पटना: बिहार में जन प्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामलों में सुनवाई (Hearing in Criminal Cases Against Public Representatives) में तेजी लाने के लिए पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने राज्य के गृह सचिव से उन सभी आपराधिक मामलों के आंकड़ों को लेकर जानकारी मांगी है. ये सभी मामले फिलहाल राज्य के एमपी /एमएलए के खिलाफ चल रहे हैं. चीफ जस्टिस संजय करोल (Chief Justice Sanjay Karol) की खण्डपीठ इस मामले पर सुनवाई कर रही है. मामले की अगली सुनवाई 17 फरवरी को होगी.
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कोर्ट ने गृह सचिव को दो हफ्ते के अंदर उन सभी आपराधिक मामलों का पूरा ब्यौरा हलफनामे पर प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है. गृह सचिव को हलफनामे में राज्य के सभी प्राथमिकी एवं थाना का विवरण देना है, जो जन प्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज हुए हैं. उनमे लम्बित पड़े अनुसंधान की प्रगति, जिन मामले में आरोप पत्र दायर हो चुका है. साथ ही हाईकोर्ट ने उनकी अन्य कोर्ट में हो रही सुनवाई के स्थिति की जानकारी देने का निर्देश दिया है.
उल्लेखनीय है कि पटना हाई कोर्ट में यह मामला सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के आलोक में स्वतः दायर हुआ है, जो अश्वनी उपाध्याय बनाम केंद्र सरकार के जनहित मामले में 16 सितम्बर 2020 को पारित हुआ था. उस आदेश के जरिये सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी हाई कोर्ट प्रशासन को निर्देश जारी करते हुए कहा था कि कोरोना काल में भी एमपी/एमएलए कोर्ट में चल रहे आपराधिक मामलों के ट्रायल में कोई शिथिलता नहीं आनी चाहिए. जहां तक हो सके वर्चुअल सुनवाई के जरिये जन प्रतिनिधियों के खिलाफ चल रहे ट्रायल की रफ्तार बढ़नी चाहिए.
ऐसे में जिन आपराधिक मामलों पर हाई कोर्ट से रोक लगी हुई है, उन मामलों पर रोजाना सुनवाई करने के लिए खुद चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में एक खण्डपीठ गठित हो. चीफ जस्टिस की खण्डपीठ ने रजिस्ट्रार, लिस्ट और कम्प्यूटर को भी निर्देश दिया कि जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामलों या उनमे दायर अपील, रिवीजन और निचली अदालतों के मामले या प्राथमिकी को निरस्त करने के लिए दायर हुई क्रिमिनल मिसलेनियस याचिकाओं की सूची बनाकर उसे दो हफ्ते के भीतर चीफ जस्टिस की खण्डपीठ में लिस्ट करें.
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