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वचन दिया- 'जाति की राजनीति नहीं करूंगा'... तो गिनती कराएं कैसे?

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Published : Aug 23, 2021, 9:35 PM IST

बिहार ने जातीय जनगणना की मांग पीएम मोदी के सामने रख दी है. ऐसे में पीएम नरेंद्र मोदी के लिए ये मुद्दा सुलझाना आसान नहीं होगा क्योंकि 'जाति की राजनीति से ऊपर' उठने का वादा देकर राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा था. तब नरेंद्र मोदी PM पद के दावेदार थे. पढ़ें पूरी खबर-

जातीय जनगणना पर पीएम से मिले सीएम
जातीय जनगणना पर पीएम मोदी

पटना: यह अजीब संयोग है कि जातीय जनगणना (Cast Census) की जिस राजनीति को बिहार ने पीएम नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के पास जाकर रखा है, वह नरेंद्र मोदी के लिए बहुत आसान नहीं है. बिहार में जाति जनगणना को लेकर दिल्ली पहुंची सियासत ने आज बिहार के मन को प्रधानमंत्री के सामने रख दिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में सभी दलों के प्रतिनिधियों ने अपनी बात को पीएम के सामने रखी और कहा कि- 'जाति जनगणना जरूरी है'.

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जातीय जनगणना की मांग तो बिहार ने कर दी है, लेकिन जिस चीज को बिहार ने मांग बनाकर नरेंद्र मोदी को भेजा था वह नरेंद्र मोदी के गले की हड्डी बनी हुई है. अब उससे बीजेपी कैसे निकल कर बाहर आएगी ? और मोदी क्या बयान देंगे ? यह राजनीति में दिए गए बयानों की सुचिता और उस पर टिके रहने पर आकर बैठ गया है. क्योंकि जातीय जनगणना पर अंतिम फैसला तो पीएम मोदी को ही लेना है.

3 मार्च 2014 को मुजफ्फरपुर में पीएम नरेंद्र मोदी की हुंकार रैली थी. रैली में ही रामविलास पासवान बीजेपी के साथ खड़े हुए थे. उस समय प्रधानमंत्री के दावेदार नरेंद्र मोदी ने यह कहा था कि 'जान दे दूंगा लेकिन जाति की राजनीति नहीं करूंगा'. अब सवाल यह उठ रहा है कि जिस जाति की राजनीति को लेकर पूरा बिहार नरेंद्र मोदी से मिलने गया था, उसमें सभी जाति के ही लंबरदार हैं. सब लोगों की अपनी जाति पर गोलबंदी और पकड़ है. उसी सियासत को बिहार में करने का एकाधिकार भी इनके पास है. सवाल ये है कि अब ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या करेंगे?

बिहार से जो दल नरेंद्र मोदी से मिला है उसमें खुद नीतीश कुमार 'दलित-महादलित' की राजनीति को लेकर बिहार में खूब चर्चा बटोरी हैं. जीतन राम मांझी की बात की जाए तो एक खास समुदाय के सबसे बड़े नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाना चाहते हैं. तेजस्वी यादव अपने पिता के राजनीतिक सियासत के उस विरासत को संभाले हुए हैं जिसमें 'भूरा बाल साफ करो' जैसा नारा ही दिया गया. आज की राजनीति में जाति की बात करके मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे मुकेश साहनी 'मल्लाह' समाज की बात करते हैं. कांग्रेस का एमवाई समीकरण सबसे लंबे समय तक उसे गद्दी पर रखा है. अब यहीं से सियासत एक दूसरा रंग ले लेती है. जब हर जाति के लोग जाति की गिनती करवाने के लिए आ ही गए हैं, तो फिर केंद्र को इस में गुरेज क्या है? लेकिन सवाल यह है कि जाति की राजनीति सिर्फ जाति भर रह जाए. इसी धंधे में देश की सियासत फंस गई है.

मोदी से मिलकर निकलने के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि जाति जनगणना से न तो समाज में कोई विभेद पैदा होगा और ना ही किसी तरह की दिक्कत आएगी. हां, देश का भला जरूर होगा. जातियों के आधार पर गिनती हो जाएगी तो उनके लिए नीतियां बनानी आसान होंगी. तेजस्वी एक सुर में कहीं रहे हैं कि कुत्ते-बिल्ली की गिनती हो सकती है पेड़ की गिनती हो सकती है तो फिर जाति की गिनती क्यों नहीं हो सकती?

बिहार से एक बार फिर सियासत लिखने की कोशिश की गई है. इससे एक बात साफ है कि जाति के नाम पर सभी दल साथ हैं. यहां विकास की राजनीति के लिए इसलिए जगह नहीं है क्योंकि विकास के नाम पर बहुत सी सियासी पार्टियां बहुत कुछ होने नहीं देगीं. जो राजनैतिक दल चाहते हैं वह सिर्फ और सिर्फ जाति केआधार पर ही संभव है. अब बड़ा सवाल फिर से उठ खड़ा होता है कि आखिर नरेंद्र मोदी क्या करेंगे?

नरेंद्र मोदी से मिलकर बाहर निकले नेताओं ने एक सुर में कहा कि उनकी बात को नकारी नहीं गई है. बड़ा सवाल यही के माना भी नहीं है. अगर मानने की बात होती तो फिर लोकसभा से 'जातीय जनगणना नहीं होगी' नहीं कहा गया होता. 3 मार्च 2014 को नरेंद्र मोदी का वह बयान की 'जान दे दूंगा लेकिन जाति की राजनीति नहीं करूंगा' नरेंद्र मोदी के लिए पहली परेशानी है. जाति आधारित किसी राजनीति को अगर हवा दी जाती है तो 2022 में होने वाले पांच राज्यों के चुनाव भी बयानों के आधार पर ही विपक्ष बजाने में जुट जाएगा. क्योंकि 2015 में मोहन भागवत के आरक्षण की सियासत ने बीजेपी की पूरी राजनीतिक दिशा ही पलट दी थी.

ऐसे में 2022 के लिए होने वाले विधानसभा के चुनाव में जाति कोई बड़ा मुद्दा ना बन कर खड़ा हो जाए कि फिर मोदी को जवाब देना मुश्किल हो जाए. 3 मार्च 2014 को मन में आया तो बोल दिए कि 'जान दे दूंगा लेकिन जाति की राजनीति नहीं करूंगा', अब सियासत में दूसरे रंग की बात आई तो कह रहे हैं कि 'जाति की राजनीति करूंगा'. नरेंद्र मोदी के लिए सबसे बड़ी परेशानी यही है कि जाति की गिनती कैसे करवाएंगे? किस जाति की सियासत में जान देंगे? दोनों ही सिक्के के ऐसे दो पहलू हैं जिसे एक कर पाना मुश्किल ही नहीं इस सियासत में नामुमकिन जैसा दिख रहा है. राजनीति करने वाला हर चेहरा इस बात को जानता भी है. बहरहाल अब सियासत है तो सियासत होगी ही. ये बिहार है होना भी चाहिए. अब जवाब तो बिहार की जनता को ही देना है कि होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए. आप ही बताइए बिहार के लोगों-' होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए' ?

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