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Bihar Hooch Tragedy : डॉक्टरों से समझिए कैसे देसी शराब बन जाती है जहर

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Published : Dec 20, 2022, 8:42 PM IST

बिहार में शराबबंदी (Liquor ban in Bihar ) के बाद से जहरीली शराब पीकर मरने वालों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. यहां शराबबंदी से पहले भी अवैध रूप देसी शराब बनाए जाते थे और इसमें गुणवत्ता के मानकों का कतई ध्यान नहीं रखा जाता है. इस कारण शराब जहरीली बन जाती है और फिर लोगों के लिए मौत का सबब बनती है. आखिर कैसे देसी शराब से लोगों की जान चली जाती है. विशेषज्ञों से इसी मुद्दे पर बातचीत कर कारणों की जानने की कोशिश की जाएगी. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

देसी शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक
देसी शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक

देसी शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक

पटना: बिहार में शराबबंदी लागू है, इसके बावजूद छपरा में जहरीली शराब पीकर 73 लोगों ने जान गवां दी. छपरा के अलावा भी कई जगहों से शराब पीने से मौत के मामले सामने आ रहे हैं. आखिर कैसे देसी शराब लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान (How country made liquor is harmful to health) पहुंचाती है, इस बात को समझने के लिए विशेषज्ञ से बातचीत जरूरी है. वैसे इन मामलों की जांच के क्रम में पता चला कि पाउच वाली देसी शराब पीकर लोगों की मौत हुई है. पाउच वाली शराब के निर्माण की प्रक्रिया क्या है, यह जानना जरूरी है. क्योंकि विशेषज्ञों के अनुसार शराब बनाने की प्रक्रिया पर ही यह निर्भर करता है कि जहरीली होगी या नहीं.

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अवैध रूप से स्थानीय स्तर पर बनती है देसी शराबः देसी शराब ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर अवैध रूप से बनाई जाती है. इसे बनाने में सही प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती है और इसकी गुणवत्ता मापने का कोई पारामीटर नहीं होता है. इस कारण शराब किस हद तक जहरीली होती है, पता नहीं चल पाता और इसे पीने से लोगों की मौत तक हो जाती है. शराबबंदी के पूर्व से ही बिहार में अवैध रूप से देसी भट्ठे पर शराब बनती रही है और बिकती रही है. बार-बार प्रशासन इस पर कार्रवाई करती है. प्रशासन ऐसे भट्ठों को छापेमारी में ध्वस्त कर देती है, लेकिन शराब माफिया फिर से भट्ठा तैयार कर लेते हैं और शराब बनाने लगते हैं.

देसी शराब बनाने में गुणवत्ता जांच का कोई मानक नहीं होताः देसी शराब में बनाने के दौरान इसकी गुणवत्ता जांचने का कोई पैरामीटर नहीं रहता है. शराब बनाने के दौरान टेंपरेचर का ध्यान नहीं रखा जाता और शराब माफिया शराब को नशीला बनाने के लिए इसमें यूरिया और ऑक्सीटॉसिन मिला देते हैं. ऐसे में शराब में कई बार इथाइल अल्कोहल के साथ-साथ मिथाइल अल्कोहल की मात्रा बढ़ जाती है और ऑक्सीटॉसिन की मात्रा बढ़ जाती है. इससे शराब जहरीली हो जाती है और इसे पीने वाले लोगों की मौत हो जाती है. इस शराब को बनाने के दौरान इसकी गुणवत्ता जांचने का कोई पैरामीटर नहीं होता है ऐसे में इसे अधिक नशीला बनाने के लिए शराब माफिया अलग से नशीला पदार्थ मिलाते हैं. कई बार इसकी मात्रा अधिक नहीं रहती. हालांकि यह शराब फिर भी जहरीला होता है.

मिथाइल अल्कोहल की ज्यादा मात्रा शराब को बनाती है जहरीलीः :पटना के वरिष्ठ गैस्ट्रोलॉजिस्ट डॉ मनोज कुमार ने बताया कि शराब में ऑक्सीटॉसिन अधिक हो गई हो, मिथाइल अल्कोहल का मात्रा अधिक हो गया हो, जिससे फार्मिक एसिड अधिक मात्रा में तैयार हो जाए, तो इसे पीने वाले लोगों की मौत हो जाती है. उन्होंने बताया कि देसी शराब को बनाने के दौरान इसकी गुणवत्ता जांचने का कोई पैरामीटर नहीं रहता है ऐसे में कई बार यह कम जहरीला रहती है, जो पीने वाले व्यक्ति को उसी समय तो खत्म नहीं करती है. लेकिन उसके शरीर के अंगों को धीरे-धीरे खत्म करना शुरू कर देती है. उन्होंने ने बताया कि यह शराब मल्टीपल ऑर्गन फैलियर का कारण बनती है.

मिथेनाॅल की कम मात्रा से भी मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर का डरः देसी शराब में जब मिथेनॉल की मात्रा बहुत अधिक नहीं हो कर थोड़ी अधिक रहे, ऑक्सीटॉसिन भी सामान्य से अधिक रहे तो सामान्य से थोड़ी अधिक मात्रा में फार्मिक एसिड तैयार होता है. यह पीने वाले व्यक्ति के मेटाबॉलिज्म पर डिपेंड करता है कि कितने समय में उसके शरीर के अंगों को गंभीर रूप से डैमेज पहुंचा देता है. डॉ मनोज कुमार ने बताया कि शराब सबसे पहले लिवर को डैमेज करता है और देसी शराब पीने वाले को अधिकांश बार जॉन्डिस की बीमारी का सामना करना पड़ता है और कई बार जॉन्डिस से भी अधिक होकर लीवर के सेल को डैमेज करना शुरू कर देता है जिसे सिरोसिस कहते हैं और यह सिरोसिस अधिक हो जाए तो फिर लीवर फेल कर जाता है.

"शराब में ऑक्सीटॉसिन अधिक हो गई हो, मिथाइल अल्कोहल का मात्रा अधिक हो गया हो, जिससे फार्मिक एसिड अधिक मात्रा में तैयार हो जाए, तो इसे पीने वाले लोगों की मौत हो जाती है. सी शराब को बनाने के दौरान इसकी गुणवत्ता जांचने का कोई पैरामीटर नहीं रहता है ऐसे में कई बार यह कम जहरीला रहती है, जो पीने वाले व्यक्ति को उसी समय तो खत्म नहीं करती है. लेकिन उसके शरीर के अंगों को धीरे-धीरे खत्म करना शुरू कर देती है" -डॉ मनोज कुमार, गैस्ट्रोलॉजिस्ट

विशेषज्ञ की निगरानी में विशेष फर्मूले से बनी शराब ही पीने योग्यः शराब बनाने डाॅ मनोज का कहना है कि लीवर से शराब किडनी में फिल्टर होता है और शराब में जहर की मात्रा अधिक रहे तो यह किडनी को भी डैमेज करता है. शरीर के अंदर के ब्लड वेसल्स को डैमेज करता है, खून का प्रवाह सही से नहीं होता है और फिर लंग्स को डैमेज कर देता है. उन्होंने बताया कि शराब बनाने का एक फार्मूला होता है. फार्मूले से तय होता है कि बनने वाला शराब बीयर है, विस्की है, वोडका है या वाइन है. इसे एक्सपर्ट केमिस्ट की निगरानी में बनाना चाहिए और लाइसेंस्ड कंपनियों के उत्पाद ही सीमित मात्रा में सेवन करने योग्य हैं. वह भी उनके ऊपर जहां शराब पीने की अनुमति है. उन्होंने कहा कि कोई भी जगह हो देसी शराब जो है उसकी गुणवत्ता हमेशा संदेहास्पद रहती है और यह हमेशा खतरनाक रहा है.

सबसे पहले ब्रेन पर असर करती है शराब: पीएमसीएच के प्रख्यात न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर ऋषि कांत सिंह ने बताया कि जो जहरीली शराब होती है, वह ब्रेन को काफी क्षति पहुंचाती है. शराब यदि अधिक जहरीली है तो व्यक्ति की उसी समय मौत हो जाती है, लेकिन कम जहरीला है तो धीरे-धीरे शरीर के ऑर्गन को डैमेज करना शुरू करता है और सबसे पहले ब्रेन पर अटैक करता है. ब्रेन की नसें सिकुड़नी शुरू हो जाती हैं.

जहरीली शराब का ऑप्टिक नर्व पर असर से चली जाती है आंखों की रोशनीः डाॅ ऋषिकांत ने कहा कि जहरीली शराब आंखों के ऑप्टिक नर्व को डैमेज करता है. इससे दृष्टि प्रभावित हो जाती है. ब्रेन की नसें सिकुड़ती है, इस वजह से आदमी में आलस बढ़ जाता है. वह लेथार्जिक हो जाता है. ब्रेन स्ट्रोक के चांसेस अधिक बढ़ जाते हैं और शरीर का एक हिस्सा पैरालाइज हो जाता है. उन्होंने कहा कि देसी शराब की गुणवत्ता हमेशा संदेहास्पद रहती है क्योंकि इसे बनाने के दौरान इसकी गुणवत्ता मापने का कोई पैरामीटर नहीं रहता और बनाने वाले भी कोई केमिस्ट नहीं होते, स्किल्ड नहीं होते हैं.

"जहरीली शराब ब्रेन को काफी क्षति पहुंचाती है. शराब यदि अधिक जहरीली है तो व्यक्ति की उसी समय मौत हो जाती है, लेकिन कम जहरीला है तो धीरे-धीरे शरीर के ऑर्गन को डैमेज करना शुरू करता है और सबसे पहले ब्रेन पर अटैक करता है. हरीली शराब आंखों के ऑप्टिक नर्व को डैमेज करता है. इससे दृष्टि प्रभावित हो जाती है" -डॉ ऋषिकांत सिंह, न्यूरोलॉजिस्ट

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