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ऐतिहासिक धरोहर को संजोने की पहल, बिहार के पर्यटन को पहचान दिलाने के लिए शुरू की कवायद

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Published : Sep 13, 2022, 9:37 PM IST

बिहार के इतिहास को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने को लेकर युवा अब आगे आ रहे हैं और लगातार परिश्रम कर रहे हैं. नालंदा के रहने वाले उद्यमी रविशंकर उपाध्याय (Founder Director of Startup Ravi Shankar) ने एक ऐसा ही स्टार्टअप की शुरूआत की है, जो जिसके माध्यम से लोगों को बिहार के इतिहास के बारे में जानकारी मिल सकेगी. पढ़ें पूरी खबर.

बिहार के ऐतिहासिक धरोहर
बिहार के ऐतिहासिक धरोहर

पटना: बिहार के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत (Historical Heritage of Bihar) को संजोकर रखने के लिए युवा आगे आ रहे हैं. खासकर महिलाएं भी दिलचस्पी दिखा रही हैं. बिहार के एंटरप्रेन्योर ने ऐतिहासिक विरासत को संजोने के लिए एक्शन प्लान तैयार किया है. बिहार के पर्यटन स्थल की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान हो इसके लिए ऐतिहासिक विरासतओं की प्रतिकृति बनाकर घर-घर तक पहुंचाई जा रही है. युवा उद्यमी पेपर मेसी आर्ट, डोकरा आर्ट, टेराकोटा आर्ट, वुडन आर्ट और सिरामिक आर्ट के जरिए ऐतिहासिक प्रतिकृति को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में जुटे हैं.

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बिहार में हेरिटेज स्टार्टअप: बिहार के नालंदा जिले से आने वाले रवि शंकर उपाध्याय और रचना प्रियदर्शनी ने बिहार के पर्यटन स्थलों को मिनिएचर के जरिए जन-जन तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है. इस हेरिटेज स्टार्टअप को उद्योग विभाग बिहार सरकार की ओर से सर्टिफिकेशन भी हासिल है. बिहार में कई ऐतिहासिक पर्यटन स्थल है, जो परिचय के मोहताज नहीं है. पटना के ऐतिहासिक गोलघर के अलावा नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय, शेरशाह का मकबरा, महाबोधि मंदिर अंतरराष्ट्रीय पहचान है और मिनिएचर के जरिए महाबोधि मंदिर की प्रतिकृति नालंदा सील का मोमेंटो, गुल्लक, खिलौने आदि के जरिए रविशंकर और रचना ऐतिहासिक विरासत के प्रतिकृति को जन-जन तक पहुंचा रहे हैं.

हमें अपनी विरासत पर करना चाहिए गर्व: स्टार्टअप के फाउंडर डायरेक्टर रवि शंकर उपाध्याय ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि 'हम अपने विरासत पर गर्व कर सकते हैं. अगर हम टी शर्ट में एफिल टावर पहन सकते हैं तो महाबोधि मंदिर, अशोका स्तंभ, जल मंदिर और ककोलत की तस्वीर युक्त टी शर्ट भी पहन सकते हैं. हमारे आपके घर के बच्चे डोरेमोन से तो खेल रहे हैं लेकिन उन्हें चाणक्य, आर्यभट्ट, महात्मा बुद्ध, भिखारी ठाकुर, पंडित मंडन मिश्र, सम्राट अशोक और चाणक्य से भी वाबस्ता होना चाहिए. नए कॉन्सेप्ट के जरिए हम हर घर तक पहुंचना चाहते हैं. ऐतिहासिक विरासत के छोटे स्वरूप को अगर हम ड्राइंग रूम तक पहुंचा देंगे तो हम अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे. इसके अलावा हम ऑनलाइन माध्यम से भी प्रति कीर्ति को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने की कवायद में जुटे हैं.

गोलघर की तरह गुल्लक बच्चों के बीच है पॉपुलर: संस्था के निदेशक रचना प्रियदर्शनी ने स्टार्टअप को अभियान के रूप में लिया है. रचना प्रियदर्शनी कहती हैं कि बिहार के पर्यटन स्थल पर जब मैं घूमने जाती थी तो वहां भी ताजमहल की प्रतिकृति मिलती थी, तब मेरे मन में यह ख्याल आया कि बिहार के पर्यटन स्थलों की प्रकृति बनाई जानी चाहिए. जिसके बाद हम इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. रचना ने कहा कि हमारी कोशिश है कि गिफ्ट में लोग अपनी विरासत स्थली के प्रतिरूप को भेंट करें. हम 99 रुपये से लेकर 999 की रेंज में प्रतिकृति लोगों को उपलब्ध करा रहे हैं. औसतन 50 से 100 प्रतिकृति लोगों द्वारा हर रोज खरीद ली जाती है.

"हमलोग पावापुरी गये थे घुमने के लिए वहां पर हमने देखा की पावापुरी मंदिर के बाहर ताजमहल का छोटा मीनिएचर मिला. जहां भी हम जाते थे तो सब जगह ताजमहल और एफिल टावर मिलता था. उस समय हमको लगा की यहां बिहार के ऐतिहासिक चीजों से जुड़ी चीजे क्यों नहीं है. उसी से हमारे सामने स्टार्टअप का ख्याल आया."- रचना प्रियदर्शनी, निदेशक

"सबसे मुल बात ये है कि बिहार में विरासत की कमी नहीं है. दो हमारे पास विश्व विरासत स्थली है. एक महाबोधी का मंदिर है सम्राट अशोक का बनाया हुआ और दूसरा नालंदा का खंडहर है. तीसरे विश्व विरासत की सूची के लिए बिहार सरकार ने आवेदन कर रखा है. सायक्लोपियन वॉल जो राजगीर में जो बना है. वो भी संभवत: विश्व विरासत में शामिल हो जाएगा. इसके अलावा बिहार की राज्य सरकार ने 48 स्थलों को विरासत की सूची में शामिल करके रखा है. हमलोगों की कोशिश है कि हमारी युवा पीढ़ी विरासत को जानें."- रविशंकर उपाध्याय, फाउंडर

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