विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर बोले ललन सिंह-'जब तक पिछड़े राज्य विकसित नहीं तब तक राष्ट्र समृद्ध नहीं'

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Published : Feb 3, 2022, 6:45 PM IST

Updated : Feb 3, 2022, 6:50 PM IST

जदयू सांसद ललन सिंह ने लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण को समर्थन देते हुए बिहार के विशेष राज्य के दर्दे की मांग की. उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की कि बिहार को स्पेशल केटेगरी में शामिल किया जाए. उन्होंने नीति आयोग और रघुराम राजन समिति की रिपोर्ट का हवाला देकर अपनी बात को सदन में मजबूती से रखा.

पटना/नई दिल्ली: राष्ट्रपति के अभिभाषण (Lalan Singh on Presidential Address ) पर बोलते हुए जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और लोकसभा सांसद ललन सिंह ने विशेष राज्य (Special Status of Bihar ) के मुद्दे को सदन में उठाया. उन्होंने कहा कि भारत को जब तक समृद्ध राष्ट्र नहीं बना पाएंगे जब तक पिछड़े राज्यों को विकसित नहीं किया जाएगा. ललन सिंह ने रघुराम राजन कमेटी (Raghuram Rajan Committee Report) और नीति आयोग की रिपोर्ट का हवाला देकर बिहार को स्पेशल राज्य का दर्जा देने की मांग की. ललन सिंह ने कहा कि राज्य बंटवारे के बाद बिहार में कुछ नहीं बचा. सिर्फ लालू, आलू और बालू ही बच गए. लेकिन उनकी सरकार ने अपने प्रयासों से प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाया. आर्थिक सर्वेक्षण 2022 के मुताबिक बिहार का सालाना प्रतिव्यक्ति आय में 1221 रुपए को बढ़ोतरी हुई है.

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ललन सिंह ने जोर देते हुए कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण में विकसित राष्ट्र का जो तथ्य डाला गया है, वो तभी संभव होगा जब सभी राज्य एक साथ मिलकर बराबर प्रयास करेंगे. उन्होंने राज्यों को शरीर का अंग बताकर उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह शरीर का कोई अंग खराब हो तो शरीर स्वस्थ्य नहीं रह सकता ठीक वैसे ही राज्य अगर पिछड़े हों तो देश का विकास संभव नहीं है. उन्होंने सदन के पटल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की कि बिहार को स्पेशल राज्य का दर्जा दें. ताकि महामहिम राष्ट्रपति के संकल्पों को पूरा किया जा सके.

दशकों पुरानी विशेष राज्य के दर्जे की मांग: बता दें कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग एक दशक से भी ज्यादा पुरानी है. समय और परिस्थिति के मुताबिक ये मुद्दा बिहार की राजनीति में सुर्खियां बटोरता रहा है. इस दौरान कई मौके ऐसे आए हैं, जब केंद्र सरकार की ओर से विशेष राज्य के दर्जे के सवाल को खारिज कर दिया गया है. अब आइये आपको बतातें कि आखिर क्यों बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए.

क्यों नहीं मिला विशेष राज्य का दर्जा: 14वें वित्त आयोग की सिफारिश की वजह से अब नॉर्थ ईस्ट और पहाड़ी राज्यों को 14वें वित्त आयोग की सिफारिश की वजह से अब नॉर्थ ईस्ट और पहाड़ी राज्यों को छोड़कर किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग काफी पहले से हो रही थी. इसके अलावा आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान और गोवा की सरकारें भी विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग करने लगीं.

इन राज्यों को मिला है विशेष राज्य का दर्जा: आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिए जाने के कारण एनडीए के महत्वपूर्ण सहयोगी चंद्रबाबू नायडू नाराज होकर अलग तक हो गए थे. अभी जिन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है उसमें असम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं. इनमें से कई राज्यों की स्थिति विशेष राज्य का दर्जा मिलने के बाद बेहतर हुई है. उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर निवेश हुआ.

विशेष राज्य का दर्जा भौगोलिक और सामाजिक स्थिति व आर्थिक संसाधनों के हिसाब से दिया जाता रहा है. नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल ने पहाड़, दुर्गम क्षेत्र, कम जनसंख्या, आदिवासी इलाका, अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर, प्रति व्यक्ति आय और कम राजस्व का आधार बनाया था. पांचवें वित्त आयोग ने सबसे पहले 3 राज्यों को 1969 में विशेष राज्य का दर्जा दिया था, जिसमें जम्मू-कश्मीर भी शामिल था. अभी देश के 28 राज्यों में से 10 को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है.

इन शर्तों पर मिलता है विशेष राज्य का दर्जा: ऐसे राज्य जिनकी प्रति व्यक्ति आय कम हो और बुनियादी ढांचे में पिछड़े हों और आर्थिक तंगी से जूझ रहे हों उन्हें स्पेशल केटेगरी दी जा ती है. यही नहीं ऐसे राज्य जो अंतर्राष्ट्रीय सीमा से जुड़े हों. ऐसे राज्य जहां पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र हों, जनसंख्या घनत्व कम हो या फिर वहां की जनजाति आबादी की संख्या ज्यादा हो वो भी स्पेशल केटेगरी मिलने की पात्रता रखते हैं.

इस वजह से नहीं मिल सकता विशेष राज्य का दर्जा: अब बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग से जुड़ा सबसे अहम तथ्य यही है कि बिहार इनमें से कोई भी शर्त पूरी नहीं करता है. बिहार का कोई हिस्सा किसी अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटा हुआ नहीं है, और राज्य का कोई भी हिस्सा दुर्गम इलाका भी नहीं कहा जा सकता. इसके अलावा जनजातीय आबादी वाला झारखंड पहले ही अलग राज्य बन चुका है, सो, अब बिहार की आबादी में जनजातीय जनसंख्या की बहुलता भी नहीं है. राज्य में पर्याप्त आधारभूत ढांचा भी है, और बिहार के वासियों की प्रति व्यक्ति आय और राज्य का गैर-कर राजस्व भी कम नहीं है, सो उसे यह दर्जा दिए जाने की राह में अड़चनें ही अड़चनें हैं.

राज्यों को मिलती है ये सुविधा: विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को केंद्र से जो फंड मिलता है उसमें 90 फीसदी अनुदान और सिर्फ 10 फीसदी कर्ज होता है. इस पर ब्याज नहीं लगता है. दूसरी तरफ सामान्य राज्य को मिले फंड का 70 फीसदी अनुदान होता है और 30 फीसदी कर्ज, जिस पर ब्याज लगता है.

बिहार को क्यों मिले विशेष राज्य का दर्जा:बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले इसके लिए विशेषज्ञों का तर्क रहा है कि बिहार से सबसे अधिक पलायन होता है. गरीबी सबसे ज्यादा है. बेरोजगारी भी सबसे अधिक है. बिहार आपदा ग्रस्त राज्य है. 38 जिले में से 15 जिले बाढ़ ग्रस्त इलाके में आते हैं. हर साल बाढ़ से करोड़ों की संपत्ति, जान-माल और आधारभूत संरचना के साथ फसलों को भी नुकसान होता है.

नीतीश कुमार का भी यह तर्क रहा है कि दूसरे विकसित राज्यों की श्रेणी में आने के लिए बिहार को बिना विशेष राज्य का दर्जा मिले तेजी से विकास संभव नहीं है. बिहार में सड़क, बिजली और कानून-व्यवस्था को लेकर काफी सुधार हुआ है. डबल डिजिट में लगातार ग्रोथ रहने के बावजूद निवेश नहीं हुआ है. झारखंड के अलग होने के बाद बिहार से खनिज संपदा चला गया. उद्योग धंधे भी झारखंड में ही रह गए.

क्या है रघुराम राजन समिति की रिपोर्ट: रघुराम राजन समिति की रिपोर्ट को नीतीश कुमार ने बड़ी जीत बताया था. यह वह समय था जब नीतीश बीजेपी से अलग हो गए थे. रिपोर्ट में रघुराम राजन कमेटी ने विशेष राज्य के दर्जे की जगह विशेष मदद की बात कही थी और इसके लिए राज्यों की तीन श्रेणी बनाई गई थी. बिहार को सबसे कम विकसित राज्य की श्रेणी में रखा गया था. तब रघुराम राजन मुख्य आर्थिक सलाहकार थे बाद में आरबीआई के गवर्नर भी बने.

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Last Updated :Feb 3, 2022, 6:50 PM IST
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