आरक्षण समाप्त करने का आरोप लगाया था और उसे भुनाने की पूरी कोशिश की थी, जिसका लाभ भी मिला है. अब एक बार फिर से 2024 और 2025 पर नीतीश कुमार की नजर है और जातीय जनगणना के बाद अति पिछड़ा और पिछड़ा आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर से बिहार में जोर पकड़ेगा यह तय है.

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