आशीर्वाद यात्रा के जरिये चाचा पशुपति पारस को संदेश में जुटे हैं चिराग पासवान

author img

By

Published : Jul 27, 2021, 5:43 PM IST

Chirag Paswan and Pashupati Paras

चिराग पासवान (Chirag Paswan) 30 जुलाई से गया से आशीर्वाद यात्रा के चौथे चरण की शुरुआत करने जा रहे हैं. राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ संजय कुमार का कहना है कि चिराग इस यात्रा के जरिये चाचा पशुपति पारस को संदेश देने में जुटे हैं कि पासवान वोट बैंक उनके साथ है.

पटना: लोजपा में टूट (LJP Split) के बाद चिराग पासवान (Chirag Paswan) इन दिनों अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत बचाने की कवायद में जुटे हैं. आशीर्वाद यात्रा के जरिये वह जनता के बीच जा रहे हैं. चिराग आशीर्वाद यात्रा के चौथे चरण की शुरुआत 30 जुलाई से गया से करने जा रहे हैं. इस चरण में वह गया, नवादा और नालंदा जिले का भ्रमण करेंगे.

यह भी पढ़ें- मैं जहां भी जा रहा हूं जनता का मिल रहा भरपूर सहयोग- चिराग

राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ संजय कुमार का कहना है कि चिराग पासवान आशीर्वाद यात्रा के जरिये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) या बीजेपी (BJP) को नहीं बल्कि वह अपने चाचा पशुपति पारस (Pashupati Paras) को यह बताना चाहते हैं कि पासवान जाति का वोट अभी भी उनके साथ है. वह यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि जनता की सहानुभूति और कार्यकर्ताओं का प्यार उनके साथ है.

देखें वीडियो

डॉ संजय कुमार ने कहा, 'चिराग अभी यह दिखा रहे हैं कि जनता उनके साथ है. वह बाद में तय करेंगे कि महागठबंधन के साथ जाना है या एनडीए (NDA) के साथ रहना है. पिछले साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले लड़कर उन्होंने देख लिया है. चिराग पासवान अपने चाचा पशुपति पारस और उनके गुट के सांसदों को यह बताने की कोशिश में हैं कि पिता की राजनीतिक विरासत उनके साथ है.'

"बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में लोजपा को करीब 6 फीसदी वोट मिले थे. अपनी यात्रा के जरिये चिराग पासवान वोट बैंक को अपने साथ एकजुट करने में जुटे हैं. हालांकि यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि चिराग अपनी कोशिश में कितना कामयाब होते हैं. अभी जो भीड़ चिराग के साथ दिख रही है वह वोट में तब्दील हो पाएगी, यह कहना मुश्किल है. चुनावी सभा और रोड शो की भीड़ वोट में बदले यह जरूरी नहीं."- डॉ संजय कुमार, राजनीतिक विशेषज्ञ

बता दें कि चिराग पासवान महागठबंधन और एनडीए को याद दिलाने की कोशिश में जुटे हैं कि जनता का प्रेम उनके साथ है. राजनीतिक विशेषज्ञ का मानना है कि भाजपा कभी नहीं चाहेगी कि चिराग पासवान महागठबंधन के साथ जाकर चुनाव लड़ें. क्योंकि भाजपा को भी पता है कि चिराग पासवान के साथ 6% पासवान वोटर भी जा सकते हैं. इधर महागठबंधन की तरफ से भी लगातार यह ऑफर दिया जा रहा है कि चिराग पासवान हमारे साथ चुनाव लड़ें.

बता दें कि 13 जून को छह सांसदों वाली पार्टी लोजपा के पांच सांसदों ने चिराग पासवान को अकेले छोड़कर अपनी राहें अलग कर ली थी. पशुपति पारस को नेता चुना गया था. पशुपति पारस को लोजपा के चार सांसदों (चौधरी महबूब अली कैसर, वीणा सिंह, चंदन सिंह और प्रिंस राज) का साथ मिला था. पिछले दिनों हुए मंत्रिमंडल विस्तार में पशुपति पारस को केंद्र की सरकार में मंत्री पद भी मिला था.

28 नवंबर 2000 को लोजपा बनी थी. स्थापना के 21 साल बाद पार्टी में टूट हुई थी. पार्टी में टूट के बाद से चिराग पासवान गुट और पशुपति पारस गुट के बीच रामविलास पासवान की सियासी विरासत को लेकर जंग चल रही है. पशुपति पारस ने पार्टी में टूट के लिए चिराग पासवान को जिम्मेदार बताया था. उन्होंने कहा था कि चिराग तानाशाही कर रहे थे. वहीं, चिराग पासवान ने चाचा पशुपति पारस पर पिता रामविलास पासवान की मौत के बाद धोखा देने का आरोप लगाया था.

यह भी पढ़ें- मुकेश सहनी की पार्टी में ही बगावत, बोले विधायक- सरकार में रहकर खिलाफत सही नहीं

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.