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गोपालगंज: जान जोखिम में डालकर बच्चे बाढ़ के पानी से इकट्ठा करते हैं लकड़ी, तब जाकर बुझती है पेट की आग

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Published : Oct 29, 2022, 9:09 PM IST

गोपालगंज में बाढ़ के बाद की स्थिति
गोपालगंज में बाढ़ के बाद की स्थिति

गोपालगंज जिला बाढ़ (Flood In Gopalganj) प्रभावित क्षेत्रों में से एक है. यहां हर साल बाढ़ के कारण बड़े स्तर पर तबाही होती है. यह किसी अभिशाप से कम नहीं है. लेकिन जिले का एक प्रखंड ऐसा है, जहां के लोग इस आपदा को अवसर के रूप में तब्दील कर पेट की आग को बुझा रहे हैं.

गोपालगंज: बिहार के गोपालगंज के सदर प्रखंड के पतहरा छरकी में बच्चे और जवान बाढ़ के पानी बहकर आए लकड़ी को एकत्रित करते हुए नजर (Children Collecting Woods From Flood Water) आ जाएंगे. यह इनका रोज का काम है. हालांकि, यह काम जोखिम भरा है. डूबने से बच्चों की जान भी जा सकती है. लेकिन पेट की आग बुझाने के लिए वे ऐसा करने के लिए मजबूर हैं. बच्चों के परिजन भी उन्हें ऐसा करने से नहीं रोकते. रोके भी कैसे, बाढ़ के कारण पहले ही घर-संसार तबाह हो चुका है. आमदनी के रास्ते बंद हो चुके हैं. ऐसे में खाने पर भी आफत है. लकड़ी इकट्ठा कर बाजार में बेचकर जो पैसे मिलते हैं, उसी से पेट की आग बुझ रही है.

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लोगों ने आपदा को अवसर बनाया: सदर प्रखंड के पतहरा छरकी के पास बने बाँध के किनारे शरण लिए हुए कटाव पीड़ित लोगों ने आपदा को अवसर में तब्दील कर दिया है. बाढ़ में बहकर आए लकड़ी एकत्रित करने में जोखिम तो है, लेकिन इससे होने वाले आमदनी से इनका घर-संसार चल रहा है. बच्चे और जवान बाढ़ के पानी से गली लकड़ी इकट्ठा करके लाते हैं. जिसे घर की महिलाएं सूखाकर ना सिर्फ अपने लिए ईंधन के रूप में इस्तेमाल करती हैं, बल्कि बाजार में बेचकर अच्छे पैसे भी मिल जाते है.

बाढ़ के बाद भूखे मरने की थी नौबत: गोपालगंज जिला बाढ़ प्रभावित जिला माना जाता है. बाढ़ की तबाही से कई लोग बेघर हो गए हैं. ऐसे में भोजन, रहने और रोजगार की समस्या उत्पन्न हो गयी थी. लेकिन सदर प्रखंड के पतहरा छरकी के पास बसे कटाव पीड़ित लोगों बाढ़ में बहकर आए लकड़ियों को इकट्ठा करते हैं. इस काम में बच्चों का काफी सहयोग रहता है. इन लकड़ियों से उनकी आमदनी के साथ साल भर के लिए ईंधन की भी व्यवस्था हो जाती है.

पताहरा गांव निवासी शीतली देवी ने बताया कि नदी में जलस्तर में हुई वृद्धि के कारण और बाढ़ आने के कारण ना ही जलावन की लकड़ियां मिल पाती है और ना ही कही कोई काम ही मिलता है. मजबूरन इसी गंडक नदी को अपना रोजगार का साधन बना लिया है. पानी में बहकर आने वाले लकड़ियों को निकालकर जलावन के तौर पर उपयोग किया जाता है. साथ ही बाजार में बेचकर अच्छा पैसा भी मिल जाता है. इस काम में सैकड़ों पीड़ित परिवार लगे हुए हैं.

"जब यहां बाढ़ आता है, तब अपने बच्चे और परिवार के अन्य सदस्य के साथ सुबह से गंडक के किनारे खड़े होकर लकड़ियों को इकट्ठा किया जाता हैं. लकड़ी को घर में जलावन के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. जिससे साल भर तक का ईंधन के पैसे की बचत हो जाती है, साथ ही बाजार में भी बेचकर अच्छे पैसे मिल जाते हैं. इस बढ़ती महंगाई में घर का खर्चा कम हो जाता है" - शीतली देवी, पताहरा गांव निवासी

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