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भागलपुर को बीमार बना रहा बरारी इंटकवेल का सप्लाई वाटर, गंदे पानी को किया जाता है लिफ्ट

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Published : Mar 27, 2021, 5:35 PM IST

Updated : Mar 27, 2021, 6:30 PM IST

भागलपुर में बरारी वाटर वर्क्स से पानी की सप्लाई की जाती है. गंगा से इंटकवेल तक पानी लाने के लिए चैनल बनाया गया है. गंगा की धारा से पंपिंग सेट तक भी चैनल बनाया गया है. चैनल में पानी बोरिंग के द्वारा लाया जा रहा है. लेकिन जगह-जगह नाले का पानी इसमें रिस रहा है. ऐसे पानी को पीने योग्य बनाने के लिए ज्यादा कैमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा है. जो हानिकारक है.

भागलपुर में गंदे पानी की सप्लाई
भागलपुर में गंदे पानी की सप्लाई

भागलपुर: बिहार के सिल्क सिटी में लगभग तीन लाख लोगों की के स्वास्थ्य से खिलवाड़ हो रहा है. यह खिलवाड़ नगर निगम प्रशासन कर रहा है. सप्लाई वाले पानी में ज्यादा कैमिकल, ज्यादा ब्लीचिंग पाउडर और ज्यादा फिटकरी देकर उसे पीने योग्य बनाया जा रहा है. जिससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है. दरअसल, नगर निगम नालों के पानी को फिल्टर कर रहा है. इसे फिल्टर और पीने योग्य बनाने के लिए ज्यादा कैमिकल डालनी पड़ती है.

भागलपुर का बरारी वाटर वर्क्स
भागलपुर का बरारी वाटर वर्क्स

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जल भंडारण की समस्या
बरारी वाटर वर्क्स से गंगा नदी की धारा दूर हो जाने की वजह से जल भंडारण की समस्या उत्पन्न हो गई है. वर्ष 2020 के नवंबर महीने से ही गंगा की धारा इंटकवेल से दूर जाने लगी थी. अब करीब 1 किलोमीटर से अधिक दूर गंगा जा चुकी है. ऐसे में इंटकवेल के सामने गाद जमा हो गया है. गंगा से इंटकवेल तक पानी लाने के लिए चैनल बनाया गया है. गंगा की धारा से पंपिंग सेट तक भी चैनल बनाया गया है. चैनल में पानी बोरिंग के द्वारा लाया जा रहा है.

WHO स्टैंडर्ड के मुताबिक पानी
WHO स्टैंडर्ड के मुताबिक पानी

ज्यादा हो रहा है झाग
चैनल में जगह-जगह नाले का पानी मिल रहा है. तालाब तक पानी लाने में झाग ज्यादा हो रहा है. पानी में काफी गंदगी है. पंप से लिया जा रहा पानी मिट्टी युक्त आ रहा है. वहीं पानी अधिक गंदा होने के कारण वाटर वर्ग में कैमिकल की मात्रा भी बढ़ा दी गयी है.

WHO स्टैंडर्ड के मुताबिक पानी
WHO स्टैंडर्ड के मुताबिक पानी

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जुगाड़ तकनीक भी हो रहा फेल
ऐसे में नगर निगम प्रशासन शहरवासियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रही है. चैनल में नाले का पानी रोकने के लिए नगर निगम प्रशासन ने जुगाड़ तकनीक अपनाई है, जो फेल हो रही है. इंटकवेल के फुट वॉल्व की दिन भर में 5 से 6 बार सफाई करनी पड़ रही है. इसके लिए अलग से नगर निगम प्रशासन ने तीनों पाली में तीन-तीन मजदूरों की ड्यूटी लगाई है. हर 2 घंटे पर पंखे की सफाई करनी पड़ रही है. क्योंकि पाइप में बालू और गाद जमा हो जा रहा है.

देखें पूरी रिपोर्ट

जलापूर्ति ठप होने की आ सकती है नौबत
बालू और गाद जमा होने के कारण जल भंडारण के लिए जलकल कर्मियों को जद्दोजहद करनी पड़ रही है. बरारी वाटर वर्क्स के 3 मीटर गहरे तालाब में महज 1 फीट पानी बचा है. ऐसे में जलापूर्ति ठप होने की भी नौबत आने वाली है.

भागलपुर का बरारी वाटर वर्क्स
भागलपुर का बरारी वाटर वर्क्स

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चौबीसों घंटे की जा रही है मॉनिटरिंग
'बरसों से गंगा के मुख्य धारा से पानी को लिफ्ट कर इंटकवेल से बरारी वाटर वर्क्स में प्यूरीफाइ कर शहर की आबादी को पेयजल की आपूर्ति की जा रही है. वर्तमान में गंगा की धारा दूर चली गई है. जिसके लिए चैनल बनाकर पानी को मोटर द्वारा उस चैनल के माध्यम से बरारी इंटकवेल तक पहुंचाया जा रहा है. जिसके बाद पानी को बरारी वाटर वर्क्स में सही मात्रा में कैमिकल डालकर पीने योग्य बनाकर पानी की सप्लाई की जा रही है. कहीं पर नाले का पानी चैनल में नहीं जाने दिया जा रहा है, जहां पर भी नाले का पानी जाने की संभावना है, वहां पर नगर निगम प्रशासन द्वारा व्यवस्था की गयी है. इसके अलावा चौबीसों घंटे मॉनिटरिंग करने के लिए मैन पावर को लगाया गया है, जो किसी भी तरह की लीकेज होने पर उसे तुरंत ठीक कर रहे हैं.' -प्रफुल्ल चंद्र यादव, प्रभारी नगर आयुक्त

पंप में मजदूरों को गाद हटाने के लिए लगाया गया है
पंप में मजदूरों को गाद हटाने के लिए लगाया गया है

17 MLD पानी के भंडारण की है जरूरत
गौरतलब है कि बरारी वाटर वर्क्स में प्रतिदिन जल शोधन कार्य के लिए 17 एमएलडी पानी के भंडारण की जरूरत है. जिसमें से 12 एमएलडी की आपूर्ति होती है. वर्तमान में 8 एमएलडी पानी का ही तालाब में भंडारण हो पा रहा है. गंदा पानी आने की वजह से इंटकवेल में पानी के साथ 1 फीट तक गाद जमा हो गया है. जिसे हटाने के लिए लगातार काम करना पड़ रहा है.

गंगा से इंटेकवेल तक पानी लाने में हो जाता है ज्यादा झाग
गंगा से इंटकवेल तक पानी लाने में हो जाता है ज्यादा झाग

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गंगा में गिरता है 80 नालों का पानी
बता दें कि गंगा नदी में शहर के 80 नालों का पानी गिरता है. उसी दूषित पानी का शोधन कर जलापूर्ति की जा रही है. दूषित पानी को साफ करने के लिए अत्यधिक मात्रा में ब्लीचिंग पाउडर, फिटकरी और कैमिकल का उपयोग हो रहा है. जिससे शहर के तीन लाख आबादी पर सीधा असर पड़ेगा.

गंगा से कुछ इस तरह पानी को लिफ्ट करके लाया जाता है
गंगा से कुछ इस तरह पानी को लिफ्ट करके लाया जाता है

सरकारी एजेंसियां ऐसे साफ करती हैं पानी
एजेंसियों के वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में पानी नदी या नहर के जरिए आता है तो सबसे पहले पानी में मौजूद अशुद्धियों की जांच होती है. इसके बाद तय किया जाता है कि उस पानी को किस विधि से साफ किया जाना चाहिए.

  1. पानी की जांच करने के बाद उसमें क्लोरीन मिलाई जाती है. उसके बाद फिटकरी, पॉली एल्यूमीनियम क्लोराइड मिलाया जाता है, ताकि पानी की गंदगी साफ हो सके.
  2. इसके बाद पानी क्लोरीफायर में जाता है, जहां अशुद्धियां और गाद नीचे बैठ जाती हैं. यहां पानी की दो बार टेस्टिंग होती है.
  3. क्लोरीफायर से पानी फिल्टर हाउस में जाता है, जहां पानी छाना जाता है. फिर से पानी की जांच होती है. इसके बाद पानी को प्लांट में मौजूद जलाशयों में भेजा जाता है. यहां पर दोबारा से क्लोरीनेशन होता है. पानी साफ करने के बाद जितनी भी बार पानी की जांच होती है, उसमें घुलनशील और अघुलनशील अशुद्धियों की जांच की जाती है. अगर पानी में कोई भी गड़बड़ी पाई जाती है तो पानी की सप्लाई रोक दी जाती है. प्लांट से पानी साफ होने के बाद अंडर ग्राउंड रिजरवायरों में जाता है. यहां भी घरों में सप्लाई करने से पहले जांच की जाती है. इसके बाद भी जल बोर्ड लोगों के घरों में भी जाकर पानी के सैंपल जांच के लिए उठाता है.
पानी की गंदगी देखकर आप भी अंदाजा लगाएं, कितनी अधिक मात्रा में कैमिकल डालकर इसे साफ किया जाता होगा.
पानी की गंदगी देखकर आप भी अंदाजा लगाएं, कितनी अधिक मात्रा में कैमिकल डालकर इसे साफ किया जाता होगा.

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BIS से मापी जाती हैं पानी की गुणवत्ता
भारत में पानी की गुणवत्ता बीआईएस-10500 के तहत मापी जाती है. बीआईएस (ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स) ने ड्रिकिंग वाटर और पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर के मानकों के लिए नियम तय किए हैं. इनके अनुसार पानी में टीडीएस की मात्रा 0 से 500 पीपीएम (पार्ट्स प्रति मिलियन) होनी चाहिए. साथ ही पीएच लेवल 6.5 से 7.5 के बीच होनी चाहिए. इससे ज्यादा होने पर यह नुकसानदेह है. बीआईएस के मुताबिक, पानी में कुल 82 तरह की अशुद्धियों की जांच होनी चाहिए. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पानी में 300 से 400 तरह के कैमिकल्स अशुद्धियों के रूप में मौजूद हो सकते हैं. हालांकि भारत में बीआईएस मानक के मुताबिक इनकी संख्या कम बताई गई है.

TDS के बारे में जानें
पानी में घुली हुई सभी चीजों को टीडीएस (टोटल डिसॉल्व्ड सॉलिड्स) कहते हैं. इसमें सॉल्ट, कैल्शियम, मैग्निशियम, पोटैशियम, सोडियम, कार्बोनेट्स, क्लोराइड्स आदि आते हैं. ड्रिंकिंग वाटर को मापने के लिए टीडीएस पीएच और हार्डनेस लेवल देखा जाता है. बीआईएस (ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड) के मुताबिक, मानव शरीर अधिकतम 500 पीपीएम (पार्ट्स प्रति मिलियन) टीडीएस सहन कर सकता है. अगर यह लेवल 1000 पीपीएम हो जाता है तो शरीर के लिए नुकसानदेह है. लेकिन फिलहाल आरओ से फिल्टर्ड पानी में 18 से 25 पीपीएम टीडीएस मिल रहा है, जो काफी कम है. इसे ठीक नहीं माना जा सकता. इससे शरीर में कई तरह के मिनरल नहीं मिल पाते.

ऐसे करें घर में क्वॉलिटी चेक
मार्केट में पानी का टीडीएस मापने के लिए एक पेन-नुमा मशीन आती है. इसे डिजिटल टीडीएस मीटर कहते हैं. यह मीटर 300 से 1400 रुपये तक की आती है. हालांकि इससे सिर्फ टीडीएस का ही पता चलेगा. पानी सप्लाई करने वाली सरकारी एजेंसी को फोन करके भी आप सैंपल कलेक्ट करवा सकते हैं. जो लैब में टेस्ट के बाद आपको पूरी रिपोर्ट भी देते हैं.

Last Updated :Mar 27, 2021, 6:30 PM IST
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