पटना : बिहार में सत्ताधारी दल जदयू (Janata Dal United) की नजर अभी से ही 2024 लोकसभा और 2025 विधानसभा चुनाव (2025 Assembly Elections) पर है और उसकी तैयारी भी पार्टी (Janata Dal United) ने शुरू कर दी है. ऐसे तो बिहार विधानसभा के चुनाव को अभी एक साल भी नहीं हुआ है, लेकिन पार्टी की रणनीति अगले विधानसभा और लोकसभा को लेकर तैयार होने लगी है.
जेडीयू ने खेला मास्टर कार्ड
जेडीयू की नई प्रदेश कमेटी में 33 फीसदी महिला प्रतिनिधियों को शामिल किया गया है. जिसके बाद कहा जा रहा है कि सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की नजर अभी से ही महिला वोटरों (Women Voters) पर है. पार्टी का आधार वोट बैंक लव-कुश समीकरण रहा है, एक तरफ उसे मजबूत करने की कवायद शुरू हो गई तो वहीं, दूसरी तरफ महिलाओं के लिए बड़ी घोषणा भी की जा रही है. ऐसे में देखा जाए तो एक तरह से नीतीश कुमार ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए मास्टर कार्ड खेल दिया है.
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पार्टी की मजबूती पर विशेष नजर
बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) में जदयू के खराब प्रदर्शन के बाद नीतीश कुमार ने कई स्तरों पर पार्टी को मजबूत करने का फैसला लिया है और उसी रणनीति के तहत काम भी शुरू है. पार्टी में बड़े स्तर पर फेरबदल भी किए गए हैं और सामाजिक समीकरणों पर भी पार्टी काम कर रही है. लव-कुश समीकरण पर ज्यादा जोर है और इसी के तहत उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) को पार्टी में शामिल भी कराया गया है. जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा (Umesh Kushwaha) का कहना है कि मिशन 2024 और 2025 की रणनीति पार्टी तैयार कर रही है.
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''महिलाओं ने हमेशा दिया साथ''
जदयू नेता और पूर्व मंत्री रंजू गीता (Former Minister Ranju Geeta) का कहना है कि महिलाओं ने हमेशा नीतीश कुमार का साथ दिया है, क्योंकि मुख्यमंत्री (Nitish Kumar) ने महिलाओं के लिए 2005 से ही लगातार काम किया है. 2020 में जदयू को सीट जरूर कम आयी, लेकिन महिलाओं ने 2020 में भी जदयू (Janata Dal United) का साथ नहीं छोड़ा है और आने वाले दिनों में महिलाओं के बूते पार्टी का प्रदर्शन अच्छा होगा. 2020 के चुनाव में रंजू गीता भी काफी कम वोट से चुनाव हार गईं थीं.
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''महिलाओं की वजह से मिली 43 सीटें''
सामाजिक सुरक्षा पर काम करने वाले विशेषज्ञ प्रमोद कुमार (Pramod kumar) का कहना है कि नीतीश कुमार ने महिलाओं के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं और उसका लाभ भी उनकी पार्टी को मिला है. 2020 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं की वजह से ही जेडीयू ने 43 सीटों पर जीत हासिल करने में सफलता पाई मिली थी.
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2010 और 2019 में बेहतर प्रदर्शन
2005 से 2020 तक के आंकड़ों से साफ है कि 2010 में जदयू (Janata Dal United) ने शानदार प्रदर्शन किया. 2010 में हुए चुनाव में जदयू के कुल 115 जीतने वाले उम्मीदवारों में 23 महिला प्रत्याशी ने भी जीत दर्ज की थी जो अब तक का रिकॉर्ड हैं. लेकिन 2020 में जब शराबबंदी जैसे बड़े फैसले लेने के बाद चुनाव हो रहे थे तो विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा . हालांकि उससे पहले 2019 में लोकसभा के चुनाव में जदयू के साथ एनडीए का जबरदस्त प्रदर्शन हुआ और 40 में से 39 सीट एनडीए के खाते में गई.
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2005 से 2020 तक महिलाओं का समर्थन
2019 लोकसभा चुनाव (2019 Lok Sabha Elections) में 57.58% कुल वोट पड़े थे, उसमें 54.68% पुरुष और 59 .58% महिला मतदाताओं ने वोट डाला. 2020 विधानसभा चुनाव की बात करें तो पहले चरण में महिलाओं ने कम मतदान किया, लेकिन दूसरे और तीसरे चरण में महिलाओं का वोट प्रतिशत बढ़ा. एनडीए की सीटें भी दूसरे और तीसरे चरण में अधिक रहीं.
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भारत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office) की ताजा रिपोर्ट में बिहार की साक्षरता दर 70.9 फ़ीसदी है, जो राष्ट्रीय औसत 77.7 % से 6.8 फ़ीसदी कम है और सबसे कम शिक्षा के मामले में बिहार देश में तीसरे स्थान पर है. महिलाओं की साक्षरता दर में लगातार सुधार हो रहा है और यह सब एक के बाद एक लिए गए बड़े फैसलों को बताया जा रहा है. हालांकि अभी भी बिहार विकसित राज्यों से काफी पीछे है.
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क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
विशेषज्ञ भी मानते हैं कि महिलाओं में जागृति जरूरी है, लेकिन उनके लिए और बेहतर स्थिति पैदा करनी होगी. खासकर ग्रामीण इलाकों में स्थिति और सुधारना होगा. उच्च शिक्षा में महिलाएं अधिक पहुंचे, इसके लिए विशेष प्रयास करना होगा. मुख्यमंत्री ने एक तिहाई सीट मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में रिजर्व करने का फैसला लिया है. यह एक बड़ा कदम हो सकता है.
2020 विधानसभा चुनाव में जदयू के खराब प्रदर्शन की वजह
- शराबबंदी के बाद पहली बार हुए विधानसभा चुनाव के पहले चरण में जदयू की उम्मीद से कम महिलाओं ने वोटिंग की
- दूसरे और तीसरे चरण में महिलाओं की वोटिंग अधिक हुई, जदयू को लाभ जरूर मिला, लेकिन बीजेपी को ज्यादा फायदा हुआ
- महागठबंधन उम्मीदवारों के साथ-साथ लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा के गठबंधन का भी जेडीयू को सामना करना पड़ा
- तेजस्वी यादव के बेरोजगारी का मुद्दा भी नीतीश कुमार के लिए मुश्किलें पैदा की
- तीन तलाक, सीएए और राम मंदिर जैसे मुद्दों पर खुलकर विरोध नहीं जताने के कारण भी जदयू को अल्पसंख्यकों का वोट नहीं मिला
जदयू की सक्रियता अन्य दलों से अधिक
विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी में बड़े स्तर पर फेरबदल हुआ. राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेवारी आरसीपी सिंह (RCP Singh) दी गई, जो पहले से संगठन का काम देख रहे थे. आरसीपी सिंह कुर्मी समाज से आते हैं. प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेवारी कोइरी (कुशवाहा) समाज से आने वाले उमेश कुशवाहा (Umesh Kushwaha) को दी गई है. वहीं, लव-कुश समीकरण को मजबूत करने के लिए कभी विरोध में मोर्चा खोलने वाले उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) को भी नीतीश ने पार्टी में शामिल कराकार संसदीय दल का अध्यक्ष बना दिया है. लव-कुश समीकरण साधने के पीछे कारण यही है कि 2020 विधानसभा चुनाव में जदयू को एकमुश्त कुशवाहा समाज का वोट नहीं मिला था. इसलिए नीतीश कुमार हर कमजोर कड़ी को मजबूत करने में लगे हैं. कोरोना काल में जदयू की सक्रियता अन्य दलों से अधिक दिख रही है.