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वोल्शेविक क्रांति से 30 साल में बदल गया रूस लेकिन जेपी आंदोलन के 47 साल बाद भी बिहार वैसा ही

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Published : Jun 26, 2022, 11:08 PM IST

बिहार सामाजिक राजनीतिक और धार्मिक आंदोलनों की धरती रही है फिर भी कहीं बदलाव नहीं नजर आए. वोल्शेविक क्रांति के 30 साल के भीतर ही रूस का कायाकल्प हो गया. लेकिन जेपी आंदोलन के 47 साल बाद भी बिहार के हालात नहीं बदले. मुद्दे आज भी जस के तस हैं. संघर्षों का भी हाल वही है.

वोल्शेविक क्रांति से 30 साल
वोल्शेविक क्रांति से 30 साल

पटना: बिहार सामाजिक राजनीतिक और धार्मिक आंदोलनों की धरती रही है. संपूर्ण क्रांति के नायक जयप्रकाश नारायण ने भी बिहार की धरती से आंदोलन का बिगुल फूंका था. धीरे-धीरे आंदोलन राष्ट्रव्यापी हो गया और इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू (emergency in India 1975) कर दी.


25 जून 1975 को लगा था देश में आपातकाल: लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Lok Nayak Jayaprakash Narayan) ने 1952 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था और वह समाज सेवा में लगे थे बिनोवा भावे के साथ भूदान आंदोलन में वह कदम से कदम मिलाकर चल रहे थे. लेकिन छात्रों के आह्वान पर 1974 में जेपी ने आंदोलन की कमान संभाली गुजरात से निकली आंदोलन की चिंगारी बिहार में पहुंचते-पहुंचते धधक गई. आंदोलन ने राष्ट्रव्यापी रूप अख्तियार कर लिया. दरअसल जेपी भूदान आंदोलन और सर्वोदय आंदोलन की सीमित सफलता से आहत थे. वह धन बल और चुनाव के संघर्ष को कम करना चाहते थे. जेपी का सपना एक ऐसा समाज बनाने का था जिसमें जाति का भेदभाव ना हो और नर-नारी के बीच समानता हो.


पहले गुजरात और फिर उसके बाद बिहार के गया के विद्यार्थियों ने जेपी से आंदोलन का नेतृत्व संभालने का आग्रह किया. तो जेपी ने उनके सामने कुछ शर्ते रखी और कहा कि आंदोलन बिल्कुल अहिंसक होना चाहिए. वैसे तो जेपी का आंदोलन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर शुरू हुआ था, लेकिन बाद में बहुत कुछ जोड़ा गया. संपूर्ण क्रांति के रूप में परिवर्तित हो गया जेपी आंदोलन व्यवस्था परिवर्तन की ओर मुड़ गया.


जयप्रकाश नारायण का आंदोलन सामाजिक न्याय नर नारी की समानता जाति व्यवस्था तोड़ने प्रशासनिक तरीका बदलने और राइट टू रिकॉल को लेकर था. जेपी जाति व्यवस्था तोड़ने के लिए अंतरजातीय विवाह पर भी जोड़ देते थे. इंदिरा गांधी से लगातार संवाद के बाद भी स्थितियों में सुधार नहीं आया और अंततः 5 जून 1974 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में औपचारिक रूप से संपूर्ण क्रांति का ऐलान कर दिया. क्रांति का मतलब परिवर्तन और नवनिर्माण दोनों था.


आंदोलन को मुकाम तक पहुंचाने के लिए जेपी ने जनता से समानांतर सरकार बनाने का आव्हान भी किया था. सुबह की पहली जनता सरकार सिवान जिले के पचरुखी प्रखंड में बनी थी. बाद में नवादा बिहार शरीफ व जमुई में भी सरकारें बनाई गई. समानांतर जनता सरकार के पास कोई प्रशासनिक अधिकार तो नहीं होते थे, लेकिन वह जनता के माध्यम से सरकार पर दबाव बनाने का काम करती थी. सिवान जिले के छात्र संघर्ष समिति के संयोजक जनक देव तिवारी ने प्रस्ताव दिया था कि ऐसी पहली सरकार पचरुखी में बनाई जाए.

जाति और जनेऊ तोड़ने वाले जातीय जनगणना करा रहे हैं: जेपी का मानना था कि भारत में सच्चे लोकतंत्र की जगह दलित तंत्र स्थापित हो गई है. जेपी दलविहीन लोकतंत्र चाहते थे. बिहार में जेपी आंदोलन से जुड़ने वालों में लालू प्रसाद यादव नीतीश कुमार और सुशील मोदी का नाम शामिल था. जेपी आंदोलन के दौरान यह लोग जिलों में भी बंद रहे. बाद में इन नेताओं को सत्ता भी मिली. पिछले 30 साल से सत्ता लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के हाथों में है. दोनों को लंबे समय तक मुख्यमंत्री बनने का अवसर भी मिला. बिहार की बागडोर 30 साल से अधिक समय तक जेपी के शिष्यों के हाथ में रहे. लेकिन बिहार की तकदीर और तस्वीर नहीं बदली. भ्रष्टाचार नासूर बन चुकी है. तो उच्च शिक्षा दम तोड़ रही है. जाति और जनेऊ तोड़ने की कसमें खाने वाले नेता आज की तारीख में जातिगत जनगणना करा रहे हैं.




रोजगार को लेकर संवेदनशील थे जेपी: राजनीतिक विश्लेषक और चिंतक डॉ संजय कुमार का मानना है कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनने का लंबे समय तक अवसर मिला. इनसे बिहार की जनता को काफी उम्मीदें थीं. लेकिन 47 साल बीत जाने के बाद भी बिहार में कमोबेश आज वही स्थिति है, जो जेपी आंदोलन के समय में थी. जेपी आंदोलन के गवाह रहे डॉक्टर प्रेम कुमार मणि भी हालात को लेकर चिंतित दिखते हैं. प्रेम कुमार मणि कहते हैं कि जेपी के शिष्यों ने ही उनके सिद्धांतों और सपनों को भुला दिया. परिवारवाद और भ्रष्टाचार को लेकर जीपी मुखर थे लेकिन भ्रष्टाचार के आरोप में जहां लालू प्रसाद यादव जेल में बंद हैं, वहीं नीतीश कुमार सरीखे नेता जेपी के सपनों को सच करने की दिशा में आगे नहीं बढ़ सके.

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