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गजबे है बिहार! पहले रेलवे इंजन फिर पुल.. और अब पूरा सरकारी अस्पताल ही बेच डाला

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Published : Apr 21, 2022, 4:45 PM IST

Updated : Apr 21, 2022, 6:41 PM IST

पूर्णिया में रेलवे इंजन और उसके बाद रोहतास में 60 फीट लंबा पुल बेचने की घटना ने सबको चौंका दिया था लेकिन मुजफ्फरपुर (scam in Muzaffarpur) से जो खबर सामने आई है, उसने सभी को हैरानी में डाल दिया है. दरअसल यहां एक सरकारी अस्पताल को ही बेच दिया (Sold the hospital in Bihar) गया है. इस खबर के सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया है. पढ़ें पूरी खबर..

swasthya upkendra of Jamharua Panchayat sold
swasthya upkendra of Jamharua Panchayat sold

मुजफ्फरपुर: बिहार में घोटालेबाज स्कैम (scam in bihar) करने के लिए एक से बढ़कर एक तरीके अपनाते हैं. इन तरीकों और कारनामों के कारण बिहार को लगातार फजीहत झेलनी पड़ती है. ऐसा ही एक और मामला मुजफ्फरपुर से सामने आया है. यहां उस सरकारी अस्पताल को ही बेच दिया (Sold the government hospital in Muzaffarpur) गया, जहां गरीबों और लाचारों का इलाज होता है. मामला मुजफ्फरपुर के कुढ़नी प्रखंड (Kudhani Block) की जम्हरूआ पंचायत में बने स्वास्थ्य उपकेंद्र (Swasthya Upkendra of Jamharua Panchayat) का है.

पढ़ें: OMG! बिहार में 60 फीट लंबा लोहे का पुल चोरी, गैस कटर से काटा.. गाड़ी पर लादकर ले गए

अब सरकारी अस्पताल को ही बेच डाला: बिहार में अगर सिर्फ इस साल हुए बड़े घोटालों की बात करें तो आपके जहन में पूर्णिया और रोहतास की तस्वीरें आएंगी, क्योंकि ये दोनों घोटाले सरकार के लिए किसी सरप्राइज से कम नहीं थे. पूर्णिया में पहले पूरे रेलवे इंजन को बेचने का मामला सामने आया. उसके कुछ ही दिनों के बाद रोहतास से पुल को बेचने की बात ने सबको चौंका दिया. अब मुजफ्फरपुर जिले से एक सरकारी अस्पताल को ही बेचने का मामला सामने आया है. इस केस के सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी परेशान हैं और जांच कराने की बात कह रहे हैं.

जमाबंदी के दौरान मामला आया सामने: कहा जा रहा है कि जिले में वह जमीन बेच दी गई, जिसपर साढ़े चार दशक से स्वास्थ्य उपकेंद्र चल रहा था. जमीन की जमाबंदी के समय यह पकड़ में आया है. अंचल अधिकारी (सीओ) ने अस्पताल बेचे जाने की पुष्टि करते हुए फिलहाल जमाबंदी पर रोक लगा दी है. वहीं, पंचायत के मुखिया ने भी मामले को जिलाधिकारी के यहां पहुंचाया है. अपर समाहर्ता के स्तर से इसकी जांच होनी है.

1975 में हुआ था स्वास्थ्य उपकेंद्र का निर्माण: कुढ़नी प्रखंड की जम्हरूआ पंचायत के मुरौल गांव में वर्ष 1975 में स्वास्थ्य उपकेंद्र का निर्माण कराने के लिए सरकार को करीब एक एकड़ जमीन गोपाल शरण स‍िंह ने दान दी थी. इसके कुछ हिस्से पर स्वास्थ्य उपकेंद्र का निर्माण किया गया. यह दान मौखिक या दस्तावेजी था, इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है. जिस जमीन पर यह केंद्र चल रहा है, उसकी 36 डिसमिल की बिक्री इस साल फरवरी में कर दी गई. खरीदने वाले जमीन के साथ स्वास्थ्य उपकेंद्र पर कब्जा करना चाह रहे हैं. इस कड़ी में जमीन की जमाबंदी का आवेदन दिया गया. कुढ़नी सीओ ने इसकी जांच अमीन से कराई तो वहां स्वास्थ्य उपकेंद्र निकला, जबकि निबंधन के कागजात में इसका कोई जिक्र नहीं है. जमीन की किस्म आवासीय जरूर बताई गई है. वैशाली जिले के महुआ के सत्येंद्र कुमार सिंह का नाम बेचने वाले की जगह है, जबकि खरीदने वालों में जम्हरूआ के अरुण यादव, जूही कुमारी, पवन साह व टुनटुन कुमार हैं.

नहीं करायी गयी थी जमीन की जमाबंदी: वर्ष 1975 के बाद से स्वास्थ्य विभाग ने जमीन की जमाबंदी क्यों नहीं कराई, जमीन पर किस आधार पर स्वास्थ्य उपकेंद्र का निर्माण कराया गया, क्या इस संबंध में विभाग के पास कोई दस्तावेज थी? अब पीएचसी प्रभारी सीओ से इस संंबंध में कागजात की मांग कर रहे हैं. अंचल में इससे संबंधित कोई अभिलेख नहीं है. सवाल यह भी उठ रहा कि दस्तावेज गायब तो नहीं करा दी गई.

सवालों के घेरे में निबंधन विभाग के कर्मी: नियमानुसार रजिस्ट्री से पहले निबंधन विभाग जमीन की किस्म की जांच कराता है. जमीन पर स्वास्थ्य उपकेंद्र होने के बाद भी इसपर कोई निर्माण का जिक्र जांच रिपोर्ट में नहीं है. निबंधन विभाग के कर्मी इससे सवाल के घेरे में हैं. जमीन की जांच करने वालों ने इसकी रिपोर्ट क्यों नहीं की? कुढ़नी के अंचलाधिकारी पंकज कुमार ने कहा कि जिनके नाम की जमीन पर स्वास्थ्य उपकेंद्र बनाया गया था, उनकी कोई संतान नहीं थी. उनका निधन हो चुका है. यह जांच की जा रही है कि जमीन बेचने वाले का उनसे क्या संबंध है. वरीय पदाधिकारियों को इसकी सूचना दी जा रही है.

जम्हरूआ पंचायत के मुखिया ने किया ये खुलासा: वहीं इस बारे में जब जम्हरूआ पंचायत के मुखिया से फोन पर बात की गयी तो उन्होंने पूरे मामले की हकीकत बयां की. उन्होंने बताया कि 1974 में सीताराम साहू मुखिया थे और सागर सिंह उप मुखिया थे. 1975 में अस्पताल के लिए जमीन दी गयी थी. मुखिया जी गांव में बैठक किए और कहे कि चंदा वसूल करके जमीन वाला से जमीन खरीदा जाए. उस समय गांववालों ने 1800 रुपये चंदा जमा किया. अठारह सौ रुपये में अपने दोनों बेटों के नाम पर जमीन खरीद लिए और जो नहीं खरीद सके उसमें अस्पताल बनवा दिए. तीन रूम बना. जमीन का मालिक यहां नहीं बाहर रहता था. जमीन के मालिक को पता चला तो वो आए. जिस जमीन पर कब्जा था उसको छोड़ दिया. बाद बाकी पर रोक लगा दिए. उसपर रोक ही लगा रह गया. उस समय से जमीन ऐसे ही रह गया.

"वही जमीन में से सागर सिंह भी लिखवाए तो दाखिल खारिज सब क्लियर हो गया. लेकिन अस्पताल का जमीन नहीं लिखवाया गया तो वो वैसे ही रह गया. डोनेशन का कोई दस्तावेज भी नहीं है. चार लोग मिलकर अपने नाम जमीन करवा लिए. हमने कहा तो बोले कि हॉस्पिटल जितना दूर बनेगा उतने दूर की जमीन को दान कर दिया जाएगा. जमीन मालिक ने जमीन किसी और को दे दिया. इस बीच जिन लोगों ने जमीन खरीदी वो इसकी खरीद बिक्री कर रहे हैं."- जम्हरूआ पंचायत के मुखिया

पढ़ें- बिहार में गजब घोटाला : रेलवे का इंजीनियर 'नटवर लाल', बेच दिया ट्रेन का इंजन

बिहार में गजब घोटाला, बेचा था रेलवे इंजन : बता दें कि पूर्णिया में समस्तीपुर लोको डीजल शेड (Samastipur Loco Diesel Shed) के इंजीनियर द्वारा पूर्णिया रेलवे कोर्ट स्टेशन के पास रखे एक पुराने वाष्प इंजन को बेचने (Railway Engineer Sold Rail Engine In Purnea) का मामला सामने आया था. जहां इंजीनियर ने एक पुराना इंजन स्क्रैप माफिया के हाथ बेच दिया. बाद में एक सिपाही की शिकायत पर रेलवे पुलिस की जांच में इस मामले का खुलासा हुआ था. इंजीनियर का नाम राजीव रंजन झा है, जिसने डीएमई का फर्जी कार्यालय आदेश जारी कर वर्षों से खड़ी छोटी लाइन का पुराना इंजन स्क्रैप माफिया के हाथ बेच दिया.

मामला उजागर नहीं हो सके, इसके लिए डीजल शेड पोस्ट पर कार्यरत एक दारोगा को भी इंजीनियर ने इस काम में मिला लिया. वहीं इस मामले की जानकारी पूर्णिया कोर्ट स्टेशन पर काम कर रहे कर्मचारी और सहायक स्टेशन मास्टर ने आरपीएफ को दी. जिसके बाद जांच पड़ताल शुरू की गई और पूरे मामले का खुलासा हो गया. पुलिस ने बड़ी कार्रवाई करते हुए सिंचाई विभाग के एसडीओ समेत चोरी की घटना में शामिल 8 अपराधियों को गिरफ्तार किया था .

रोहतास से लोहे का पुल हुआ था गायब: रोहतास में चोरों ने 60 फीट लंबा और 20 टन वजनी लोहे का पुल चोरी (60 Feet Long Bridge Theft in Rohtas) कर लिया था. सबसे बड़ी बात यह कि चोरों ने इस हैरतअंगेज चोरी की वारदात को दिनदहाड़े अंजाम दिया. लेकिन स्‍थानीय अधिकारियों को इसकी भनक तक नहीं लगी. पुल चोरी की घटना जिले के नासरीगंज थाना क्षेत्र के अमियावर की थी. बताया जाता है कि कुछ लोग खुद को सिंचाई विभाग का अधिकारी बताकर आए और नहर पर बने लोहे के पुराने पुल को काटना व उखाड़ना शुरू कर दिया. चोरों ने पुल को गैस कटर से काट दिया. जेसीबी से उसे उखाड़ कर गाड़ी पर लादा और आराम से चलते बने. इस दौरान आसपास के लोगों ने सवाल पूछा तो उन्होंने खुद को सिंचाई विभाग का अफसर बताया. बाद में पता चला कि वे सिंचाई विभाग के अधिकारी नहीं, बल्कि शातिर चोर थे. हकीकत जानकर जहां ग्रामीण भी हैरत में पड़ गए तो दूसरी तरफ स्‍थानीय प्रशासन में भी पुल चोरी होने की घटना से खलबली मच गई. बता दें कि इस पुल का इस्‍तेमाल नहीं हो रहा था.

पढ़ें- रोहतास में पुल चोरी मामला: सिंचाई विभाग का SDO और RJD नेता समेत 8 गिरफ्तार

तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर सरकार पर बोला था हमला: तेजस्वी ने पुल चोरी होने के मामले को लेकर सरकार पर हमला बोला था. उन्होंने कहा कि, चोर गैस कटर, जेसीबी और सैकड़ों मजदूर के साथ आए और पुल को उठा ले गए. चोर जनादेश चोरी से बनी एनडीए की सरकार से प्रेरित है. जब बीजेपी और नीतीश जी बिहार में सरकार चुरा सकते हैं तो पुल क्या है? तेजस्वी यादव के ट्वीट से सरकार की किरकिरी होने से रोहतास एसपी ने एक्शन में आ गए हैं. उन्होंने घटना स्थल पर पहुंचकर और मामले की जांच शुरू कर दी थी.

पढ़ें- रोहतास में पुल की चोरी: तेजस्वी के ट्वीट के बाद एक्शन में आयी पुलिस, SP ने कहा- चोरों को जल्द पकड़ लेंगे

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मुजफ्फरपुर: बिहार में घोटालेबाज स्कैम (scam in bihar) करने के लिए एक से बढ़कर एक तरीके अपनाते हैं. इन तरीकों और कारनामों के कारण बिहार को लगातार फजीहत झेलनी पड़ती है. ऐसा ही एक और मामला मुजफ्फरपुर से सामने आया है. यहां उस सरकारी अस्पताल को ही बेच दिया (Sold the government hospital in Muzaffarpur) गया, जहां गरीबों और लाचारों का इलाज होता है. मामला मुजफ्फरपुर के कुढ़नी प्रखंड (Kudhani Block) की जम्हरूआ पंचायत में बने स्वास्थ्य उपकेंद्र (Swasthya Upkendra of Jamharua Panchayat) का है.

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अब सरकारी अस्पताल को ही बेच डाला: बिहार में अगर सिर्फ इस साल हुए बड़े घोटालों की बात करें तो आपके जहन में पूर्णिया और रोहतास की तस्वीरें आएंगी, क्योंकि ये दोनों घोटाले सरकार के लिए किसी सरप्राइज से कम नहीं थे. पूर्णिया में पहले पूरे रेलवे इंजन को बेचने का मामला सामने आया. उसके कुछ ही दिनों के बाद रोहतास से पुल को बेचने की बात ने सबको चौंका दिया. अब मुजफ्फरपुर जिले से एक सरकारी अस्पताल को ही बेचने का मामला सामने आया है. इस केस के सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी परेशान हैं और जांच कराने की बात कह रहे हैं.

जमाबंदी के दौरान मामला आया सामने: कहा जा रहा है कि जिले में वह जमीन बेच दी गई, जिसपर साढ़े चार दशक से स्वास्थ्य उपकेंद्र चल रहा था. जमीन की जमाबंदी के समय यह पकड़ में आया है. अंचल अधिकारी (सीओ) ने अस्पताल बेचे जाने की पुष्टि करते हुए फिलहाल जमाबंदी पर रोक लगा दी है. वहीं, पंचायत के मुखिया ने भी मामले को जिलाधिकारी के यहां पहुंचाया है. अपर समाहर्ता के स्तर से इसकी जांच होनी है.

1975 में हुआ था स्वास्थ्य उपकेंद्र का निर्माण: कुढ़नी प्रखंड की जम्हरूआ पंचायत के मुरौल गांव में वर्ष 1975 में स्वास्थ्य उपकेंद्र का निर्माण कराने के लिए सरकार को करीब एक एकड़ जमीन गोपाल शरण स‍िंह ने दान दी थी. इसके कुछ हिस्से पर स्वास्थ्य उपकेंद्र का निर्माण किया गया. यह दान मौखिक या दस्तावेजी था, इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है. जिस जमीन पर यह केंद्र चल रहा है, उसकी 36 डिसमिल की बिक्री इस साल फरवरी में कर दी गई. खरीदने वाले जमीन के साथ स्वास्थ्य उपकेंद्र पर कब्जा करना चाह रहे हैं. इस कड़ी में जमीन की जमाबंदी का आवेदन दिया गया. कुढ़नी सीओ ने इसकी जांच अमीन से कराई तो वहां स्वास्थ्य उपकेंद्र निकला, जबकि निबंधन के कागजात में इसका कोई जिक्र नहीं है. जमीन की किस्म आवासीय जरूर बताई गई है. वैशाली जिले के महुआ के सत्येंद्र कुमार सिंह का नाम बेचने वाले की जगह है, जबकि खरीदने वालों में जम्हरूआ के अरुण यादव, जूही कुमारी, पवन साह व टुनटुन कुमार हैं.

नहीं करायी गयी थी जमीन की जमाबंदी: वर्ष 1975 के बाद से स्वास्थ्य विभाग ने जमीन की जमाबंदी क्यों नहीं कराई, जमीन पर किस आधार पर स्वास्थ्य उपकेंद्र का निर्माण कराया गया, क्या इस संबंध में विभाग के पास कोई दस्तावेज थी? अब पीएचसी प्रभारी सीओ से इस संंबंध में कागजात की मांग कर रहे हैं. अंचल में इससे संबंधित कोई अभिलेख नहीं है. सवाल यह भी उठ रहा कि दस्तावेज गायब तो नहीं करा दी गई.

सवालों के घेरे में निबंधन विभाग के कर्मी: नियमानुसार रजिस्ट्री से पहले निबंधन विभाग जमीन की किस्म की जांच कराता है. जमीन पर स्वास्थ्य उपकेंद्र होने के बाद भी इसपर कोई निर्माण का जिक्र जांच रिपोर्ट में नहीं है. निबंधन विभाग के कर्मी इससे सवाल के घेरे में हैं. जमीन की जांच करने वालों ने इसकी रिपोर्ट क्यों नहीं की? कुढ़नी के अंचलाधिकारी पंकज कुमार ने कहा कि जिनके नाम की जमीन पर स्वास्थ्य उपकेंद्र बनाया गया था, उनकी कोई संतान नहीं थी. उनका निधन हो चुका है. यह जांच की जा रही है कि जमीन बेचने वाले का उनसे क्या संबंध है. वरीय पदाधिकारियों को इसकी सूचना दी जा रही है.

जम्हरूआ पंचायत के मुखिया ने किया ये खुलासा: वहीं इस बारे में जब जम्हरूआ पंचायत के मुखिया से फोन पर बात की गयी तो उन्होंने पूरे मामले की हकीकत बयां की. उन्होंने बताया कि 1974 में सीताराम साहू मुखिया थे और सागर सिंह उप मुखिया थे. 1975 में अस्पताल के लिए जमीन दी गयी थी. मुखिया जी गांव में बैठक किए और कहे कि चंदा वसूल करके जमीन वाला से जमीन खरीदा जाए. उस समय गांववालों ने 1800 रुपये चंदा जमा किया. अठारह सौ रुपये में अपने दोनों बेटों के नाम पर जमीन खरीद लिए और जो नहीं खरीद सके उसमें अस्पताल बनवा दिए. तीन रूम बना. जमीन का मालिक यहां नहीं बाहर रहता था. जमीन के मालिक को पता चला तो वो आए. जिस जमीन पर कब्जा था उसको छोड़ दिया. बाद बाकी पर रोक लगा दिए. उसपर रोक ही लगा रह गया. उस समय से जमीन ऐसे ही रह गया.

"वही जमीन में से सागर सिंह भी लिखवाए तो दाखिल खारिज सब क्लियर हो गया. लेकिन अस्पताल का जमीन नहीं लिखवाया गया तो वो वैसे ही रह गया. डोनेशन का कोई दस्तावेज भी नहीं है. चार लोग मिलकर अपने नाम जमीन करवा लिए. हमने कहा तो बोले कि हॉस्पिटल जितना दूर बनेगा उतने दूर की जमीन को दान कर दिया जाएगा. जमीन मालिक ने जमीन किसी और को दे दिया. इस बीच जिन लोगों ने जमीन खरीदी वो इसकी खरीद बिक्री कर रहे हैं."- जम्हरूआ पंचायत के मुखिया

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बिहार में गजब घोटाला, बेचा था रेलवे इंजन : बता दें कि पूर्णिया में समस्तीपुर लोको डीजल शेड (Samastipur Loco Diesel Shed) के इंजीनियर द्वारा पूर्णिया रेलवे कोर्ट स्टेशन के पास रखे एक पुराने वाष्प इंजन को बेचने (Railway Engineer Sold Rail Engine In Purnea) का मामला सामने आया था. जहां इंजीनियर ने एक पुराना इंजन स्क्रैप माफिया के हाथ बेच दिया. बाद में एक सिपाही की शिकायत पर रेलवे पुलिस की जांच में इस मामले का खुलासा हुआ था. इंजीनियर का नाम राजीव रंजन झा है, जिसने डीएमई का फर्जी कार्यालय आदेश जारी कर वर्षों से खड़ी छोटी लाइन का पुराना इंजन स्क्रैप माफिया के हाथ बेच दिया.

मामला उजागर नहीं हो सके, इसके लिए डीजल शेड पोस्ट पर कार्यरत एक दारोगा को भी इंजीनियर ने इस काम में मिला लिया. वहीं इस मामले की जानकारी पूर्णिया कोर्ट स्टेशन पर काम कर रहे कर्मचारी और सहायक स्टेशन मास्टर ने आरपीएफ को दी. जिसके बाद जांच पड़ताल शुरू की गई और पूरे मामले का खुलासा हो गया. पुलिस ने बड़ी कार्रवाई करते हुए सिंचाई विभाग के एसडीओ समेत चोरी की घटना में शामिल 8 अपराधियों को गिरफ्तार किया था .

रोहतास से लोहे का पुल हुआ था गायब: रोहतास में चोरों ने 60 फीट लंबा और 20 टन वजनी लोहे का पुल चोरी (60 Feet Long Bridge Theft in Rohtas) कर लिया था. सबसे बड़ी बात यह कि चोरों ने इस हैरतअंगेज चोरी की वारदात को दिनदहाड़े अंजाम दिया. लेकिन स्‍थानीय अधिकारियों को इसकी भनक तक नहीं लगी. पुल चोरी की घटना जिले के नासरीगंज थाना क्षेत्र के अमियावर की थी. बताया जाता है कि कुछ लोग खुद को सिंचाई विभाग का अधिकारी बताकर आए और नहर पर बने लोहे के पुराने पुल को काटना व उखाड़ना शुरू कर दिया. चोरों ने पुल को गैस कटर से काट दिया. जेसीबी से उसे उखाड़ कर गाड़ी पर लादा और आराम से चलते बने. इस दौरान आसपास के लोगों ने सवाल पूछा तो उन्होंने खुद को सिंचाई विभाग का अफसर बताया. बाद में पता चला कि वे सिंचाई विभाग के अधिकारी नहीं, बल्कि शातिर चोर थे. हकीकत जानकर जहां ग्रामीण भी हैरत में पड़ गए तो दूसरी तरफ स्‍थानीय प्रशासन में भी पुल चोरी होने की घटना से खलबली मच गई. बता दें कि इस पुल का इस्‍तेमाल नहीं हो रहा था.

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तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर सरकार पर बोला था हमला: तेजस्वी ने पुल चोरी होने के मामले को लेकर सरकार पर हमला बोला था. उन्होंने कहा कि, चोर गैस कटर, जेसीबी और सैकड़ों मजदूर के साथ आए और पुल को उठा ले गए. चोर जनादेश चोरी से बनी एनडीए की सरकार से प्रेरित है. जब बीजेपी और नीतीश जी बिहार में सरकार चुरा सकते हैं तो पुल क्या है? तेजस्वी यादव के ट्वीट से सरकार की किरकिरी होने से रोहतास एसपी ने एक्शन में आ गए हैं. उन्होंने घटना स्थल पर पहुंचकर और मामले की जांच शुरू कर दी थी.

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Last Updated : Apr 21, 2022, 6:41 PM IST
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