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Bihar Diwas 2022: 110 साल का बिहार, जानें महान शख्सियतों ने कैसे दिलाई प्रदेश को अलग पहचान

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Published : Mar 22, 2022, 2:23 PM IST

बिहार 22 मार्च यानी आज 110 वर्ष (Bihar Diwas Today) का हो गया. बिहार सरकार हर साल 22 मार्च को बिहार दिवस मनाती है. साल 1912 में बंगाल प्रोविंस से अलग होने के बाद बिहार अस्तित्व में आया और एक अलग स्वतंत्र राज्य बना. किन महापुरुषों ने बिहार को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई आगे पढ़ें..

Bihar Diwas Today
Bihar Diwas Today

पटना: बिहार आज 110 साल का हो चुका है और लंबी यात्रा के दौरान बिहार ने देश के विकास और सामाजिक आंदोलनों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. देश की हृदय स्थली बिहार सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलनों की धरती रही है. कई महापुरुषों और महान आत्माओं (Story Of Big Personalities Of Bihar) ने बिहार को कर्मस्थली बनाया और इनके कारण ही बिहार को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली.

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110 साल का बिहार: बिहार आंदोलनों की धरती रही है. बिहार की धरती से कई सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक आंदोलन हुए. भगवान राम से लेकर जयप्रकाश नारायण ने बिहार को अपनी कर्मस्थली बनाया था. आधुनिक भारत में बिहार का गठन 110 साल पहले हुआ था और बिहार आज की तारीख में कई मायनों में तरक्की के नए आयाम स्थापित कर रहा है.

गया में महात्मा बुद्ध ने की थी ज्ञान की प्राप्ति: बिहार अपनी काबिलियत श्रम शक्ति और लीडरशिप के लिए जाना जाता है. बिहार और बिहारी भारत ही नहीं पूरे देश में प्रसिद्ध हैं. कई महान हस्तियों ने बिहार को अपनी कर्मभूमि बनाया और उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली. सूची में पहला नाम महात्मा बुद्ध का है. महात्मा बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व शाहपुर इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय कुल में हुआ था. उनके पिता का नाम शुद्धोधन और माता का नाम महामाया देवी था. महात्मा बुद्ध ने पूरे विश्व को शांति और अहिंसा का संदेश दिया. बौद्ध धर्म को विश्व के कई देशों ने अपनाया. महात्मा बुद्ध को बिहार के गया में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.

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आर्यभट्ट ने किया शून्य का आविष्कार: आर्यभट्ट किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. प्राचीन समय के सबसे महान खगोल शास्त्रीय में इनकी गिनती होती है. विज्ञान और गणित के क्षेत्र में वैज्ञानिक उनसे प्रेरणा लेते हैं. आर्यभट्ट पहले व्यक्ति थे जिन्होंने बीज गणित का प्रयोग करते हुए शून्य का आविष्कार किया अपने खगोलीय खोजों के बाद उन्होंने यह घोषणा भी की कि पृथ्वी 365 दिन 6 घंटे 12 मिनट और 30 सेकेंड में सूर्य का एक चक्कर लगाती है. उनके इस खोज की देशभर में सराहना हुई और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता भी दी गई.

भगवान महावीर ने दिया अहिंसा का संदेश: भगवान महावीर भी धार्मिक आंदोलन के अहम कड़ी हैं. भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे. भगवान महावीर का जन्म ढाई हजार साल पहले यानी कि 599 ईसा पूर्व में वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुंडलपुर में हुआ था. राजा के घर में जन्‍म लेने के बावजूद उन्‍होंने सभी भोग-विलास का त्‍याग कर दिया. महज 30 वर्ष की आयु में ही वह समस्‍त मोह-माया को छोड़कर ज्ञान की खोज में निकल पड़े. 12 सालों की कठिन तपस्‍या के बाद उन्‍हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. दीक्षा लेने के बाद ही भगवान महावीर ने दिगंबर साधु की दिनचर्या को आत्‍मसात् किया. जैन धर्म के पांच सिद्धांतों में अहिंसा सबसे मौलिक है. भगवान महावीर ने कहा, “अहिंसा परमो धर्मः” जैन धर्म ने पंचशील सिद्धांत बताए, ये हैं – अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य.

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बिहार सम्राट अशोक की कर्मस्थली: चक्रवर्ती राजा सम्राट अशोक ने बिहार को अपनी कर्मभूमि बनाया था. सम्राट अशोक की गिनती उन महान शासकों में होती है जिनका शासन विश्व के ज्यादातर हिस्सों में था. सम्राट अशोक को धर्म सहिष्णु शासक कहा जाता है. सम्राट अशोक का शासन 273 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक रहा. सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को राजकीय धर्म बनाया.

चाणक्य नीति से पूरी दुनिया हुई प्रभावित: चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य के ब्राह्मण मंत्री थे. चाणक्य को कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है. उनके प्रयासों से ही नंद वंश का नाश हुआ और चंद्रगुप्त मौर्य राजा बने. चाणक्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति और अर्थनीति का महान ग्रंथ है. अर्थशास्त्र को इतिहासकार मार्ग कालीन समाज का दर्पण भी मानते हैं.

भक्ति और शक्ति के अद्वितीय संगम थे गुरु गोविंद सिंह : सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह का जन्म राजधानी पटना में हुआ था. गुरु गोविंद सिंह बड़े योद्धा थे. वे अपने पिता गुरु तेग बहादुर के उत्तराधिकारी बने. सिर्फ नौ वर्ष की आयु में सिखों का नेता बनने का उन्हें गौरव प्राप्त हुआ. वे अंतिम सिख गुरु बने रहे. अपनी वीरता से उन्होंने मुगलों के दांत खट्टे किए. गुरु गोविन्द सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिन्तक और संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे. उन्होंने स्वयं कई ग्रन्थों की रचना की. वे विद्वानों के संरक्षक थे. उनके दरबार में 52 कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था. वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे.

स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति: स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति बनने का गौरव डॉ राजेंद्र प्रसाद को प्राप्त हुआ. डॉ राजेंद्र प्रसाद छपरा के जीरादेई के रहने वाले थे. राजेंद्र प्रसाद की भूमिका स्वतंत्रता आंदोलन में अहम रही और वह कांग्रेस के कई अहम पदों पर रहे. राजेंद्र बाबू व देश रत्न के नाम से मशहूर डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे. 26 जनवरी 1950 को वे देश के पहले राष्ट्रपति चुने गए थे और साल 1957 में जब दूसरी बार राष्ट्रपति के चुनाव हुए, उन्हें तब दोबारा राष्ट्रपति बनाया गया था.

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लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने लाया था बदलाव: देश के स्वतंत्रता आंदोलन में जयप्रकाश नारायण ने अहम भूमिका निभायी थी. लंबे समय तक वह हजारीबाग जेल में बंद रहे. स्वतंत्रता के बाद भी उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना आंदोलन जारी रखा. जेपी के आंदोलन की वजह से ही केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार गिरी थी. भ्रष्टाचार को लेकर जेपी ने राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ा था. बता दें कि जेपी वो इंसान थे, जिन्होंने व्यवस्था परिवर्तन के लिए संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था. आंदोलन अपने शबाब पर था, तभी जेपी को गिरफ्तार कर लिया गया. इसका परिणाम यह हुआ कि जैसा सोचा गया था, वैसी परिणति सामने नहीं आ पाई. बिहार के सिताब दियारा में जन्मे जयप्रकाश नारायण ऐसे शख्स के रूप में उभरे, जिन्होंने पूरे देश में आंदोलन की लौ जलाई. जेपी के विचार दर्शन और व्यक्तित्व ने पूरे जनमानस को प्रभावित किया. लोकनायक शब्द को जेपी ने चरितार्थ भी किया और संपूर्ण क्रांति का नारा भी दिया. 5 जून 1974 को विशाल सभा में पहली बार जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था.

3 सालों के बाद बिहार दिवस का आयोजन: बात दें कि 22 मार्च 1912 में संयुक्त प्रांत से अलग होकर बिहार स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में आया था और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब 2005 में बिहार की सत्ता संभाली तब उन्होंने बिहार दिवस मनाने का फैसला लिया और उसके बाद लगातार यह कार्यक्रम हो रहा है. इस बार प्रदेश में 3 सालों के बाद बिहार दिवस का आयोजन हो रहा है. इससे पहले 2018 में बिहार दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, लेकिन 2019 में लोकसभा चुनाव की आचार संहिता के कारण कार्यक्रम का आयोजन नहीं हो पाया था. वहीं, 2020 में कोरोना की शुरूआत हो गई थी, इस वजह से आयोजन नहीं हो पाया था. वहीं, 2021 में कोरोना की स्थिति बेहद गंभीर थी. इस बार आयोजन का जिम्मा शिक्षा विभाग को मिला है.


जानें क्यों मनाते हैं बिहार दिवस: बता दें कि 22 मार्च बिहार के लिए काफी खास होता है. इसी दिन को बिहार दिवस के रूप में मनाते हैं. 22 मार्च 1912 में संयुक्त प्रांत से अलग होकर बिहार स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आया था. 2005 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब बिहार में सत्ता संभाली तो उन्होंने 22 मार्च को बिहार दिवस मनाने का ऐलान किया. इसका मुख्य मकसद राज्य की विशिष्टताओं की दुनियाभर में ब्रांडिंग और बिहारी होने पर गर्व करने के लिए था.

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