VIDEO: बिहार का एक प्रखंड ऐसा भी, जहां बाइक और कार की जगह हर दरवाजे पर लगी रहती है नाव

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Published : Sep 13, 2021, 12:14 PM IST

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दरभंगा के कुशेश्वरस्थान प्रखंड में कई ऐसे गांव हैं, जहां के लोग अब तक सड़क पर चलने से वंचित हैं. आजादी के 75 साल बाद भी गांव में सड़क निर्माण नहीं हो सका है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

दरभंगा: बिहार के दरभंगा जिले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) दावा फेल होते दिख रहा है. राज्य के किसी भी इलाके से महज 6 घंटे में पटना पहुंचा जा सकता है, यह बात दम तोड़ता दिख रहा है. जिले में सुदूर कुशेश्वरस्थान प्रखंड (Kusheshwarsthan Block) के कई गांव ऐसे हैं, जहां आज तक सड़क नहीं पहुंच पायी है. पटना पहुंचने की तो बात छोड़ ही दीजिए. यहां 20-25 किलोमीटर की दूरी तय करने में ही 5-6 घंटे लग जाते हैं. यहां एक ही गांव के अलग-अलग टोलों में जाने के लिए नाव की जरूरत पड़ती है. आजादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी सड़क की राह में लोग टकटकी लगाए बैठे हुए हैं.

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कुशेश्वरस्थान पूर्वी और पश्चिमी प्रखंड के दर्जनों गांव ऐसे हैं, जहां साल के 6 महीने बाढ़ का पानी रहता है. जिसकी वजह से लोग नाव पर चलते हैं. वहीं, बाकी के 6 महीने रेत पर पैदल आवागमन करते हैं. गौड़ा, मसनखोर, भदौल, गनौल, गीददगंज, गोठानी, मैठा, बर्रा, नीमी, बसंतपुर और रैघाट समेत कई गांवों की बड़ी आबादी के लिए नाव ही आवागमन का एकमात्र सहारा है.

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इन गांवों के अधिकतर घरों में एक नाव जरूर मिलेगा. जिस व्यक्ति की हैसियत नाव खरीदने की नहीं है, उसकी जिंदगी दुश्वारियों में कटती है. इन गांवों में जन्म से लेकर मृत्यु तक नाव ही सबसे बड़ा सहारा है. आजादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी इलाके की तस्वीर नहीं बदल सकी है. कुशेश्वरस्थान का इलाका दिवंगत रामविलास पासवान का ननिहाल भी है. यह इलाका पासवान परिवार की कर्मभूमि है.

समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र और कुशेश्वरस्थान विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले इस इलाके से पासवान परिवार के लोग ही सांसद और विधायक चुने जाते रहे हैं. यहां से दिवंगत रामविलास पासवान के छोटे भाई दिवंगत रामचंद्र पासवान कई बार सांसद और विधायक रहे चुके थे. फिलहाल उनके बेटे प्रिंस राज इस इलाके का संसद में प्रतिनिधित्व करते हैं. इसके अलावा पासवान परिवार की ननिहाल से महेश्वर हजारी और स्व. शशिभूषण भी यहां से विधायक रहे हैं. इसके बावजूद भी इलाके की तस्वीरें नहीं बदल सकी है.

देखें रिपोर्ट.

डिग्री पार्ट वन की परीक्षा देने बेनीपुर कॉलेज जा रही एक छात्रा ललिता कुमारी ने बताया कि चाहे पढ़ाई के लिए जाना हो या फिर परीक्षा देने के लिए, नाव पर ही सवार होकर जाना पड़ता है. छात्रा ने कहा कि 5 किलोमीटर जाने और फिर वापस आने के लिए 200 रुपये तक नाविक चार्ज करते हैं. इन सभी कारणों से लोग ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाते हैं. ललिता ने कहा कि इस इलाके में बाढ़ हर साल की समस्या है. उन्होंने सरकार से गुजारिश की है कि इलाके में सड़के बनवाई जाएं. जिससे समस्या से निजात मिल सके.

'सड़क न होने की वजह से एक ही गांव के अलग-अलग टोलों में जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है. जन्म से लेकर आज तक यही स्थिति देख रहे हैं. विधायक और सांसद से कई बार सड़क बनाने की गुहार लगाई गई. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. किसी के बीमार पड़ने या इमरजेंसी काम में नाव नहीं मिलने पर काफी परेशानी होती है.' -मो. मैनुद्दीन, स्थानीय

'यहां जिसके पास नाव नहीं है, उसकी जिंदगी काफी कठिनाई में कटती है. एक कदम भी चलना मुश्किल हो जाता है. एक नाव लगभग 20 हजार की बनती है. गरीब लोगों के पास इतने पैसे नहीं होते हैं कि वे बार-बार नाव बनवा सकें. इस समस्या को लेकर कई बार मुखिया से गुहार लगाई जा चुकी है. विधायक और सांसद चुनाव के समय आश्वासन देकर चले जाते हैं लेकिन इलाके में एक अदद सड़क नहीं बन सकी है.' -संतोष सहनी, स्थानीय

'आसपास के कई गांव के लोग हर दिन नाव से ही आते-जाते हैं. चाहे बाजार-हाट करना हो या फिर दवा की जरूरत पड़े. सभी कामों के लिए नाव से ही आना-जाना होता है. यहां हर गांव के लिए नाव खुलती है. जिन पर सुबह से शाम तक लोग सवार होकर आते-जाते हैं. नाविक सुबह से शाम तक सवारी ढोने में व्यस्त रहते हैं.' -राजकुमार, नाविक

बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अभी कुछ ही दिनों पहले कुशेश्वरस्थान के बाढ़ग्रस्त इलाके का दौरा किए थे. मुख्यमंत्री गांव में जाकर लोगों से मिले भी थे और अधिकारियों को कई निर्देश भी जारी किया गया था. उस दौरान लोगों के अंदर उम्मीद भी जगी थी कि अब तकलीफ दूर हो जाएगी. लेकिन अब तक इलाके में सरकारी नावों की व्यवस्था तक नहीं हो सकी. समाधान की कोई सुगबुगाहट नहीं देखकर लोग एक बार फिर खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.

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