Politics of Karpoori Thakur: बिहार की राजनीति में जननायक कर्पूरी ठाकुर जरूरी, विरासत लूटने की पार्टियों के बीच होड़
Updated on: Jan 24, 2023, 5:54 PM IST

Politics of Karpoori Thakur: बिहार की राजनीति में जननायक कर्पूरी ठाकुर जरूरी, विरासत लूटने की पार्टियों के बीच होड़
Updated on: Jan 24, 2023, 5:54 PM IST
बिहार में कर्पूरी ठाकुर को लेकर सियासत तेज है. सभी दलों को लग रहा है कि कर्पूरी ठाकुर के जरिए ही एक विशेष वोट बैंक में सेंधमारी की जा सकती है. इसी खास वोट बैंक के लिये बिहार में गठबंधन होता रहा है. 1990 से 2020 तक एक भी सरकार बिना गठबंधन के नहीं बन पायी है. जानें बिहार की राजनीति के लिए कर्पूरी ठाकुर की अहमियत.
पटना: 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 में विधानसभा चुनाव से पहले कर्पूरी ठाकुर के नाम की लूट मची है. सभी दलों का मानना है कि ईमानदार और साफ सुथरी छवि वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की जयंती और पुण्यतिथि के मौके पर एक खास वोट बैंक का भरोसा जीतना आसान होता है. यही कारण है कि 24 जनवरी की अहमियत राजनीतिक रूप से पिछले कुछ सालों में सभी दलों के लिए तेजी से बढ़ी है. इस दिन कर्पूरी ठाकुर की जयंती के बहाने राजनीतिक दल उनकी विरासत पर अपना अपना दावा जताने का काम करती है. इसी प्रयास के तहत सभी दल अपना वोट बैंक बढ़ाने और अपने दम पर बिहार में सरकार बनाने की जुगत में जुटे हुए हैं.
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आखिर ऐसा क्यों चाहते हैं बिहार के सभी दल?: बिहार की राजनीति में अति पिछड़ा वोट बैंक ही मील का पत्थर साबित होता रहा है. जिसके साथ अति पिछड़ा वोट बैंक होता है, सरकार उसी की बनती है. बिहार के तमाम प्रमुख दलों की यदि बात करें तो आरजेडी के साथ मुस्लिम यादव शुरू से साथ हैं. बीजेपी के अगड़ी जातियां और वैश्य समाज के लोग कोर वोटर माने जाते हैं. जेडीयू की यदि बात करें उसके साथ लव कुश यानी कोईरी कुर्मी और कुछ अन्य जातियों का वोट बैंक है.
बोले सीएम नीतीश- 'कर्पूरी ठाकुर की विचारधारा को बढ़ा रहे हैं आगे': जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती सभी पार्टियां अपने तरह से मनाती दिखी. पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कर्पूरी ठाकुर के प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी. इस मौके पर सीएम ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर जब बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, तो उस समय वो शोषित, पीड़ित और दलितों को आगे बढ़ाने का काम किया था. जिस तरह से उन्होंने अपने समय में बेरोजगारों को नौकरी दी थी. जिस तरह से उन्होंने बिहार का विकास किया, उससे बिहार काफी आगे बढ़ा था. हमलोग उनकी विचारधारा को आगे लेकर चल रहे हैं.
"कर्पूरी ठाकुर जब बिहार के मुख्यमंत्री बने, उस समय उन्होंने शोषित, पीड़ित और दलितों को आगे बढ़ाने का काम किया था. जिस तरह से उन्होंने अपने समय में बेरोजगारों को नौकरी दी थी, उन्होंने बिहार का विकास किया. उससे बिहार काफी आगे बढ़ा था. हमलोग उनकी विचारधारा को आगे लेकर चल रहे हैं. समाज के अंतिम पंक्ति के लोगों तक विकास पहुंचाया जाएगा."- नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार
अति पिछड़ा वोट बैंक है सीएम नीतीश के साथ: हालांकि वर्तमान हालात में अतिपिछड़ी जातियां नीतीश कुमार के साथ होने की वजह से ऐसा माना जाता है कि अति पिछड़ा वोट बैंक नीतीश के साथ है. अन्य पार्टियों की यदि बात करें तो कांग्रेस, हम, लोजपा और लेफ्ट जैसी पार्टियों के पास उनके कैडर वोट बैंक जो कल थे, वो आज भी हैं. कांग्रेस का वोट बैंक जरूर कम हुआ लेकिन अन्य छोटे दलों का कैडर वोट बैंक अभी भी बरकार है. वर्तमान हालात में कोई भी पार्टी अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है.
आरजेडी अकेले नहीं बना सकी सरकार: अब हम बात कर लेते हैं बिहार के प्रमुख दलों की. आरजेडी के पास मुस्लिम यादव मिलाकर करीब 27 फीसदी वोट बैंक है जो तमाम पार्टियों के मुकाबले सबसे ज्यादा है. इसके बावजूद आरजेडी अपने दम पर सरकार बनाने में कभी सफल नहीं हुई है. 1990 के दशक की यदि बात करें तो लालू यादव की भी सरकार बीजेपी की मदद से बनी थी. 1995 या फिर वर्ष 2000 की बात करें उस समय भी कांग्रेस के समर्थन से आरजेडी की सरकार बनी थी.
नीतीश को भी लेना पड़ा समर्थन: नीतीश 2005 में सत्ता में आये उस समय भी बीजेपी का मजबूत समर्थन प्राप्त था. 2010 में नीतीश कुमार की सरकार बीजेपी के साथ,2015 में आरजेडी के साथ 2020 में फिर बीजेपी के साथ मिलकर ही नीतीश कुमार की सरकार बन पायी. मतलब साफ है कि एक खास वोट बैंक के लिये बिहार में गठबंधन होता रहा और 1990 से 2020 तक एक भी सरकार बिना गठबंधन के नहीं बन पायी है.
महागठबंधन में गांठ: बिहार के तमाम गठबंधनों की बात करें तो लगभग सभी गठबंधनों में गांठ है. नीतीश कुमार के एनडीए से निकल जाने के बाद तो दूरियां साफ हो गयी हैं लेकिन महागठबंधन में भी सब कुछ ठीक नहीं है. तमान दल एक दूसरे को पटखनी देने में लगे रहते हैं. चाहे जेडीयू और बीजेपी के बीच का गठबंधन हो या फिर जेडीयू आरजेडी के बीच का. तीनों दलों की यह कोशिश रही है कि सहयोगी दल के मुकाबले उनके दल का महत्व अधिक हो. इसी कड़ी में एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजियों और एक दूसरे को हराने का आरोप जैसे मामले आते रहें हैं. पिछले कुछ वर्षों में बिहार के प्रमुख दलों के बीच मजबूरी में समझौते हुए हैं लेकिन अन्दर ही अन्दर एक दुराव का भाव भी रहा है.
बिना समर्थन के सरकार बनाने की चाहत की उपज हैं कर्पूरी ठाकुर: बिहार के सभी प्रमुख दलों की चाहत है कि वो बिना किसी दल के समर्थन के ही सरकार बना सके. इसके लिए सभी दलों की ये कोशिश तेज है कि उनका वोट बैंक बढ़े. सबसे पहले आरजेडी पर नजर डालते हैं.आरजेडी के पास मुस्लिम यादव को वोट बैंक है.आरजेडी को लगता है कि यदि उनकी पार्टी अति पिछड़ा वोट बैंक में सेंधमारी करने में सफल होती है तो उसे किसी अन्य दल की जरूरत नहीं पड़ेगी.
बीजेपी भी नहीं पीछे: बीजेपी के पास भी अगड़ी जातियों और वैश्य वोट बैंक है. ऐसी स्थिति में बीजेपी भी चाहती है कि अति पिछड़ी जातियों का यदि समर्थन मिल जाएगा तो बिहार में नीतीश कुमार की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी. बीजेपी पिछले कुछ वर्षों से इस पर काम भी कर रही है और पिछली सरकार में दो उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को मैदान में उतार कर जोर आजमाईश भी कर चुकी है. साथ ही बिहार के गर्वनर के रूप में फागू चौहान को भेजकर बीजेपी ने अति पिछड़ों के बीच एक बड़ा संदेश देने का काम किया है. इसके अलावा बीजेपी ग्राउंड पर अति पिछड़ों के बीच ज्यादा काम कर रही है.
बिहार की राजनीति में अब कर्पूरी ठाकुर बने जरूरी: अब बात नीतीश कुमार यानी जेडीयू की करते हैं. जेडीयू के साथ लव कुश यानी कोईरी कुर्मी कैडर वोट बैंक के रूप में मौजूद है. साथ ही आरजेडी और बीजेपी से सहमे अति पिछड़ा वोटर भी नीतीश कुमार के साथ रहते हैं. इस पूरे हालात को समझने के बाद यही पता चलता है कि बिहार की राजनीति में अतिपिछड़ा वोट बैंक और उसके प्रणेता कर्पूरी ठाकुर ही तारणहार हैं.
ऐसे में तामम दल कर्पूरी ठाकुर को अति पिछड़ों का मसीहा स्थापित कर आगे बढ़ रहे हैं. सभी दल इस कोशिश में जुटे हैं कि किसी तरह अति पिछड़ा वोट पर कब्जा हो सके. इस पूरे प्रकरण में गौर करने लायक बात यह है कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीन दयाल उपाध्याय जैसे बड़े नेताओं को अपना आदर्श मानने वाली बीजेपी भी कर्पूरी ठाकुर को स्वीकार कर जयंती मनााने लगी है.
