पटना: बिहार में जातीय गणना पर सियासत थमने का नाम नहीं ले रही है. पटना हाईकोर्ट ने जातीय गणना पर रोक लगा दी है. बिहार सरकार ने इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपील की है. वहीं दूसरी तरफ नीतीश सरकार जातीय गणना को लेकर कानून बनाने पर भी विचार कर रही है. सरकार को लग रहा है सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिलेगी तो उसके लिये विकल्प तैयार कर लेना चाहिए.
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जातीय जनगणना पर कानून बनानी की तैयारी में सरकार: बीजेपी की तरफ से भी विधानमंडल का विशेष सत्र बुलाकर कानून बनाने की मांग हो रही है. इस मुद्दे पर बीजेपी सरकार के साथ दिख रही है. ऐसे में बिहार सरकार यदि कानून बनाती है तो क्या वह लागू हो पाएगी? पटना हाई कोर्ट के सीनियर एडवोकेट आलोक सिन्हा का कहना है कि सरकार को विधानमंडल में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन कानून टिकेगा कि नहीं यह तो भविष्य के गर्त में है जब कानून आएगा तभी पता चलेगा.
जातीय गणना पर पटना हाईकोर्ट की रोक : बिहार में पिछले 2 साल से जातीय गणना को लेकर चर्चा हो रही है. बिहार सरकार ने पिछले साल कैबिनेट में जातीय गणना कराने का फैसला लिया और इस साल जातीय गणना शुरू भी हो गयी. पहले फेज में मकानों को यूनिक नंबर दिया गया और दूसरे फेज में जातियों की गणना और आर्थिक सामाजिक स्थिति की रिपोर्ट तैयार हो रही थी. लेकिन बीच में ही पटना हाईकोर्ट ने उस पर रोक लगा दी. बिहार सरकार की ओर से जल्द सुनवाई को लेकर पटना हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की गई लेकिन उसे खारिज कर दिया गया.
नीतीश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दी है याचिका: अब सरकार सुप्रीम कोर्ट गई है, लेकिन सरकार के अंदर यह चर्चा होने लगी है यदि कोर्ट का फैसला पक्ष में नहीं आया तो कानून बनाकर इसे लागू किया जाए. सूत्रों से जो जानकारी मिली है मुख्यमंत्री ने अपने नजदीकियों और कानून विदों के साथ इस पर चर्चा भी की है. अभी सरकार की नजर ऐसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर लगी है. अभी तक सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की तिथि तय नहीं हुई है. सुप्रीम कोर्ट क्या कुछ फैसला देता है उसपर ही सब कुछ निर्भर होगा. पटना हाई कोर्ट के सीनियर एडवोकेट आलोक कुमार सिन्हा का कहना है सरकार के पास लेजिसलेटिव में कानून बनाने का अधिकार है. वहीं जातीय जनगणना को लेकर बयानबाजी भी जारी है.
"सरकार कानून बना सकती है लेकिन यह तभी सरकार करेगी, जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ जाएगा. फिलहाल तो सरकार को इंतजार करना होगा लेकिन सरकार के पास कानून बनाने का पावर है. वह कानून जब आएगा तभी पता चलेगा कि वह टिकेगा कि नहीं. अगर सुप्रीम कोर्ट में सरकार हार जाए तो दूसरा रास्ता तलाशा जाएगा और वह दूसरा रास्ता कानून बनाने का है."- आलोक कुमार सिन्हा, सीनियर एडवोकेट, पटना हाईकोर्ट
"नीतीश कुमार पर वोट की राजनीति कर रहे हैं. सरकार पहले से तैयारी करके जाती तो आज यह स्थिति देखने को नहीं मिलती. यदि सरकार कानून बनाना चाहती है तो हम लोग साथ हैं. अब सब कुछ नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव पर ही निर्भर है."- अरविंद सिंह, बीजेपी प्रवक्ता
'नीतीश कुमार जातीय गणना को लेकर प्रतिबद्ध': सरकार के अंदर जातीय गणना को लेकर हाईकोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जा रहा है. लेकिन नीतीश कुमार विकल्प भी तैयार करके रखना चाहते हैं और इसलिए पहले संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी ने भी बयान दिया कि सरकार जरूरत पड़ी तो कानून भी बनाएगी. अब नीतीश कुमार के नजदीकी और जल संसाधन मंत्री संजय झा ने भी कहा है कि नीतीश कुमार जातीय गणना को लेकर प्रतिबद्ध हैं और इसके लिए जो भी संभव होगा वह सब कुछ करेंगे.
"मैटर अभी सुप्रीम कोर्ट में है. क्या फैसला आता है उसपर हमारी नजर है. अगर यह होता है तो लोगों के विकास की योजना बनाने में सुविधा होगी. इसलिए डेटा कलेक्शन किया जाता है. नीतीश कुमार की इसको कराने को लेकर प्रतिबद्धता है."- संजय झा, जल संसाधन मंत्री, बिहार
क्या कहते हैं कानून के जानकार?: कानून के जानकार यह भी कहते हैं जातीय गणना को लेकर यदि सरकार को कानून बनाना पड़ता है तो उसके लिए विधानमंडल का विशेष सत्र बुलाना पड़ेगा या फिर मानसून सत्र का इंतजार करना होगा. दोनों सदनों से विधेयक पास कराने के बाद उसे राज्यपाल के पास भी भेजना होगा. लेकिन जातीय गणना केंद्र का विषय है. ऐसे में बिहार सरकार इसे कानून बनाकर लागू करना भी चाहेगी तो हाईकोर्ट या फिर सुप्रीम कोर्ट में उसे चुनौती दिया जा सकता है. यह सब कुछ तब होगा जब कानून आएगा और कानून में क्या प्रावधान होता है वह देखना पड़ेगा.
टिक पाएगा जातीय गणना कानून?:बिहार सरकार जातीय गणना करवा रही है और उसमें आर्थिक और सामाजिक स्थिति के आधार पर रिपोर्ट तैयार करने और आगे योजना उसके आधार पर बनाने की बात कह रही है. बिहार सरकार की ओर से कर्नाटक में जातीय गणना कराए जाने का भी हवाला दिया जा रहा है. हालांकि कर्नाटक में जो गणना करवाई गई उसका रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं किया गया. उसी तरह यूपीए सरकार में भी जो गणना की गई उसकी भी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई. नीतीश कुमार चाहते हैं कि 2024 से पहले जातीय गणना हो जाए और देश के दूसरे राज्यों में भी यह मुद्दा बने. आने वाले समय में कोशिश होगी कि अति पिछड़ों की संख्या के हिसाब से उन्हें अधिक आरक्षण मिले. कुल मिलाकर पटना हाईकोर्ट के रोक के बाद सरकार के लिए अपनी रणनीति को आगे बढ़ाना एक बड़ी चुनौती हो गया है. इसलिए अब सरकार कानून बनाने पर भी मंथन कर रही है लेकिन यह सब कुछ सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और फैसले के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा. फैसला पक्ष में नहीं आने पर यदि कानून बनता है तो यह भी देखना होगा कि वह टिक पाता है या नहीं.