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नहीं थम रहा गंगा में शव बहाने का सिलसिला- भागलपुर में सांप ने काटा तो बहा दी लाश

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Published : Jun 14, 2021, 8:40 PM IST

भागलपुर के कहलगांव घाट में एक परिवार ने एक लाश को गंगा में केले के थंब से बांधकर बहा दिया. युवक की सर्पदंश से मौत हुई थी. परिजनों के अनुसार मान्यताओं के कारण ऐसा किया. पहले तो बरारी घाट पर लाश प्रवाह करने की कोशिश की, लेकिन डोम राजा के एक लाख रुपये मांगने के बाद लाश को कहलगांव घाट में प्रवाह किया गया. चिंता की बात यह है कि इस प्रक्रिया को रोकने के लिए प्रशासन कहीं मौजूदगी नहीं दिखी. पढ़ें रिपोर्ट...

बस करो शव बहाना
बस करो शव बहाना

भागलपुरः एक मान्यता के अनुसार, 'किसी को सांप काट ले, तो उसकी लाश को नदी में प्रवाह कर देना चाहिए.' यह मान्यता कितनी सच है और इसमें कितनी सच्चाई है. इसकी जानकारी लिए बगैर लोग नदी में शव प्रवाह (Dead Body In River) कर रहे हैं. जिससे गंगा प्रदूषित (Ganga Polluted) हो रही है. यहां गंगा की बात इसलिए हो रही है, क्योंकि घटना बांका के नवादा बाजार की है. स्थानीय निवासी डोमी पासवान के 24 वर्षीय बेटे मिथिलेश कुमार को सांप ने काट लिया था.

मौत के बाद उसे भागलपुर के बरारी घाट ले जाया गया. वहां डोम राजा ने शव को गंगा में प्रवाह करने के लिए एक लाख रुपए की मांग की. परिजन शव को लेकर कहलगांव घाट लेकर चले गए. जहां चार हजार रुपए में शव को गंगा में प्रवाह कर दिया. लेकिन उन्हें ऐसा करने से प्रशासन ने भी नहीं रोका. बता दें कि घाटों की निगरानी के लिए दंडाधिकारियों की भी नियुक्ति की गई ती.

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11 हजार रुपए पर अड़े डोम राजा
बरारी घाट पर शव को गंगा में प्रवाह करने के लिए डोम राजा ने परिजनों से एक लाख रुपए की मांग की. काफी मिन्नतों के बाद डोम राजा 11 हजार रुपए मांगने लगा. परिजन आर्थिक रूप से कमजोर थे. इस कारण वहां से कहलगांव घाट पहुंच गए. मृतक के भाई राजेश कुमार ने बताया कि बरारी घाट से शव को लेकर कहलगांव ले गए. वहां 4,000 रुपए खर्च कर शव गंगा में बहा दिया. पंद्रह सौ रुपया घाट पर डोम राजा ने लिया और 2,500 रुपया नाव वाले ने लिया. नाव पर बिठा कर बीच गंगा में ले जाकर केले के थंब पर उसे गंगा नदी में बहा दिया.

जानें... पूरी घटनाक्रम
जानें... पूरी घटनाक्रम

स्थानीय निवासियों ने भी देखा
वहां मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि शनिवार की शाम को 4:30 से 5:00 बजे के बीच दो ऑटो से कुछ लोग सर्पदंश से मौत हुए एक 24 वर्षीय युवक के शव को लेकर पहुंचे थे. कहलगांव के उत्तरवाहिनी गंगा किनारे श्मशान घाट में ले गए. परिजन अपने साथ केला का थंब भी लाए थे. शव को थछंब में बांध कर गंगा नदी में बहा दिया.

इलाज को ले गए थे बांका सदर अस्पताल
इलाज के लिए उसे पहले बांका के अस्पताल ले जाया गया. चिकित्सकों ने उनकी गंभीर स्थिति को देखते हुए उसे भागलपुर रेफर कर दिया गया. भागलपुर में इलाज के दौरान मिथिलेश की मौत हो गयी थी.

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घाट पर नियुक्त दंडाधिकारी कागज पर कर रहे ड्यूटी
कोरोना काल में डोम राजाओं की मनमानी को लेकर भागलपुर के लोगों ने मोर्चा खोला था. जिला पदाधिकारी से लोगों ने इसकी शिकायत की थी. शिकायत मिलने पर जिला पदाधिकारी ने घाटों की निगरानी के लिए दंडाधिकारी नियुक्त कर दिए. लेकिन दंडाधिकारी वहां कभी नजर नहीं आते हैं. सिर्फ कागज पर ड्यूटी कर रहे हैं. हालांकि श्मशान घाट के कुछ लोगों का यह कहना है कि 1 जून से उनकी सेवा घाट से हटा ली गयी है.

नदी में लाश प्रवाह करने पर सीधे जीवों पर होता है असर
बिहार और उत्तर प्रदेश में गंगा में मिली लाशों के बाद लावारिस लाशों को गंगा में बहाने से रोकने की कोशिशें तेज हो गई हैं. मगर गंगा के घाटों पर लाशों के मिलने का सीधा असर जीवनदायिनी गंगा के जल में रहने वाले जीवों पर पड़ रहा है. कई ऐसी भी जीव हैं, जो गंगा में ही पाए जाते हैं. उनपर भी काफी असर पड़ रहा है. अब तक गंगा के जल कितना संक्रमित हो चुका है, कितना नहीं. इस पर कोई भी कुछ दावे से नहीं कह सकता.

सीधे जीवों पर होता है असर
सीधे जीवों पर होता है असर

डॉल्फिन और घड़ियाल हैं गंगा के लाइफलाइन
डॉल्फिन और घड़ियाल का संरक्षण सीधे गंगा की लाइफलाइन से जुड़ा है. नमामि गंगे जैसे प्रोजेक्ट पर भी संकट खड़ा हो सकता है. गंगा का पानी को पहले ही प्रदूषण से बचाने की जंग जारी है, जिस पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं.

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लोगों के बीमार होने का खतरा
माना जा रहा है कि अगर शव बहाने का सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा, तो गंगा नदी के पर्यावरण पर घातक असर पड़ेगा. गंगा के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा घटेगी तो खास तौर पर बैक्टीरियल लोड बढ़ेगा. जिसका जानवरों के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य पर भी सीधा असर पड़ेगा. नदी में बहाए गए शवों को विशेष प्रकार के कछुआ और मछलियां खा जाती हैं. चूंकि मछलियां लोगों का खाद्य स्रोत होती हैं. ऐसे में ये तत्व लोगों की थाली में भी पहुंच सकते हैं.

लोगों के बीमार होने का खतरा
लोगों के बीमार होने का खतरा

मसलन लाशों को नदी में बहाने से उसमें बैक्टीरियल लोड बढ़ेगा, जो गंभीर खतरा साबित हो सकता है. गंगा के पानी का नहाने, पीने आदि में उपयोग से लोगों के स्वास्त्य पर असर पड़ सकता है.

नदी में लाश प्रवाह करने की मान्यताओं ने लिया परंपरा का रूप
जानकारों के अनुसार, कई मान्यताओं ने बाद में परंपरा का रूप ले लिया है. नदी में शव बहाना भी एक ऐसी ही मान्यता है. पहले नदियों में जलीय जीव प्रचुर मात्रा में होते थे. खासकर गंगा में मगरमच्छ काफी तादाद में थे. इसलिए गंगा का वाहन भी मगरमच्छ को माना गया है. लोग शवों (ज्यादातर जानवरों का शव) को गंगा में डालते थे. तो ये मगरमच्छ उन्हें खा लेते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. नदियों में जलीय जीव प्रदूषण के चलते कम हुए. गंगा में अब मगरमच्छ भी नहीं मिलते हैं. जिसके चलते ही नदी में डाले जाने वाले शव प्रदूषण को और बढ़ा देते हैं.

जानें... मान्यता कैसे बन गई परंपरा
जानें... मान्यता कैसे बन गई परंपरा

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शास्त्रों में भी नहीं मिलता ऐसा विधान
सनातन धर्म के शास्त्रों में ऐसा कोई विधान नहीं है, जिसमें ये लिखा हो कि शवों को नदी में प्रवाहित किया जाए. ज्योतिषाचार्य और कर्मकाण्ड विशेषज्ञ पं. आदित्य पांडेय के मुताबिक ये लोक मान्यताओं के हिसाब से होने लगा है. मौत के बाद अंतिम संस्कार करने की दो विधियां ही बताई गई हैं. पहली विधि शव के दाह संस्कार की. जिसमें शव को चिता पर जलाया जाता है. वहीं दूसरी विधि शव के भूमि विसर्जन की होती है. जिसमें शव को दफनाया जाता है या उनकी समाधी बनाई जाती है.

शास्त्रों में भी नहीं ऐसा विधान
शास्त्रों में भी नहीं ऐसा विधान

पं. दीपक पाण्डेय का मानना है कि शवों को जल में विसर्जन करने की रीति बाद में आई है. पहले ऐसा नहीं होता था. लोक मान्यताओं के चलते बाद में ऐसा होने लगा है.

अस्थि विसर्जन का है विधान
पं. आदित्य पांडेय के मुताबिक नदियों में खासकर पवित्र नदी गंगा में अस्थि प्रवाहित करने का विधान है. उन्होंने बताया कि मृत्यु के बाद जब शव का दाह संस्कार हो जाता है, तो उसके बाद परिजन शव से अस्थियां व अवशेष निकाल लेते हैं. जिन्हें गंगा में प्रवाहित किया जाता है. विज्ञान की दृष्टि से अस्थियों में कैल्शियम और पोटैशियम होता है. जो पानी को कभी भी गंदा नहीं करता है.

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