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PMCH के वर्ल्ड क्लास होने का दावा फेल, अव्यवस्थाओं के चलते मरीज परेशान

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Published : Oct 5, 2021, 11:09 PM IST

पटना
PMCH

बिहार के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पीएमसीएच (PMCH) में चिकित्सीय सुविधाओं की लगातार कमी बढ़ते जा रही है. जिससे लोगों में पीएमसीएच को लेकर नाराजगी भी बढ़ गई है. अस्पताल में दवाइयों की अनुपलब्धता से मरीज परेशान हैं. पढ़ें रिपोर्ट...

पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वास्थ्य के क्षेत्र में जब प्रदेश की उपलब्धियां गिनाते हैं तो सबसे पहले यही कहते हैं कि पीएमसीएच (PMCH) को विश्वस्तरीय अस्पताल बनाया जा रहा है. लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि पीएमसीएच में चिकित्सीय सुविधाओं की लगातार कमी बढ़ते जा रही है. पीएमसीएच प्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है और इसे गरीबों का अस्पताल कहा जाता है. जब प्रदेश में लोग सभी जगहों से इलाज करा कर थक जाते हैं, तो पीएमसीएच इलाज कराने पहुंचते हैं.

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प्रदेश के सुदूर इलाके से गरीब मरीज बड़ी उम्मीदों से पीएमसीएच पहुंचते हैं, लेकिन चिकित्सीय सुविधाओं की कमी हाल के दिनों में जिस प्रकार से पीएमसीएच में बड़ी है, लोगों में पीएमसीएच को लेकर नाराजगी भी बढ़ गई है. आए दिन पीएमसीएच में चिकित्सीय सुविधाओं की कमी की खबरें मीडिया में सामने आ रही है, लेकिन सरकार की तरफ से इस पर कोई भी संज्ञान नहीं लिया जा रहा है.

देखें रिपोर्ट

पीएमसीएच के इमरजेंसी में 70% से अधिक दवाइयां कई दिनों से खत्म हो गई हैं. ऐसे में मरीजों के इलाज के लिए परिजनों को बाहर से दवाइयां खरीदनी पड़ रही हैं. अस्पताल की इमरजेंसी में मरीजों का कहना है कि उन्हें सिर्फ सलाइन वॉटर, इंट्रागेट और कुछ सिरींज उपलब्ध हो पा रही हैं. बाकी दवाइयां उन्हें बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं. डेंगू और एक्सट्रीम लूज मोशन जैसी बीमारी के लिए भी अस्पताल में कोई दवाई उपलब्ध नहीं है. ऐसे में मरीज के परिजन बाहर से दवाइयां खरीदकर अस्पताल को उपलब्ध करा रहे हैं. इसके लिए गरीब मरीजों को काफी अधिक खर्च वहन करना पड़ रहा है. दो से तीन दिन के इलाज में 4000 से 5000 रुपए तक खर्च हो जा रहे हैं.

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मिकासीन दवाई फेफड़ों, त्वचा, पेट और रक्त में होने वाले बैक्टीरियल इंफेक्शन के अलावा हड्डी, श्वास नली, सेप्टीसीमिया, एंडोकार्डिटिस जैसे रोगों में उपयोगी है. पिपरासिलिन दवाई न्यूमोनिया, चर्म रोग, स्त्री रोग और पेट के इंफेक्शन जैसी बीमारियों में उपयोगी है. मोरेपेनेम इंजेक्शन दवाई त्वचा और पेट की बीमारी में उपयोगी है और मेनिनजाइटिस बैक्टीरिया को मारकर संक्रमण खत्म करती है. आंडेम दवाई उल्टी रोकने में उपयोगी है, ये सभी दवाई पीएमसीएच में उपलब्ध नहीं है.

इसके अलावा गैस की राबेप्राजाल, रैनटैक और पैंओप्राजाल जैसा कोई भी इंजेक्शन पीएमसीएच में उपलब्ध नहीं है. अगर किसी मरीज का पल्स रेट और बीपी कम हो जाता है तो उसे अचानक बढ़ाने के लिए जो इंजेक्शन होता है वह अस्पताल में उपलब्ध नहीं है. शुगर को अचानक घटाने के लिए किसी प्रकार का कोई इंसुलिन भी उपलब्ध नहीं है.

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इतना ही नहीं पीएमसीएच के कई विभागों में विभिन्न प्रकार की बीमारियों की जांच बंद है जिसकी वजह जांच की कमी है. अस्पताल में एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी और हेपेटाइटिस-सी की जांच के लिए कई महीनों से किट उपलब्ध नहीं है. इस किट से 15 से 20 मिनट में जांच का रिजल्ट पता चल जाता है. पिछले कई दिनों से मलेरिया की जांच किट अस्पताल में खत्म है. पैखाना जांच की सुविधा अस्पताल में नहीं है. ऐसे में इस प्रकार की जांच के लिए मरीजों को बाहर के पैथोलॉजी से जांच कराना पड़ती है और इसके लिए उन्हें काफी खर्च उठाना पड़ता है, लेकिन पीएमसीएच में यह सभी जांच नि:शुल्क होते हैं.

पीएमसीएच के सर्जिकल इमरजेंसी की बात करें, तो इमरजेंसी बिल्डिंग का एक्स-रे रूम 17 दिनों से बंद पड़ा हुआ है और इसकी वजह इमरजेंसी वार्ड में एक्स-रे प्लेट खत्म होना है. ऐसे में इमरजेंसी के मरीजों को ट्रॉली पर इमरजेंसी वार्ड से 150 से 200 मीटर की दूरी पर स्थित अस्पताल के रेडियोलॉजी विभाग में ले जाकर एक्स-रे कराना पड़ता है. जिन मरीजों की स्थिति काफी गंभीर होती है, उन्हें एक्स-रे के लिए ट्रॉली पर ले जाने में काफी परेशानी भी होती है.

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पीएमसीएच के सर्जिकल इमरजेंसी वार्ड से टाटा इमरजेंसी वार्ड में शिफ्ट हो रहे मरीज मुन्ना कुमार के परिजन धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि उनके भाई को लूज मोशन की शिकायत बढ़ गई थी. बेहोशी की हालत हो जाने पर पीएमसीएच में 3 अक्टूबर को उन्हें रात में लेकर आए थे. यहां उन्हें इलाज के नाम पर सिर्फ सलाइन वॉटर ही उपलब्ध हो पा रहा है और डॉक्टरों द्वारा लिखी गई कोई भी दवाई अस्पताल में उपलब्ध नहीं है. ऐसे में दवाई उन्हें बाहर से खरीदनी पड़ रही है. उन्होंने बताया कि बीते 2 दिनों में उन्होंने 4000 से 5000 रुपए की दवाई खरीदी है. ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड अस्पताल में हो गए, लेकिन पैखाना की जांच उन्हें बाहर पैथोलॉजी से कराना पड़ रही है.

सर्जिकल इमरजेंसी में एडमिट 25 वर्षीय मुकेश कुमार के परिजन संजय कुमार ने बताया कि उनके भतीजे मुकेश को डेंगू हो गया और प्लेटलेट 40,000 के नीचे आ गया. स्थिति बिगड़ रही थी, ऐसे में पीएमसीएच में एडमिट करना पड़ा. जहां अस्पताल की तरफ से उन्हें सिर्फ सलाइन वॉटर मिल रहा है और दवाइयां उन्हें बाहर से खरीदनी पड़ रही है. दवाई खरीदने में वह 5000 से 6000 रुपए खर्च कर चुके हैं.

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उन्होंने बताया कि रविवार को पेशेंट की हालत काफी गंभीर थी और ब्लड चढ़ाना जरूरी था ऐसे में अस्पताल में ब्लड की व्यवस्था करने में काफी परेशानी हुई. बाहर से ब्लड की व्यवस्था करना पड़ी और इसके लिए 2 लोगों ने दो यूनिट खून डोनेट किया और दो यूनिट ब्लड चढ़ा. उन्होंने बताया कि डॉक्टर बाहर के हीमोग्लोबिन टेस्ट और ब्लड के लिए राजी नहीं थे, लेकिन मरीज की गंभीर स्थिति को देखते हुए उन्होंने मरीज को ब्लड चढ़ाया और अभी मरीज की स्थिति काफी बेहतर है.

उन्होंने कहा कि पीएमसीएच में चिकित्सकों के इलाज से वह पूरी तरह संतुष्ट हैं, उनके मरीज की स्थिति पहले से बहुत अधिक बेहतर हो गई है और अब वह ठीक हो रहा है लेकिन अस्पताल में दवाइयों की अनुपलब्धता से थोड़ी निराशा हुई है. अस्पताल प्रबंधन को दवाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए ध्यान देना चाहिए. गैस का इंजेक्शन पैंटोप्राजोल भी उन्हें बाहर से खरीदना पड़ा है.

पूरे मसले पर जब हमने अस्पताल प्रबंधन का पक्ष जानने का प्रयास किया तो अधीक्षक अपने कार्यालय से नदारद नजर आए. कॉल करने पर भी उनसे संपर्क नहीं हो पाया. अस्पताल के अन्य वरीय अधिकारी कोई भी जानकारी देने से इंकार कर गए और उनका कहना था कि मीडिया में अधिकृत रूप से सिर्फ अधीक्षक ही कुछ कह सकते हैं.

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