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जमीनी हकीकत: योजनाओं के बावजूद नहीं सुधरी किसानों की हालत

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Published : Jun 8, 2020, 5:23 PM IST

Updated : Jun 8, 2020, 6:51 PM IST

सरकारों के दावों से उलट जमीनी हकीकत किसानों की दुर्दशा बयां कर रही है. प्रधानमंत्री किसान निधि सम्मान योजना के बावजूद देश के किसान महाजनों से कर्ज लेकर खेती करने को मजबूर है. किसानों के हालात बद से बदतर होते सरकारी दावों का खोखलापन बयां करते हैं.

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मधुबनी: भारत एक कृषि प्रधान देश है. देश की 80 फीसदी आम नागरिक इसी कृषि पर निर्भर है. कई आम नागरिकों का जीवन-यापन खेती से चलता है. लेकिन जिले में सरकार की तरफ से किसानों को किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं मिल पाई है. भले ही राज्य और केंद्र सरकारें कई दावे करती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान करती है.

महाजनों से कर्ज लेकर खेती कर रहे किसान
जिले के किसानों का कहना है कि प्रधानमंत्री किसान निधि सम्मान योजना के तहत आवेदन के बाद भी कोई सहायता नहीं मिली. ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाए भी 8 महीने का वक्त बीत गया, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है. महाजनों से कर्ज लेकर कई सालों से खेती करते हैं और फिर जब फसल उपजती है तो महाजनों का कर्ज चुका देते हैं. तकरीबन दो एकड़ हिस्से की जमीन में पहले गेंहू की खेती की और अब धान की खेती के लिये खेत में हल चला रहे हैं.

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खेती करता किसान

किसान निधि सम्मान योजना कागजों पर सिमटी
सरकार के कृषि विभाग के आलाधिकारी किसानों के बेनीफिट के लिये काफी मशक्कत कर रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद किसानों तक किसी प्रकार का कोई फायदा नहीं पहुंच रहा. किसान निधि सम्मान योजना से हर रजिस्टर्ड किसान को 6 हजार रुपये देने हैं. लेकिन वो भी सिर्फ शायद कागजी पन्नों पर ही सिमट कर दम तोड़ रहा है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

कठिन हालातों में किसान चला रहे अपनी जीविका
सरकारों के दावों से उलट जमीनी हकीकत किसानों की दुर्दशा बयां कर रही है. कई योजनाओं के बावजूद देश के किसान महाजनों से कर्ज लेकर खेती करने को मजबूर हैं. इन कठिन हालातों में किसान अपनी जीविका चला रहे हैं और आज भी जीने को विवश हैं. किसानों के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. यह सरकारी दावों के खोखलेपन को बयां करता है.

Last Updated :Jun 8, 2020, 6:51 PM IST
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