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प्रोफेसर कुद्दुस के इस्तीफे पर सवाल, बोले शिक्षाविद- भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना VC को पड़ा महंगा

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Published : Dec 18, 2021, 1:43 PM IST

Professor Mohammad Quddus Resignation
Professor Mohammad Quddus Resignation

बिहार के मौलाना मजहरुल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर मोहम्मद कुद्दुस के इस्तीफे (Professor Mohammad Quddus Resignation) के बाद अब कई सवाल खड़े हो रहे हैं. पूर्व कुलपति के कारनामों की उन्होंने पोल खोली थी. शिकायत पर कार्रवाई तो नहीं हुई उल्टे प्रोफेसर कुद्दुस को ही इस्तीफा देना पड़ा. पढे़ं पूरी खबर..

पटना: बिहार के विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार (Corruption Cases on VC in Bihar) के खेल का पर्दाफाश करने वाले मौलाना मजहरूल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर कुद्दुस के इस्तीफे के बाद शिक्षाविद् (Educationist On Mohammad Quddus Resignation) कई सवाल उठा रहे हैं. पूछा जा रहा है कि, आखिर क्यों, जिसने खामियां उजागर की उसे ही बलि का बकरा बनना पड़ा और इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा.

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हाल ही में शिक्षा विभाग की एक अहम बैठक हुई थी, जिसमें तमाम विश्वविद्यालयों के रजिस्ट्रार और वित्तीय अधिकारी के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से तमाम विश्वविद्यालयों के वीसी भी जुड़े. इस मीटिंग में शिक्षा विभाग की ओर से दो टूक कह दिया गया कि, वित्तीय अनियमितता बर्दाश्त नहीं होगी. विभाग ने साफ कर दिया कि, जो पैसे मिल रहे हैं उनका हिसाब भी देना होगा.

शिक्षाविद डॉ संजय कुमार का कहना है कि, पिछले दिनों विश्वविद्यालयों में वित्तीय अनियमितता का मामला उठाने वाले प्रोफेसर कुद्दुस को ही बलि का बकरा बना दिया गया. जब सरकार का कोई समर्थन नहीं मिला और उल्टे उनपर ही आरोपित पूर्व वीसी ने मानहानि का मुकदमा कर दिया.ऐसे में वीसी के सामने इस्तीफा देने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा. सरकार का भी किसी तरह का कोई सपोर्ट न मिलता देख प्रोसेसर कुद्दुस ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.

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बिहार की सियासत और शिक्षा पर पैनी निगाह रखने वाले डॉक्टर संजय कुमार ने कहा कि, 'विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार (Corruption in Universities of Bihar) का मामला कोई नया नहीं है. अगर वीसी के यहां से एक करोड़ से ज्यादा कैश बरामद हुए और उन पर कार्रवाई के बजाय उन्हें छुट्टी पर भेज दिया गया तो सवाल उठना लाजमी है. दूसरी तरफ जिस वाइस चांसलर ने भ्रष्टाचार के मामले को उजागर किया और एक अन्य वीसी पर आरोप लगाया उसे लेकर कोई कार्रवाई नहीं हुई. उल्टा उन्हें परेशान किया जाने लगा.'

डॉ संजय कुमार ने कहा कि, ऐसी स्थिति में कोई भी आदमी क्या करेगा? मजबूर होकर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. लेकिन यह गंभीर विषय है कि जो व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है और सरकार की मदद की कोशिश करता है सरकार उनके सपोर्ट में खड़ी नहीं होती है.

इस बारे में एक अन्य शिक्षाविद और यूनिवर्सिटी के क्रियाकलापों की पूरी जानकारी रखने वाले अंकुर ओझा ने कहा कि, 'जो सिस्टम की खामियां उजागर करता है, सरकार अगर उनकी मदद के लिए आगे नहीं आती तो ऐसा व्यक्ति मजबूरन और क्या कर सकता है. प्रो कुद्दुस ने विश्वविद्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था. उन्हें उम्मीद थी कि, कोई कार्रवाई होगी और व्यवस्था दुरुस्त की जाएगी. लेकिन उल्टे उन्हीं पर शिकंजा कस दिया गया. मजबूर होकर और किसी तरफ से सहायता नहीं मिलती देख, उन्होंने रास्ते से हट जाना ही बेहतर समझा.

आपको बता दें कि, प्रोफेसर कुद्दुस ने पिछले साल 22 अगस्त को मौलाना मजहरूल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय के कुलपति का कार्यभार संभाला था. उस वक्त से ही में लगातार विश्वविद्यालय में व्याप्त वित्तीय अनियमितता का मामला उजागर कर रहे थे. उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था और एलएनएमयू के वाइस चांसलर पर भी गंभीर आरोप लगाए थे. इसके बाद मुख्यमंत्री ने कुलाधिपति सह राज्यपाल से मिलकर जांच का अनुरोध किया था. लेकिन अब तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है.

बता दें कि प्रोफेसर कुद्दुस ने अरबी फारसी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. एसपी सिंह (Former Vice Chancellor Prof. SP Singh) के कई निर्णय पर सवाल उठाए थे. उत्तर पुस्तिका की खरीद से लेकर सुरक्षा गार्ड एजेंसी को अधिक भुगतान मामले को उठाकर सुर्खियों में आ गए थे. लेकिन अचानक प्रोफेसर कुद्दुस के इस्तीफे से कई तरह के सवाल उठने लगे हैं.

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