UP चुनाव से पहले बिहार की सियासत गर्म, जाति की राजनीति के भरोसे दम दिखाने की तैयारी में मांझी-सहनी

author img

By

Published : Jun 11, 2021, 11:13 PM IST

बिहार में जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी जातीय राजनीति के ऐसे दो नाम बन गए हैं जो नीतीश और लालू की राजनीति के बराबर जगह न बना पाए हों, लेकिन राजनीतिक चर्चा में इनके बयान नकारे भी नहीं जा रहे हैं. दोनों उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में लगे हैं.

पटना: 2022 में यूपी में होने वाली सत्ता के हुकूमत की जंग की तैयारी उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दल चाहे जैसे कर रहे हों, लेकिन बिहार में यूपी फतह को लेकर जातीय राजनीति की सियासत विकास के मुद्दे पर सवाल लेकर तैयार है.

यह भी पढ़ें- ​Pressure Politics in Bihar: एक नाव पर सवार मांझी-सहनी, डुबो सकते हैं UP में बीजेपी की नैया!

बात वर्तमान हालत पर ही की जाय तो बिहार में कोरोना भले ही जाति देखकर काम न कर रहा हो, लेकिन बिहार की राजनीति जाति से आगे जाकर विकास की राह पकड़ना ही नहीं चाह रही है. दरअसल 1989 में बिहार की राजनीति में जाति की राजनीति की ऐसी बयार तैयार हुई कि जब जाति की राजनीति को उकसाने का मन करे तेज तपिश के बयानों वाली सियासत शुरू हो जाती है. बिहार में HAM के मुखिया जीतन राम मांझी और VIP के मुकेश सहनी जातीय सियासत पर मुखर होकर बयान दे रहे हैं जो अब उनके सहयोगी दलों को नागवार लग रहा है.

jitan ram manjhi
जीतन राम मांझी

बिहार में हम सुप्रीमो जीतन राम मांझी और 'सन ऑफ मल्लाह' नाम से विख्यात मुकेश सहनी जातीय राजनीति के ऐसे दो नाम बन गए हैं जो नीतीश और लालू की राजनीति के बराबर जगह न बना पाए हों, लेकिन राजनीतिक चर्चा में इनके बयान नकारे भी नहीं जा रहे हैं. बिहार में जातीय राजनीति का ढांचा बदल रहा है. जिसे लालू ने हथियार बनाया नीतीश ने उसी से राज किया और अब जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी इसकी सियासत में लगे हैं.

बिहार में दलित राजनीति
इतिहास के पन्नों को पलटें तो बिहार देश का पहला राज्य बना जिसने जमींदारी उन्मूलन कानून पारित किया था. इसके बाद उम्मीद जगी थी कि बिहार में समाज के दबे-कुचले तबके की सामाजिक और आर्थिक तरक्की का रास्ता खुलेगा, लेकिन हालात नहीं बदलें. 60 के दशक के आखिर में भोला पासवान शास्त्री बिहार के मुख्यमंत्री बने, जो देश के पहले दलित मुख्यमंत्री थे. 1977 में बिहार के बाबू जगजीवन राम देश के उप-प्रधानमंत्री बने थे. फिर भी बिहार की अनुसूचित जाति के सामाजिक और आर्थिक हालात में न तो कोई सुधार आया है और न ही वे अपनी कोई सियासी पहचान बना सके.

Bhola paswan shashtri
भोला पासवान शास्त्री

फिलहाल, हाल के समय में मजदूरों की समस्या ने बिहार में दलित आंदोलन की एक नई संभावना जगाई है. जीतनराम मांझी ने करीब आठ महीने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए अपना सारा ध्यान इस बात पर रखा कि वह कैसे महादलित का चेहरा बन सकें. नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाकर एक बड़ा दलित गेम खेला था. लेकिन, जीतन राम मांझी बागी हो गए और अलग पार्टी भी बना ली. हम प्रमुख जीतन राम मांझी दलित वोट बैंक 22 फीसदी तक होने का दावा करते हैं. वह जाति की सियासत में बिहार के दूसरे दलों पर दबाव बना रहे हैं. यूपी और बिहार में जातीय समूह ताकतवर बनकर उभर रहे हैं. ये लोग अपनी जाति के साथ इस तरह गोलबंद हो रहे हैं कि अच्छा-खासा वोट काट लेते हैं. जाति की इसी राजनीति को यूपी में भजाने के लिए बिहार से गोलबंदी की जा रही है.

जाति की राजनीति वाली नई जमीन है यूपी-बिहार
यूपी-बिहार की जातियों की बात की जाय तो इसमें पहला- ब्राह्मण, क्षत्रिय, उच्च बनिया, कायस्थ को रखा जाय. ये वे जातियां हैं जो अमूमन अपनी जाति का उम्मीदवार रहती हैं. दूसरा- यादव, कुर्मी, लोध, कोइरी, जाटव, खटिक. इन जातियों को ओबीसी और एससी की सवर्ण जातियां कहा जा सकता है. इन जातियों के करीब 3 दशक तक सत्ता के करीब रहने के बाद अन्य ओबीसी व एससी-एसटी जातियों को इनसे जलन होने लगी है. तीसरा- इनमें निषाद, राजभर, काछी, केवट, बढ़ई, लोहार को रखा जा सकता है. इन्हें सपा, बसपा, राजद और जदयू ने प्रतिनिधित्व दिया था. ये अब खुद अपनी जाति वाला सीएम बनाने के सपने देख रहे हैं. ये अपने स्वतंत्र अस्तित्व वाले नेताओं के पीछे एकजुट हो रहे हैं. यही मांझी और सहनी के लिए सियासी खेती की उपजाउ जमीन दिख रही है.

बिहार के राजनीतिक दलों ने बंगाल में चुनाव लड़ने के लिए पूरे तौर पर मजमून तैयार कर लिया था. एनडीए गठबंधन के साथ हम, जदयू और वीआईपी भी बंगाल में दंगल की तैयारी में थे, लेकिन बीजेपी कोई जगह नहीं दिया. अब जब उत्तर प्रदेश की सियासत सत्ता के हुकूमत की जंग की तरफ बढ़ रही है ऐसे में जाति की राजनीति से सियासत में जगह बना चुने राजनीतिक दलों की महत्वाकांक्षा भी बढ़ने लगी है. मांझी और सहनी ने उत्तर प्रदेश चुनाव में उतरने की तैयारी में बयानों को अपना हथियार बना लिया है.

Mukesh sahni
मुकेश सहनी

सियासत पार्ट 2
यह बात चर्चा में भी है कि पश्चिम बंगाल की राजनीति में बिहार एनडीए का मजबूती से जाना तय माना जा रहा था. इस बात के भी कयास लगाए जा रहे थे कि बीजेपी नीतीश कुमार को पश्चिम बंगाल के चुनाव में जरूर ले जाएगी, लेकिन बदले राजनीतिक हालात में बिहार एनडीए के सहयोगी दल जदयू, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और वीआईपी को बीजेपी ने कोई जगह नहीं दी.

उत्तर प्रदेश का चुनाव देश की राजनीति पर असर डालता है. ऐसे में उत्तर प्रदेश का पड़ोसी राज्य होने के नाते बिहार के राजनीतिक दल इस बात को मानकर चल रहे हैं कि यूपी में उनकी सियासत का असर जरूर होगा. इसी चीज को लेकर अभी से एनडीए के घटक दलों ने दबाव बनाना शुरू कर दिया है. नीतीश कुमार के साथ दबाव वाली सियासत की कोई बात बीजेपी मानती है तो इसका फायदा उन राजनीतिक दलों को भी हो जाएगा जो राजनीति में जातीय गोलबंदी को अपनी-अपनी सियासत मानते हैं और अपनी जाति के वोट को कैडर वोट. यही बिहार एनडीए के विवाद का विषय भी है.

यूपी पंचायत चुनाव ने बदले हालात
उत्तर प्रदेश में हुए पंचायत चुनाव के जो परिणाम आए उसने उत्तर प्रदेश में चल रही योगी की सरकार की दिशा के विपरीत परिणाम दे दिया. पूर्वांचल में समाजवादी पार्टी को बीजेपी से ज्यादा सीटें मिली, जिसमें अखिलेश यादव की जाति सियासत रंग ले आई. पंचायत चुनाव के बाद बिहार के राजनीतिक दल जो जाति की सियासत करते हैं उन्हें भी यह लगने लगा कि उत्तर प्रदेश में सियासी किस्मत आजमाई जा सकती है. यही वजह है कि जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी उत्तर प्रदेश की सियासत में जाने को तैयार खड़े हैं.

Akhilesh yadav
अखिलेश यादव

इसके पीछे उनकी मंशा यही है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में भले उनका जमीन और जनाधार ना हो, लेकिन उनके पास खोने के लिए भी कुछ नहीं है. हालांकि पाने के लिए जाति का वह रंग जरूर है जो उत्तर प्रदेश में लगभग 16 फीसदी अति पिछड़ा और 14 फीसदी मल्लाह जाति का माना जाता है. इसमें कोई भी सेंधमारी जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी के लिए फायदा ही है.

2022 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसको लेकर सियासी कसरत शुरू हो गई है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 11 जून को देश के गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और उत्तर प्रदेश की राजनीति की जानकारी दी तो. वहीं, 11 जून को ही लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप ने मांझी से मुलाकात की. बिहार की राजनीति पर चर्चा की और उत्तर प्रदेश की सियासत पर नई तैयारी के साथ चलने की बात भी कह दी.

yogi adityanath
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ.

दरअसल बिहार की राजनीति में मांझी जिस तरीके से बदल रहे हैं. यह जो माझी का तेवर दिख रहा है उससे एक बात तो साफ है कि मांझी के राजनीतिक सफर का बदलता हुआ रूप कहां कैसा दिख जाए कहा नहीं जा सकता. बिहार में उत्तर प्रदेश की चुनाव वाली राजनीति ने अभी से जो असर दिखाना शुरू किया है उसका अंतिम परिणाम यूपी की सियासत में कोई बदलाव कर पाएगा यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन बिहार में सियासी बदलाव की कहानी लिख सकता है इसकी सियासी चर्चा जरूर जोरों से है.

यह भी पढ़ें- मांझी-तेज प्रताप की मुलाकात पर जदयू ने कहा- 'सियासी मायने निकालने की जरूरत नहीं'

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.