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Mission 2024: महागठबंधन से मुकाबले के लिए छोटे दलों से गठबंधन जरूरी, लेकिन महत्वाकांक्षा और बढ़ती डिमांड से कैसे निपटेगी BJP?

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Published : Jul 17, 2023, 7:20 PM IST

Updated : Jul 17, 2023, 7:35 PM IST

लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर एक तरफ जहां विपक्षी दल बीजेपी के खिलाफ एकजुटता की मुहिम चला रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी भी छोटे दलों को साथ लेने की कोशिश में लगी है. बिहार में महागठबंधन में 6 दल शामिल हैं वहीं बीजेपी भी अब दलों को अपने साथ जोड़ने में जुट गई है लेकिन जिन दलों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है, उनका ट्रैक रिकॉर्ड ऐसा है कि वह सीट बंटवारे के दौरान कहीं सिर दर्द न बन जाए.

बिहार में बीजेपी का गठबंधन
बिहार में बीजेपी का गठबंधन

देखें रिपोर्ट

पटना: पिछले साल जब बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी थी, तब उस समय बीजेपी के साथ केवल पशुपति पारस की आरएलजेपी ही गठबंधन में बची थी, विधानसभा में तो बीजेपी पूरी तरह से अलग-थलग पड़ गई थी. चिराग पासवान जरूर बीजेपी के साथ दिखते रहे हैं लेकिन उनके साथ गठबंधन नहीं हो पाया. अब लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बीजेपी चिराग पासवान, जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा, नागमणि और मुकेश सहनी को अपने साथ जोड़ने का मन बना चुकी है. मुकेश सहनी को छोड़कर सभी एनडीए के साथ भी हो गए हैं. हालांकि इन नेताओं का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो चुनाव के समय डिमांड के अनुरूप सीट नहीं मिलने पर गठबंधन को छोड़ते रहे हैं.

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पाला बदलने में माहिर हैं मांझी: सबसे पहले बात जीतनराम मांझी की. हम के संरक्षक मांझी अपने राजनीतिक जीवन में कई बार पार्टियां बदल चुके हैं. उन्होंने कांग्रेस, जनता दल, आरजेडी और जेडीयू सबके साथ किया है. मांझी 9 महीने तक बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे हैं और कई मुख्यमंत्रियों के साथ मंत्री के रूप में काम कर चुके हैं. महागठबंधन के साथ भी रहे और एनडीए के साथ भी काम किया है. 2015 में इन्होंने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा का गठन किया था. पिछले महीने महागठबंधन से अलग होने के बाद एक बार फिर से बीजेपी के साथ आ गए हैं.

क्या है मांझी की ताकत?: मांझी मुसहर समाज से आते हैं. मुसहर समाज के 3 से 4% वोट पर अपनी दावेदारी कर रहे हैं. मगध क्षेत्र में इनकी विशेष रूप से पकड़ है. इनकी खासियत रही है कि सत्ता के साथ ही रहे हैं. इनके बेटे संतोष सुमन फिलहाल एमएलसी हैं और लोकसभा चुनाव 2024 में इनकी भी नजर लोकसभा की कुछ सीटों पर है. बेटे संतोष सुमन को चुनाव लड़ाना चाहते हैं. खुद राज्यपाल भी बनना चाहते हैं. शर्त पूरा नहीं होने पर मांझी पार्टी और गठबंधन छोड़ते रहे हैं, ऐसे में उनको संभालकर रखना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है.

महत्वाकांक्षी नेता माने जाते हैं उपेंद्र कुशवाहा: आरएलजेडी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा बिहार के महत्वाकांक्षी नेताओं में से एक हैं. लंबे समय तक नीतीश कुमार के साथ रहे हैं. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी नीतीश कुमार ने ही इन्हें बनाया. केंद्र में मंत्री भी बने हैं तीन बार पार्टी बना चुके हैं. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन में थे. 3 सीटों पर जीत भी मिली थी. उसी दौरान केंद्र में राज्यमंत्री भी बनाये गए लेकिन 2019 में महागठबंधन के साथ चुनाव लड़े, तब कोई सफलता नहीं मिली. महागठबंधन से अलग होकर 2020 में विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन खाता भी नहीं खुला. फिर नीतीश के साथ गए और इसी साल जेडीयू से अलग होकर अपनी नई पार्टी बनायी है.

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कुशवाहा वोट बैंक पर मजबूत पकड़: उपेंद्र कुशवाहा के बारे में कहा जाता है कि कुशवाहा समाज पर उनकी मजबूत पकड़ है. बिहार में 6% के करीब कुशवाहा वोट बैंक है और उसके बड़े नेताओं में से एक माने जाते हैं. उपेंद्र कुशवाहा इस बार भी लोकसभा की तीन सीटों की मांग कर रहे हैं. इनका भी ट्रैक रिकॉर्ड ऐसा रहा है, जिसमें मांग पूरी नहीं होने पर गठबंधन छोड़ते रहे हैं. इसलिए बीजेपी के लिए वह भी बड़ी चुनौती हैं.

मुकेश सहनी भी एक जगह नहीं टिकते: मुकेश सहनी सन ऑफ मल्लाह के नाम से बिहार में जाने जाते हैं. कभी महागठबंधन के साथ तो कभी बीजेपी के साथ इनका नाता रहा है. 2024 चुनाव में इनके बीजेपी के साथ जाने की चर्चा है. मुकेश साहनी जिस समाज से आते हैं, उसका 4-5% वोट है. सहनी मल्लाह समाज के बड़े नेता बनकर उभरे हैं लेकिन वह भी अपने शर्तों के कारण कहीं टिक नहीं पाए हैं. 2020 में महागठबंधन की तरफ से तेजस्वी यादव जब सीट बंटवारे की घोषणा कर रहे थे, तब वह बीच प्रेस कॉन्फ्रेंस से बाहर निकल गए थे और पीठ में छुरा घोंपने का आरोप लगाया था.

हर दल में रह चुके हैं नागमणि!: पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि लंबे समय तक नीतीश कुमार के साथ रहे हैं. अपनी महत्वाकांक्षा के कारण वह दल बदलते रहे हैं. आरजेडी के साथ भी रहे तो उपेंद्र कुशवाहा के साथ भी काम किया है. अब फिर से अमित शाह से मुलाकात कर एनडीए में शामिल होने की बात कही है. नागमणि भी लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं. वह कुशवाहा जाति से आते हैं, उनका दावा है कि आज भी वह इस समाज के सबसे बड़े नेता हैं.

मोदी के स्वघोषित 'हनुमान' हैं चिराग पासवान: पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान की बात करें तो चिराग हमेशा बीजेपी के साथ दिखते रहे हैं, लेकिन इन दिनों एलजेपी दो भागों में बंट चुकी है. आरएलजेपी का नेतृत्व चाचा पशुपति पारस करते हैं तो एलजेपीआर की अगुवाई चिराग करते हैं. 2014 में एनडीए के साथ रामविलास पासवान की पार्टी ने चुनाव लड़ा था. 7 में से 6 सीटों पर जीत मिली थी. 2019 में भी 6 सीटों पर एलजेपी ने चुनाव लड़ा और सभी सीटों पर जीत हासिल हुई थी लेकिन रामविलास पासवान के निधन के बाद पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच मतभेद हो गया.

लोकसभा चुनाव में 6 सीट चाहते हैं चिराग: एलजेपी भले ही दो फाड़ में बंट गई हो लेकिन चिराग अभी भी पिछले चुनाव की तर्ज पर 6 सीट चाहते हैं. दूसरी तरफ पशुपति पारस पहले से एनडीए में हैं और उनकी पार्टी के साथ 5 सांसद हैं. वह बीजेपी से पांचों सीट चाहते हैं. चिराग पासवान और पशुपति पारस हाजीपुर सीट को लेकर भी अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं. ऐसे में चिराग पासवान और पशुपति पारस दोनों की पार्टी कैसे बीजेपी के साथ 2024 का चुनाव लड़ेगी, यह देखना बेहद दिलचस्प होगा.

5-6 प्रतिशत पासवान वोट किसके साथ?: चिराग पासवान और पशुपति पारस दोनों पासवान वोट पर अपनी दावेदारी करते हैं. बिहार में 5% से अधिक पासवान वोट बैंक है. चिराग पासवान दलितों के बड़े नेता के रूप में उभरे हैं. इसलिए बीजेपी चाहती है चिराग उनके साथ गठबंधन में रहें लेकिन 2020 में विधानसभा चुनाव में चिराग जितनी सीट चाहते थे, नहीं मिली थी. जिस वजह से गठबंधन नहीं हो पाया लेकिन उसके बावजूद बीजेपी के खिलाफ चिराग पासवान ने उम्मीदवार नहीं दिया था. चिराग खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते रहे हैं.

महागठबंधन के सामने सामाजिक समीकरण जरूरी: बीजेपी इन सब को अपने साथ 2024 में महागठबंधन से मुकाबला के लिए लाना चाहती है, क्योंकि इनके पास दलित, पिछड़ा और अति पिछड़ा का वोट बैंक है. यह वोट बैंक जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है लेकिन इनका ट्रैक रिकॉर्ड यही रहा है कि हर एक चुनाव के बाद या तो दूसरे गठबंधन में रहे हैं या फिर अकेले चुनाव लड़े हैं.

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक?: राजनीतिक विशेषज्ञ प्रियरंजन भारती का कहना है कि छोटे दलों के महत्वाकांक्षी नेता हैं. जब इनको लगता है कि इनकी महत्वाकांक्षा उस दल या गठबंधन में पूरी नहीं होगी तो यह दल भी छोड़ते हैं और गठबंधन भी. गठबंधन के इस दौर में बड़े दलों की मजबूरी है कि इन दलों को अपने साथ रखें, क्योंकि उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी, मुकेश सहनी या फिर चिराग पासवान सबका अपना वोट बैंक है. अपनी जाति में विशेष प्रभाव है.

"भले ही अपने बूते कोई भी सीट जीत नहीं सकते हैं लेकिन गठबंधन में रहकर जीत जरूर दिला सकते हैं. इसलिए बड़े दल ना चाहते हुए भी उनके साथ गठबंधन करने के लिए मजबूर है. बिहार में महागठबंधन में छह दल हैं. बीजेपी उनसे मुकाबला के लिए इनको अपने साथ लाना चाहती है लेकिन इनकी शर्तों को कैसे पूरा करेगी, यह देखने वाली बात होगी. अभी से ही इनकी डिमांड शुरू हो चुकी है. नीतीश कुमार के जाने के बाद उनकी क्षतिपूर्ति भी करनी है. ऐसे में इनको लाने से बीजेपी को लाभ जरूर होगा. कितना लाभ होगा, यह तो चुनाव के समय पता चलेगा"- प्रियरंजन भारती, राजनीतिक विशेषज्ञ

बीजेपी का दावा- सीट बंटवारा चुनौती नहीं: हालांकि बीजेपी विधायक अरुण कुमार का कहना है कि सीट बंटवारे में कहीं कोई दिक्कत नहीं होगी. दिक्कत नीतीश कुमार को होगी, जो फ्यूज बल्व लेकर घूम रहे हैं. अरुण कुमार का यह भी कहना है कि बीजेपी के लिए इसलिए मुश्किल नहीं होगी, क्योंकि जेडीयू को जितनी सीट बीजेपी देती रही है, उसके आधे में ही हम अपने सहयोगियों को खुश कर लेंगे.

"एनडीए में सीट बंटवारा कोई चुनौती नहीं है. हमलोग मिल-बैठकर आपस में सीटों का समझौता कर लेंगे. अब तक चुनावों में जितनी सीटें नीतीश कुमार को देते थे, उससे आधे में ही सभी सहयोगी को खुश कर लेंगे"- अरुण कुमार, विधायक बीजेपी

जेडीयू का बीजेपी पर कटाक्ष: हालांकि जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है कि ऐसे दल और नेता बीजेपी को ही मुबारक हो, जिनके विधानसभा में एक भी सदस्य नहीं हैं. विधान परिषद में भी एक भी सदस्य नहीं है. उसके बाद भी इन्हें राजनीति का तोप बता रहे हैं तो ऐसे तोप बीजेपी ही रखें. यह लोग राजनीति छुड़छूड़ी हैं. 2015 में नीतीश कुमार इन सब को हरा चुके हैं.

हम अध्यक्ष ने क्या कहा?: उधर, हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष सुमन का कहना है कि सीट बंटवारे के समय बीजेपी के साथ कोई परेशानी नहीं होगी. अभी तो 18 जुलाई को बैठक हो जाने दीजिए, सब कुछ मिल बैठकर तय कर लिया जाएगा. इसी तरह की बात भी उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के नेता भी कर रहे हैं.

Last Updated : Jul 17, 2023, 7:35 PM IST
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