जाति जनगणना की नाव पर सवार होकर जनाधार तलाश रहा विपक्ष?

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Published : Aug 22, 2021, 7:07 PM IST

पटना

जातीय जनगणना (Caste Census) को लेकर बिहार में हो रही सियासत के बीच सोमवार को सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के साथ एक प्रतिनिधिमंडल पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से मुलाकात करेगा. लेकिन जातीय जनगणना को लेकर गणना का दायरा क्या है, पढ़ें ये रिपोर्ट..

पटना: जातीय जनगणना (Caste Census) को लेकर 23 अगस्त को क्या निर्णय होगा, ये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के साथ सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की मुलाकात के बाद ही तय होगा. तब पता चलेगा कि केंद्र सरकार (Central Government) जातीय जनगणना को लेकर क्या सोच रही है. हालांकि, केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर संसद में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय (Nityanand Rai) ने कह दिया था कि जातीय जनगणना नहीं होगी.

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इसे लेकर पीएम मोदी क्या सोचते हैं और बिहार में जिस तरीके से जाति आधार को लेकर सियासत में मुद्दा बनाया, उसमें क्या होता है यह 23 अगस्त की मुलाकात के बाद तय होगा. लेकिन जातीय जनगणना को लेकर जो सियासत बिहार में हुई उसने निश्चित तौर पर केंद्र सरकार के माथे पर इस आधार पर बल डाल दिया होगा कि विधानसभा (Assembly) और विधान परिषद (Legislative Assembly) से बिहार ने एक सुर में इसे पास कर दिया था कि जातीय जनगणना होनी चाहिए.

लालू यादव (Lalu Yadav) ने रैली निकालकर जातीय जनगणना हो इसके लिए गांधी मैदान में धरना तक दिया था. अब जाति की सियासत जब दिल्ली में इस आधार पर पहुंच गई है कि गणना होनी चाहिए कि नहीं, यह तय होगा और इसमें कुछ वक्त है. लेकिन, उससे पहले जो बिहार में हुआ उसने जाति को लेकर राजनीतिक दलों की छटपटाहट और जरूरत दोनों के पारे को आसमान पर चढ़ा दिया है.

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संसद और बिहार विधानसभा के मानसून सत्र (Monsoon Session) के बीच नित्यानंद राय द्वारा कहा गया कि केंद्र सरकार जातीय जनगणना नहीं कराएगी. उसके बाद बिहार में सियासी भूचाल आ गया. तरह-तरह के बयान आने शुरू हो गए और उसे लेकर राजनीतिक दलों के बीच खटास भी बढ़ने लगी. जो दूरी थी उसे कम करने के लिए विपक्ष ने भी पहल कर दी और मुख्यमंत्री से मिलकर अपना विरोध भी जता दिया.

नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के साथ सभी विपक्षी नेताओं ने नीतीश कुमार से मिलकर अपनी आपत्ति जताई. प्रधानमंत्री से मिलकर बिहार का पक्ष रखने की बात कही. नीतीश कुमार भी इस पर सहमत थे और उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री से इसके लिए समय मांगा जाएगा. वह समय 23 अगस्त को मिल गया. लेकिन, उससे पहले जो सियासत हुई उसने पूरे देश की राजनीति में बिहार में राजनीतिक दलों की जातीय लालच को साफ-साफ दिखा दिया.

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जातीय जनगणना हो, इसे लेकर सबसे ज्यादा मुखर राष्ट्रीय जनता दल (Rashtriya Janata Dal) था. तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) उसकी कमान संभाल ली थी. चाहे नीतीश कुमार से मिलने की बात हो या मीडिया में बयान देने की. कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई-एमएल के साथ ही जनता दल यूनाइटेड ने भी जातीय जनगणना के पक्ष में सुर में सुर मिलाया.

जातीय जनगणना का सियासी रंग कितना मजबूत है, उसका अंदाजा आप नेताओं के बयान लगा सकते हैं. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कह दिया था कि कुत्ते-बिल्ली की गिनती हो सकती है तो फिर आदमियों की क्यों नहीं की जा सकती है. विपक्ष की बात छोड़िए, बिहार की सत्ता पर काबिज बीजेपी (BJP) और जदयू (JDU) के बीच ही जातीय जनगणना को लेकर विवाद हो गया.

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श्रवण कुमार (Shravan Kumar) ने कह दिया कि बिहार सरकार अपने पैसे से जातीय जनगणना करवा सकती है. कभी बिहार के पर्यटन मंत्री रहे अब जदयू कोटे से सांसद सुनील कुमार पिंटू (Sunil Kumar Pintu) ने कह दिया कि नीतीश कुमार जातीय जनगणना बिहार में अपने पैसे से करवा देंगे. इस बात ने इतना भूचाल ले लिया कि सत्तापक्ष के नेता ही आपस में लड़ बैठे. बिहार प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल (Sanjay Jaiswal) ने कह दिया कि जातीय जनगणना का कोई फायदा ही नहीं है. अगर कोई फायदा है, तो बतायें कि आखिर जातीय जनगणना क्यों कराई जाए.

बात यहीं नहीं रुकी, बिहार का खजाना देख रहे उपमुख्यमंत्री और बीजेपी कोटे के तारकिशोर प्रसाद ने कह दिया कि जातीय जनगणना कराने के लिए बिहार के खजाने में पैसा ही नहीं है. हालांकि, इन तमाम चीजों के बीच जब इसकी सफाई की बारी आई तो नीतीश कुमार ने कह दिया कि हमने तो ये कहा ही नहीं कि बिहार जाति की गिनती करवा लेगा. पहले तो ये केंद्र का काम है, केंद्र को करवाना चाहिए. अगर केंद्र नहीं करवाएगा या उनकी नीतियों में इसकी गिनती कराने का कोई विकल्प नहीं होगा, तो बिहार इस पर विचार करेगा, लेकिन इसे लेकर बैठक होगी.

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जातीय जनगणना होगी, इसके लिए नीतियां क्या कहती हैं, संविधान में संरचना क्या हैं, केंद्र सरकार चाहती क्या हैं, राज्य सरकारों के संवैधानिक दायरे कहां तक हैं. उस दायरे में जातीय जनगणना की अहमियत कहां तक होगी, ये तमाम चीजें सरकारी हैं और भारतीय गणतंत्र की व्यवस्था के तहत हैं.

लेकिन, बिहार में सियासी दलों को जाति के आधार पर राजनीति करने और जाति से चीजें भटके और उसे पकड़ने के लिए जिस तरीके से इन राजनीतिक दलों के मुंह से लार टपकती है, उसने जातीय जनगणना को लेकर बिहार में हुई पिछले एक महीने की सियासत को उजागर कर दिया. अब देखना ये है कि प्रधानमंत्री से मुलाकात जातीय जनगणना को लेकर संविधान की सीमा और राज्यों के अपने अधिकार और गिनती को लेकर पार्टियों की तैयारी कौन से राजनीतिक नए रंग का आधार खड़ा करती है.

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