पटना: वित्तीय प्रबंधन और विकास दर के मायने में बिहार पूरे देश में पिछले कई सालों से अव्वल रहा है. बिहार सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर सीआईआई यानी कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री ने भी मुहर लगाई है. 18 राज्यों की सूची में बिहार को पहला स्थान हासिल हुआ.
हालांकि अर्थशास्त्रियों का कहना है कि बिहार जैसे गरीब राज्यों को वित्तीय प्रबंधन से खुश होने की बजाय प्राथमिक क्षेत्रों, जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत है. अर्थशास्त्री मानते हैं कि फिसकल डेफिसिट इंडेक्स में अव्वल होने का मतलब यह है कि आपने उतना ही खर्च किया जितनी आमदनी थी.
सरकार ने प्राइमरी सेक्टर पर खर्च नहीं किया
अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर कहते हैं कि ऐसी आर्थिक स्थिति का एक दूसरा पक्ष ये है कि सरकार ने प्राइमरी सेक्टर जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में पर्याप्त खर्च नहीं किया, जिस कारण से राज्य में बदहाली है. दरअसल, सीआईआई द्वारा की गई फिस्कल परफॉर्मेंस इंडेक्स की गणना में बिहार पहले नंबर पर रहा. वित्तीय वर्ष 2004-05 से 2015-16 के बीच के आंकलन रिपोर्ट में बिहार को कुल 100 अंकों में 66.5 अंक मिले.
'नीतीश कुमार और सुशील मोदी के कारण हुआ संभव'
बिहार सरकार के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री विनोद नारायण झा ने कहा कि वित्तीय प्रबंधन के मामले में बिहार ने बेहतर प्रदर्शन किया और इसका पूरा श्रेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को दिया. लेकिन हाल ही के एक बयान में उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि पिछले सालों में हमें कम कर्ज मिला और 3% की बजाय 4% के जीएसडीपी दर पर बिहार को कर्ज दिये जाने की मांग की.
सरकार के पास नहीं है धन
सुशील मोदी के बयान का मतलब ये हुआ कि राज्य के पास विकास के लिए पर्याप्त धन नहीं है. धन के अभाव में सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च नहीं कर पा रही है. पिछले कुछ सालों में बिहार, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों में गरीबी बढ़ी है और सरकार ने गरीबी मिटाने के लिए जो प्रयास किए वह नाकाफी साबित हुआ है.