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Women Reservation Bill: महिला आरक्षण का बिहार पर होगा बड़ा असर, अब तक का रिकॉर्ड खंगालती यह रिपोर्ट पढ़िए

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Sep 20, 2023, 8:09 PM IST

केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं के सीट आरक्षण के लिए महिला आरक्षण बिल पेश किया गया है. सभी दल की ओर से इस पर क्रेडिट लेने की कोशिश भी हो रही है, लेकिन बिहार में विधानसभा की चुनाव की बात करें या फिर लोकसभा की चुनाव की बात करें तो पार्टियों की ओर से कभी भी 15% से अधिक महिलाओं को टिकट नहीं दिया गया है.

महिला आरक्षण बिल का बिहार पर असर
महिला आरक्षण बिल का बिहार पर असर

महिला आरक्षण बिल का बिहार पर असर

पटना: 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 13 महिलाओं को टिकट दिया था, जिसमें से 9 महिलाओं ने बाजी मारी थी. जदयू ने 22 महिलाओं को टिकट दिया जिसमें से आठ ने चुनाव जीत लिया. वहीं राजद की तरफ से 16 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया गया और 7 ने विजय हासिल की. कांग्रेस ने 7 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया उसमें से दो ने जीत हासिल की.

पढ़ें- Women Reservation Bill: 'लालू के दबाव में महिला आरक्षण बिल को पास नहीं करा पाई थी कांग्रेस'- सुशील मोदी

महिला आरक्षण बिल का बिहार पर असर: 2020 के चुनाव में सभी पार्टियों ने 10% से कम सीट ही महिलाओं को टिकट दिया था. यह स्थिति तब है जब महिलाओं का वोट प्रतिशत विधानसभा चुनाव में पहले की तुलना में अधिक हुआ है. चुनाव जीताने में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कमोबेश यही स्थिति पहले के चुनाव में भी देखने को मिला है.

कब किस पार्टी ने कितनी महिलाओं पर जताया भरोसा: बिहार विधानसभा चुनाव में 2015 में महिला उम्मीदवारों की संख्या 273 थी. वहीं 2020 में यह संख्या बढ़कर 371 हो गई. 2020 में बीजेपी 110 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, इसमें से 13 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया था और नौ ने चुनाव जीता था. वहीं राजद की ओर से 144 उम्मीदवारों में 16 महिलाओं को टिकट दिया गया था, इसमें केवल सात निर्वाचित हुईं. 2000 के बाद से राजद ने 6 चुनाव में 430 विधानसभा सीटें जीती हैं, इनमें से केवल 28 सीट महिलाओं ने जीती. जदयू को 43 सीटों पर जीत मिली थी जिसमें से केवल 6 महिला उम्मीदवार जीत सकीं.

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राजनीति में महिलाओं ने मनवाया अपना लोहा: तीनों कम्युनिस्ट पार्टी ने 29 उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से केवल एक महिला थीं. बसपा ने आठ उम्मीदवार बिहार में उतरे थे लेकिन एक भी महिला प्रत्याशी की जीत नहीं हो सकी. 2015 में 28 महिला विधायक चुनाव जीती थीं. भाजपा ने सबसे अधिक 14 उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जिसमें से केवल चार जीतीं, राजद ने 10 महिला उम्मीदवारों को उतारा था सभी 10 जीतीं, जदयू ने 9 महिलाओं उम्मीदवारों को उतारा था, 9 जीतीं, कांग्रेस ने 5 महिला उम्मीदवारों को उतारा था, इसमें से एक जीतीं और एक कम्युनिस्ट पार्टी की महिला प्रत्याशी ने जीत दर्ज की. वहीं 2020 में महिला विधायकों की संख्या घटकर 26 हो गई. सबसे अधिक बीजेपी के 9 महिला विधायक विधानसभा पहुंचीं. उसके बाद जदयू की आठ और राजद की 7 महिला विधायक विधानसभा पहुंची हैं.

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महिलाओं का वोट कास्ट: महिला सांसदों की संख्या देश के स्तर पर जहां 11 फीसदी है तो वहीं बिहार में 8 फीसदी से भी कम 7.5 फीसदी है. लोकसभा चुनाव में महिला उम्मीदवारों की बात करें तो साल 2019 में 56 महिला प्रत्याशी को टिकट दिया गया, जिसमें से तीन को जीत मिली. 2014 में 47 में से 3 और 2009 में 46 में से 4 को जीत मिली. लोकसभा चुनाव में आधी आबादी के वोटिंग प्रतिशत की बात करें तो 2009 में 44.47%, 2014 में 57.66 % और 2019 में 59.92% महिलाओं ने वोट कास्ट किया.

विधानसभा में आधी आबादी की भूमिका: वहीं विधानसभा चुनाव में आधी आबादी का वोटिंग प्रतिशत साल 2015 में 53.52 प्रतिशत रहा जबकि पुरुष मतदाता का प्रतिशत 60.48 फीसदी रहा. वहीं साल 2020 में पुरुष मतदाता की संख्या 59.69 प्रतिशत रही जिसमें महिला मतदाताओं का प्रतिशत 54.68 रहा. बिहार की प्रमुख दलों ने 2015 और 2020 विधानसभा चुनाव में महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया और 2015 और 2020 की बात करें तो बीजेपी ने 2015 में 14 महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया जिसमें से चार को जीत मिली. वहीं 2020 में 13 में से 9 को जीत मिली. 2015 में आरजेडी ने दस महिला उम्मीदवार को टिकट दिया. दसों ने जीत दर्ज की.

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महिलाओं का अब तक का प्रदर्शन: वहीं जदयू ने 2015 में 10 को टिकट दिया जिसमें से 9 जीतीं. कांग्रेस ने पांच को टिकट दिया जिसमें से 4 की जीत हुई. 2020 की बात करें तो बीजेपी ने 13 को टिकट दिया 9 की जीत हुई है. राजद की 16 में से सात की जीत हुई. जदयू की 16 महिला प्रत्याशियों में से 8 और कांग्रेस की सात में से 2 महिला उम्मीदवार की जीत हुई. वहीं विधानसभा में महिलाओं का अब तक का प्रदर्शन 2010 को छोड़ दें हर बार 11% के नीचे ही रहा है.

आजादी के बाद 1052 से लेकर 2020 तक 315 महिला उम्मीदवार विधानसभा पहुंच चुकी हैं. 2015 तक 4765 उम्मीदवार चुनाव जीते थे जिसमें महिला 289 थी और पुरुषों की संख्या 4476 यानी 6.45 प्रतिशत रहा. 1952 से लेकर 2020 तक कांग्रेस के 120 महिला उम्मीदवार सदन पहुंची. दूसरे नंबर पर जदयू के 52, भाजपा के 28, राजद के 23 सीपीआई के तीन और निर्दलीय 9 महिलाओं ने विधानसभा मैं कदम रखा है.

जदयू ने 2010 में महिलाओं पर किया था फोकस: सबसे अधिक 2010 के हुए चुनाव में जदयू के 23 महिलाओं उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी. उससे पहले कांग्रेस की ओर से 1957 में 22 महिला उम्मीदवार सदन पहुंची थी. 1972 में पहली बार ऐसा हुआ जब विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व नहीं हुआ. हालांकि विभिन्न दलों ने 45 महिला उम्मीदवार मैदान में उतारा था लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली.

लंबे समय से हो रहा था प्रयास: केंद्र सरकार की ओर से महिलाओं को विधानसभा और लोकसभा में 33% सीट आरक्षित किए जाने को लेकर नारी शक्ति वंदन बिल को लोकसभा से पास कर दिया गया है. 27 सालों से महिला आरक्षण को लेकर प्रयास हो रहा है. 1996 में एचडी देवगौड़ा की सरकार ने 81 वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में महिला आरक्षण बिल पेश किया था. यूनाइटेड फंड की सरकार थी जो 13 पार्टियों का गठबंधन था. कुछ पार्टियों के विरोध के कारण यह बिल संयुक्त समिति के समक्ष भेज दिया गया और उसके कारण यह लटक गया.

महिला आरक्षण बिल लोकसभा से पास: उसके बाद 1997 में एक बार फिर से महिला आरक्षण बिल लाया गया लेकिन उस समय भी यह बिल पास नहीं हो पाया. 1998 से 2004 के बीच भाजपा की अगुवाई में एनडीए सरकार ने कई बार महिला आरक्षण विधेयक को पारित करने की कोशिश की लेकिन आरक्षण बिल पास नहीं हो पाया. उसके बाद कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार ने 2008 में इसे राज्यसभा में पेश किया लेकिन सपा जदयू और राजद के विरोध के कारण आगे नहीं बढ़ सका. 2010 में भी राज्यसभा में इस विधायक को भारी मतों से पारित किया गया लेकिन लोकसभा में पेश नहीं हो पाया. उसके बाद भाजपा की सरकार ने बिल को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई लेकिन अब इस बिल को लोकसभा से पारित कर दिया गया है.

क्रेडिट लेने की मची होड़: केंद्र सरकार की ओर से नारी शक्ति वंदन बिल महिला आरक्षण को लेकर पेश किया गया है. 33% आरक्षण लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं को इस बिल के लागू होने के बाद मिलेगा लेकिन इस पर सियासत भी शुरू है. क्रेडिट लेने की कोशिश भी शुरू हो गई है.

"हम लोग तो लगातार प्रयास कर रहे हैं. बीजेपी में तो अलग से महिला मोर्चा भी काम कर रहा है. पार्टी में भी उन्हें विशेष रूप से अहमियत दी जा रही है लेकिन अब आरक्षण लागू होने के बाद सभी दलों के लिए लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं को टिकट देना अनिवार्य हो जाएगा."- प्रेम रंजन पटेल, भाजपा प्रवक्ता

"बिहार में नीतीश कुमार ने जिस प्रकार से 2006 में पंचायत में 50% आरक्षण दिया, पुलिस सेवा में 35% आरक्षण दिया और अन्य बहालियों में आरक्षण दिया है. मेडिकल कॉलेज इंजीनियरिंग कॉलेज में नामांकन में आरक्षण दिया है. जब उन्हें लग रहा है उनकी कुर्सी खिसक रही है तो नीतीश कुमार के फार्मूला को ही लागू करने की कोशिश की जा रही है."- श्रवण कुमार, ग्रामीण विकास मंत्री, बिहार

2009 के लोकसभा चुनाव में 44.47 फ़ीसदी महिलाओं ने वोट किया था. 2014 में बिहार में महिलाओं का वोट प्रतिशत 57.66 रहा. वहीं लोकसभा चुनाव 2019 में महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले 4.66 फ़ीसदी अधिक मतदान किया 7 चरणों में हुये मतदान में पुरुषों ने 55.26 प्रतिशत और महिलाओं ने 59.92% मतदान किया. इस तरह देखें तो 2009 लोकसभा के चुनाव की तुलना में 2019 में 15.45 फ़ीसदी महिलाओं ने अधिक वोट किया.

बिहार में होगा व्यापक असर: विधानसभा में भी महिलाओं का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ा है, जहां एक तरफ महिलाओं का वोट प्रतिशत बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ चाहे लोकसभा हो या विधानसभा महिला उम्मीदवारों की संख्या नहीं बढ़ रही है. अब महिला आरक्षण बिल यदि लागू होगा तो टिकट देना सभी दलों के लिए मजबूरी हो जाएगा. ऐसे में बिहार में भी विधानसभा और लोकसभा सीटों पर इसका असर पड़ेगा. आधी आबादी दोनों जगह अधिक संख्या में नजर आएंगी.

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