जमुई: जिले के लक्ष्मीपुर प्रखंड के मटिया गौरा नजारी दिघरा सहित कई पंचायतों में कैंसर ने महामारी का रूप ले लिया है. विभागीय और प्रशासनिक तौर पर क्षेत्र के लिए कोई मदद भी नहीं हुई है. इस इलाके में रोजाना नए रोगियों की पहचान हो रही है. पिछले 2 साल में ही इन प्रखंड क्षेत्र में 30 लोगों की कैंसर से मौत हो चुकी है और सरकार अब भी मौन बनी हुई है.
ग्रामीणों का छलका दर्द
ये क्षेत्र में पहले भी सुर्खियों में था. मगर तब इस वक्त जैसी दहशत नहीं थी. किसी तरह घर बार बेचकर इलाज कराने के बाद जो मौत से बच गए हैं, उनकी जिंदगी भी दुश्वार हो गई है. ईटीवी भारत की टीम जब कैंसर से प्रभावित लक्ष्मीपुर प्रखंड स्थित दिघरा, मटिया गांव का हाल जानने पहुंची तो ग्रामीणों का दर्द छलक पड़ा. इलाके के कई लोगों की आर्थिक और शारिरिक परिस्थितियों को खस्ताहाल कर दिया है.
आवेदन के बाद भी नहीं मिली मदद
दिघरा गांव के छोटे से किराना व्यवसाई पवन दास को मुंह का कैंसर था. उसने अपने इलाज के लिए पटना से लेकर मुंबई तक का सफर तय किया. कई बार ऑपरेशन कराया गया. अपने इलाज में पवन ने अपनी जमा पूंजी से लेकर पत्नी के जेवर और घर के बर्तन तक बेच डाले. शुरुआती दौर में कैंसर की पहचान हो जाने के बाद जैसे भी हो पवन अपने परिवार के साथ खड़े हैं. इलाज में खर्च से हुई आर्थिक तंगी के कारण उनके बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो गई. समय के साथ बढ़ते खर्च की वजह से पवन ने इलाज के लिए आर्थिक सहायता के लिए कई बार आवेदन दिया लेकिन कोई मदद नहीं मिल सकी.
आर्सेनिक की मात्रा अधिक होने से बढ़ रहा कैंसर
पानी में आर्सेनिक की मात्रा अधिक होने से कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है. प्रदेश में जमुई सहित लगभग दर्जनभर जिलों के पानी में फ्लोराइड, आर्सेनिक जैसे रसायनिक पदार्थों की मात्रा पाई गई हैं. इन पदार्थों की अत्यधिक मात्रा कैंसर की संभावना को बढ़ा देती है. साल 2013 में पीएचईडी विभाग की ओर से कोलकाता की इनवायरो टेक कंपनी से जिले के 6005 जल स्रोतों की जांच कराई गई थी. जांच में 1959 जल स्त्रोतों में फ्लोराइड की मात्रा 3.2 से 3.6 प्रति लीटर पर पाई गई थी. लक्ष्मीपुर प्रखंड के कई इलाकों में पानी में आर्सेनिक की मात्रा 0.5 मिलीग्राम प्रति लीटर अधिक पाई गई जो कैंसर को बढ़ावा देने का एक प्रमुख कारण माना जा रहा है.
बिना कैंसर विशेषज्ञ के ही दिघरा गांव पंहुची थी टीम
एक साल पहले मुंगेर प्रमंडल के तत्कालीन आयुक्त के आदेश पर गांव में जांच के लिए टीम गई थी. लेकिन इसे लापरवाह कहें या उदासीनता टीम इस बीमारी के कारणों की तलाश करने के बजाय पीड़ितों की गिनती करके ही वापस आ गई. वहीं अस्पताल उपाधीक्षक डॉ सैयद नौशाद अहमद ने बताया कि जांच के लिए टीम भेजी गई थी, लेकिन कारण समझ में नहीं आया. हकीकत ये है कि स्वास्थ्य विभाग की टीम बिना किसी कैंसर विशेषज्ञ के ही गांव पहुंच गई और केवल उन लोगों का नाम दर्ज कर लिया जो कैंसर से पीड़ित है. इसके बाद 1 साल बीत गए लेकिन उन पीड़ितों को इलाज के ना तो कोई आर्थिक सहायता मिली और ना ही उन कारणों का खुलासा हो पाया जो इस क्षेत्र में कैंसर के कारण बन रहे हैं.