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17 की उम्र में कार सेवक बने थे गया के मनोज, राम मंदिर निर्माण पर बोले- 'सपना हुआ पूरा'

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jan 17, 2024, 6:00 AM IST

Updated : Jan 18, 2024, 10:21 AM IST

गया के रहने वाले मनोज कुमार 17 साल की उम्र में ही कार सेवक बन गए. गया से अयोध्या जाकर विवादित ढांचे को ढहाने में शामिल रहे. अब जब राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम हो रहा है, तब वह कहते हैं कि उनका सपना 22 जनवरी को पूरा होगा. इस दिन के इंतजार में न जाने कितने कार सेवकों ने कुर्बानी दी.

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गया : 22 जनवरी को अयोध्या राम मंदिर में में प्रभु रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है. इसे लेकर देश भर में उत्सव मनाया जा रहा है. देश भर में उत्सव के माहौल के बीच गया में भी रामलाल के विराजमान होने को लेकर इसे त्यौहार के रूप में मनाया जा रहा है. इस दौरान वैसे कार सेवकों को याद किया जा रहा है, जिन्होंने विवादित ढांचा विध्वंस में अहम भूमिका निभाई थी. ऐसे ही कार सेवकों में एक गया के मनोज कुमार भी शामिल हैं, जिन्होंने न सिर्फ विवादित ढांचे के विध्वंस में बड़ी भूमिका निभाई थी, बल्कि उसमें लगी दो ईट भी लेकर आए थे. ईंट पर बाबर के सेनापति मीर बाकी का नाम लिखा हुआ था.

17 साल की उम्र में कारसेवा : गया शहर के रहने वाले मनोज कुमार तब नवमी कक्षा में पढ़ते थे. उम्र 17 साल की थी. जुनून विवादित ढांचे को ढाह देने और सैकड़ों साल के सपने को पूरा कर लेने का था. राम मंदिर में विवादित ढांचे को इसलिए तुरंत ढाह देना चाहते थे, क्योंकि यह ढांचा इन जैसे कारसेवकों के लिए गुलामी का प्रतीक था.

सरयू में स्नान कर कारसेवा में जुटे : मनोज कुमार बताते हैं कि वे 4 दिसंबर को गया से ट्रेन से निकले थे. 4 दिसंबर को शुक्रवार का दिन था. अयोध्या पहुंचने के बाद सरयू में स्नान किया. इसके बाद 6 दिसंबर 1992 को काफी संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंच गए थे. 6 दिसंबर को विवादित ढांचे को ढाह देने के लिए कारसेवकों का जत्था पर जत्था पहुंचा था. इसमें एक कार सेवक के रूप में वे भी शामिल थे.

जिससे बैरिकेडिंग की गई उसी से तोड़ा विवादित ढांचा : मनोज कुमार बताते हैं कि ''विवादित ढांचे के विध्वंस के लिए कार सेवकों का जत्था लगातार बढ़ता जा रहा था. उन्हें रोकने के लिए लोहे के पाइप की बैरेकटिंग की गई थी, लेकिन यही लोहे की पाइप की बैरिकेडिंग को तोड़कर कारसेवक आगे बढ़ गए. ढांचे पर चढ़कर इसी लोहे की पाइप से बड़े हिस्से को ढाहाया गया था. जब वे भी ढांचा गिराने में लगे थे, उनके सामने ही यह दृश्य था, कि विवादित ढांचा ढहाने में जुटे कई कारसेवक अचानक ढांचे का एक हिस्सा गिरने के बाद, वो उसी ओर गिर गए. हादसे में कई कारसेवक मर गए. इसी हादसे में वे भी पीछे की ओर गिरे थे, जान बच गई लेकिन जख्मी हो गए थे.''


विवादित ढांचे की दो ईंट भी साथ लेकर आए : जब ढांचा गिराया गया तो विध्वंस करने के बाद दो ईंट लेकर भी गया लौटे थे. ईंट में मीर बाकी का नाम लिखा था. मीर बाकी बाबर का सेनापति था. मनोज कुमार 1990 की बातें भी बताते हैं, जिसमें बताते हैं कि तब मुलायम सिंह की सरकार थी, जब कार सेवकों पर गोली कांड भी हुआ था. 1990 में ही खुद की गिरफ्तार होने की बात बताते हैं. साथ ही लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा को भी याद करते हैं, जब उनके सारथी के रूप में नरेंद्र मोदी जी थे. आज उन्हीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अयोध्या में राम लला विराजमान होने जा रहे हैं. बताते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और ढांचे को ढहाने को लेकर गया में रथ यात्रा आई थी. 1990 में रथ यात्रा आई थी, तो स्वराजपुरी रोड से होकर गुजरी थी.

अयोध्या में राम मंदिर बनने से काफी खुश : मनोज कुमार शुरू से ही आरएसएस से जुड़े रहे हैं. आज भाजपा के नेता भी है. हालांकि वे खुद को भाजपा का साधारण कार्यकर्ता ही मानते हैं. इसके पहले वह गया शहर के वार्ड संख्या 19 के पार्षद भी रह चुके हैं. वहीं अब फिलहाल में उनकी पत्नी मुन्नी देवी वार्ड संख्या 19 की पार्षद है. अक्षत और कार्ड दिखाते हुए उल्लासित होकर कहते हैं, कि जो सपना 1992 में विवादित ढांचा ढहाने के बाद देखा था, वह अब 22 जनवरी को पूरा होने जा रहा है. वहीं सैकड़ों सालों की गुलामी के प्रतीक के खिलाफ यह जीत है.

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Last Updated : Jan 18, 2024, 10:21 AM IST
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