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Patna News: ब्राह्मणों की उत्पत्ति पर राजद के पूर्व विधायक के बयान को विशेषज्ञों ने किया खारिज.. कहा -'हास्यास्पद है बयान'

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Published : May 2, 2023, 11:06 PM IST

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बिहार की राजनीतिक पहचान जातिगत राजनीति की रही है. चुनाव जब नजदीक आते हैं जातिगत राजनीति केंद्रित बयानबाजी तेज हो जाती है. इसी बीच 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर के बिहार में महागठबंधन सरकार एक ओर जातिगत जनगणना करा रही है. वहीं महागठबंधन के सबसे बड़े दल के नेतागण का ब्राह्मण विरोधी और फॉरवर्ड विरोधी बयानबाजी तेज हो गई है. बीते दिनों प्रदेश के शिक्षा मंत्री ने रामचरितमानस के खिलाफ बयान देकर के सुर्खियां बटोरी तो इन दोनों पार्टी के बड़े नेता और पूर्व विधायक यदुवंश यादव ने ब्रह्मणों को लेकर विवादित बयान दिया है.

ब्राह्मणों की उत्पत्ति पर पूर्व राजद विधायक के बयान से विवाद

पटना: बिहार में चुनावी मौसम नजदीक आते ही जातिगत बयानबाजियां शुरू हो गई है. इसी कड़ी में राजद के पूर्व विधायक यदुवंश यादव ने ब्राह्मण को भारत के बाहर का बताया और कहा कि ब्राह्मण समाज मूल रूप से भारत के नहीं है और यह लोग रूस और अन्य देश के रहने वाले हैं और भारत में रूस से भगाए जाने पर आकर बसे. यदुवंश यादव ने यह भी कहा कि डीएनए जांच में भी इसका खुलासा हुआ है कि कोई भी ब्राह्मण इस देश का नहीं है. यदुवंश यादव के इस बयान का इतिहासकार समर्थन नहीं कर रहे. इतिहासकार हो या एंथ्रोपोलॉजी के एक्सपोर्ट, सभी का कहना है कि इस प्रकार का कोई डीएनए रिपोर्ट नहीं है.

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विशेषज्ञों ने विधायक के दावे को किया खारिजः विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि इस बात का भी कोई सबूत नहीं है कि ब्राम्हण मूल रूप से रूस के रहने वाले थे और भारत में उनकी उत्पत्ति नहीं है. पटना कॉलेज में इतिहास विभाग के प्राध्यापक प्रोफेसर माया नंद ने बताया कि माननीय सदस्य किस साक्ष्य के आधार पर इस प्रकार का बयान दे रहे हैं. इसका उन्हें कोई संज्ञान नहीं है. माननीय सदस्य जिस डीएनए रिपोर्ट की बात कर रहे हैं, ऐसा कोई डीएनए रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है, ना ही किसी इतिहास के पुस्तकों में ऐसी चर्चा है. माननीय सदस्य भी सिर्फ बोल रहे हैं कि ब्राम्हण मूल रूप से भारतीय नहीं है और डीएनए रिपोर्ट से भी इसका खुलासा हुआ है, लेकिन वह खुद इसका साक्ष्य नहीं उपलब्ध करा पा रहे हैं.

भारत को बांटने के लिए लाई गई आर्यन थ्योरीः प्रोफेसर माया नंद ने कहा कि अब इतिहास पर चलते हैं कि इतिहास क्या कहता है. इतिहास ब्राह्मण और अन्य वर्गों को बांटकर अलग से नहीं पढ़ाया जाता है. जब भारत गुलाम था उस दौर में मैक्स मूलर के द्वारा आर्यन थ्योरी लाई गई थी. आर्यन थ्योरी 1857 की क्रांति के बाद 1859 में लाई गई थी. इससे भी समझ में आता है कि जब देश में क्रांति चल रही थी उसी समय आक्रमण करने वाले गुट के तरफ से आर्यन थ्योरी लाई गई. कहीं ना कहीं यह थ्योरी भारत को बांटकर शासन करने के लिए लाई गई थी और यह थ्योरी भारत में सफल भी हुई, क्योंकि अंग्रेजों ने लंबे समय तक शासन किया.

"किस साक्ष्य के आधार पर इस प्रकार का बयान दे रहे हैं. इसका उन्हें कोई संज्ञान नहीं है. माननीय सदस्य जिस डीएनए रिपोर्ट की बात कर रहे हैं, ऐसा कोई डीएनए रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है, ना ही किसी इतिहास के पुस्तकों में ऐसी चर्चा है. माननीय सदस्य भी सिर्फ बोल रहे हैं कि ब्राम्हण मूल रूप से भारतीय नहीं है और डीएनए रिपोर्ट से भी इसका खुलासा हुआ है, लेकिन वह खुद इसका साक्ष्य नहीं उपलब्ध करा पा रहे हैं" - मायानंद, प्रोफेसर, इतिहास विभाग, पटना काॅलेज

आर्यन थ्योरी का इतिहासकारों ने किया था विरोधः प्रोफेसर माया नंद ने बताया कि आर्यन थ्योरी जब लाई गई उस समय भारतीय इतिहासकारों ने भी विरोध किया. साथ ही साथ पश्चिम की भी इतिहासकारों ने विरोध किया. क्योंकि यह पूरी थ्योरी सुपरमेसी को लेकर बनाई गई थी. पश्चिम में भी यहूदी और मुस्लमान, मुस्लमान और क्रिश्चियन इत्यादि में एक दूसरे के ऊपर श्रेष्ठता साबित करने के लिए लाई गई थी. इसका इतिहासकारों ने विरोध किया. इसके बाद देखा जाता है कि भारत में रिजले नाम का एक व्यक्ति आता है, वर्ण व्यवस्था के तहत चल रहे भारतीय समाज में कास्ट पॉलिटिक्स शुरू करता है और जातिगत जनगणना करता है.

एक्सपेरिमेंट के तौर पर लाया गया कास्ट सिस्टम: माया नंद ने बताया कि कास्ट सिस्टम में एक जाति को दूसरे जाति से सुप्रीम और तीसरे जाति को दबा कुचला और उपेक्षित दर्शाया जाता है. भारत में जो वर्ण व्यवस्था थी वह सामाजिक एकजुटता और समरसता के लिए बनाई गई थी. जिसे जाति पात के सिस्टम में बांटकर सामाजिक वैमनस्य पैदा किया गया. प्रोफेसर माया नंद ने कहा कि रिजले का विचार यह था कि भारत को यदि जाति में बांट दिया जाए तो भारत कभी एक नहीं हो पाएगा और एकजुटता से पश्चिम का विरोध नहीं कर पाएगा. काफी हद तक वह अपने एक्सपेरिमेंट में सफल भी रहा. क्योंकि आज भी हमारे राजनेता जातिगत वैमनस्य फैलाने वाले बयान दे रहे हैं.

रिजले के एक्सपेरिमेंट काॅनटेक्स्ट से प्रेरित दिखता है विधायक का बयानः माया नंद ने बताया कि अभी जिस प्रकार माननीय पूर्व विधायक ने जो बयान दिया है वह भी इसी कॉन्टेक्स्ट में नजर आ रहा है. क्योंकि प्रदेश में जातिगत जनगणना चल रही है और वह भी माइलेज लेना चाहते हैं. जहां तक ब्राह्मणों के रूस से भारत में आकर बसने की बात है तो वह इस बात से सहमत नहीं है. क्योंकि इतिहास में कहीं भी इसका प्रमाण नहीं है. अगर सभ्यता को देखे तो भारतीय सभ्यता रूसी सभ्यता से काफी पुरानी है. क्योंकि भारत में मानव के प्रजनन और सभ्यता के विस्तार के लिए तमाम बेहतरीन प्राकृतिक कंडीशन उपलब्ध हैं. आज की छोटे से देश भारत में दुनिया की सबसे बड़ी आबादी निवास करती है और यहां आबादी का लगातार विस्तार हो रहा है. पेड़ पौधे नदियां तालाब जैसे जल स्रोत और सभी ऋतु यहां उपलब्ध है जबकि रूस बर्फ से घिरा हुआ है और तमाम साइंस के डेवलपमेंट के बावजूद वहां प्रजनन दर कम है.

ब्राह्मणों की उत्पत्ति का साक्ष्य ऋग्वेद मेंः उन्होंने कहा कि सिंधु घाटी सभ्यता से पुरानी सरस्वती वैली सभ्यता भी भारत की रही है जो 75000 ईसा पूर्व की है, और यह प्रमाणित भी है. ऐसे में भारत के किसी वर्ग के लोगों को यह कहना कि वह भारत के नहीं है इस सरासर गलत है और समाज में वैमनस्य फैलाने वाला बयान है जो राजनीतिक स्वार्थ के लिए दिया गया है. ऐसे बयान से राजनेताओं को बचना चाहिए. इतिहास के शिक्षक और एंथ्रोपोलॉजी के जानकार गुरु रहमान ने बताया कि ब्राह्मणों की उत्पत्ति को लेकर जो माननीय सदस्य ने बयान दिया है वह सरासर गलत है. किसी भी राजनीतिक दल के लोगों ने यह बयान दिया हो लेकिन वह इसे सरासर गलत मानते हैं. क्योंकि ब्राह्मणों की उत्पत्ति का साक्ष्य ऋग्वेद के दसवें मंडल के 90वें सूक्त जिसे पुरुष सूक्त कहा जाता है. वहां से मिलता है. यहीं वर्ण विभाजन की प्रमाणिक सूचना प्राप्त होती है. जिसे बताया जाता है कि ब्रह्मा के मुख से ब्राम्हण, भुजाओं से क्षत्रिय, पेट से वैश्य और जंघा से शूद्र उत्पन्न हुए हैं.

"ब्राह्मणों की उत्पत्ति को लेकर जो माननीय सदस्य ने बयान दिया है वह सरासर गलत है. किसी भी राजनीतिक दल के लोगों ने यह बयान दिया हो लेकिन वह इसे सरासर गलत मानते हैं. क्योंकि ब्राह्मणों की उत्पत्ति का साक्ष्य ऋग्वेद के दसवें मंडल के 90वें सूक्त जिसे पुरुष सूक्त कहा जाता है. वहां से मिलता है. यहीं वर्ण विभाजन की प्रमाणिक सूचना प्राप्त होती है. जिसे बताया जाता है कि ब्रह्मा के मुख से ब्राम्हण, भुजाओं से क्षत्रिय, पेट से वैश्य और जंघा से शूद्र उत्पन्न हुए हैं" - गुरु रहमान, एंथ्रोपोलाॅजी के जानकार

पहले कर्म के आधार पर बंटा था समाजः उन्होंने बताया कि इसी सूक्त में एक घटना का वर्णन होता है जिसमें एक व्यक्ति कहता है कि वह कवि है और ब्राह्मण का काम करता है, उसके पिता क्षत्रिय का कार्य करते हैं और उसकी मां वैश्य का काम करती हैं और एक परिवार में सभी वर्ण है. यह प्रसंग बताता है कि हमारे यहां वर्ण की उत्पत्ति जन्म के आधार पर ना होकर कर्म के आधार पर हुई है. गुरु रहमान ने बताया कि जब साम्राज्यवादी दौर चला और उपनिवेशवाद की होड़ चली, और अधिक से अधिक क्षेत्रों को अपने अधीन करके अपने साम्राज्य को विस्तार करने का प्रयास किया गया. उसके बाद धीरे-धीरे वर्ण व्यवस्था जाति की व्यवस्था में बदलते चली गई.


क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र भी आर्यः गुरु रहमान ने बताया कि यह दुर्भाग्य है कि सिंधु घाटी सभ्यता में डेड बॉडी को जलाने और दफन करने दोनों का प्रावधान था, लेकिन आगे वैदिक काल में डेड बॉडी को सिर्फ जलाया जाता था और इस वजह से आज के समय में उस काल के मानव अवशेषों के अधिक साक्ष्य नहीं मिल पाते हैं. यही कारण है कि आर्य कौन थे. इस बारे में कोई भी इतिहासकार सही नहीं बता पाते हैं. उन्होंने बताया कि आर्य वह थे जिनके पास बोलने और लिखने की समृद्ध भाषा थी और यह भाषा संस्कृत थी. वहीं जो वनवासी थे वह लिखना तो जानते थे, लेकिन क्या लिख रहे हैं यह नहीं जानते थे. इसीलिए आज तक उनकी लिपि को कोई नहीं पढ़ पाया. आज के समय हम जिसे आर्य कहते हैं वह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र सभी हैं. आर्य कौन थे कहां से आए थे. इसको लेकर इतिहासकारों में बहुत बड़ा मत अंतर है.

आर्यों के मूल स्थान को लेकर मतांतरः इतिहासकार पेनका बताते हैं कि आर्य जर्मनी से थे, नेहरिंग बताते हैं कि आर्य रूस से थे, गाइल्स के अनुसार आर्य हंगरी से थे. काल्का के अनुसार आर्य कश्मीर से थे. दयानंद सरस्वती के अनुसार आर्य तिब्बत से थे. बाल गंगाधर तिलक के अनुसार आर्य आर्कटिक प्रदेश के थे. इतिहासकार एसी दास के अनुसार पंजाब क्षेत्र के ब्रह्मर्षि प्रदेश से आर्य आते थे. वही आर्यों को लेकर जिसके विचार सबसे अधिक कोट किए जाते हैं. वह मैक्स मूलर है. मैक्स मूलर के मुताबिक आर्य मध्य एशिया के निवासी थे. हालांकि यह भी आश्चर्य की बात है कि मैक्स मूलर कभी अपने जीवन में भारत नहीं आया और भारत के इतिहास पर पुस्तक लिखा. आर्यों के बारे में कहीं से भी कोई आर्कियोलॉजिकल सोर्सेज से जानकारी प्राप्त नहीं होती है.

ब्राह्मणों का भारत का मूल निवासी नहीं मानना हास्यास्पदः गुरु रहमान ने बताया कि आर्यों का वर्णन जो इतिहास में मिलता है वह पुष्यमित्र के राजपुरोहित पतंजलि के लिखित इतिहास में मिलता है. जहां वह बताते हैं कि आर्य गोरे थे, लंबे थे, नुकीली नाक थी, लाल लाल गाल थे, लहरदार बाल थे. इसके आधार पर मान लिया गया कि आर्य कैसे थे. उन्होंने कहा कि भारत में विभिन्न क्षेत्रों में लोगों की बनावट अलग अलग है. आर्यों के बारे में पतंजलि का जो विवरण है उसके मुताबिक आर्य कश्मीर के हो सकते हैं. उत्तराखंड के हो सकते हैं या अन्य ठंडे प्रदेशों के. आज तक किसी भी डीएनए टेस्ट में यह साबित नहीं हो पाया है कि आर्यों की उत्पत्ति कहां की है और यह पता भी नहीं चल सकता. अगर पता चलेगा अभी तो यह वह शत-प्रतिशत आश्वस्त होकर कहते हैं कि आर्य भारत के हीं मूलनिवासी निकलेंगे. आज के समय में किसी के द्वारा किसी विशेष समाज को यह कहना कि वह भारत का मूल निवासी नहीं है. सरासर हास्यास्पद और गलत बात है.

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